Monday, October 28, 2013

धर्म का अस्तित्व

धर्म का अस्तित्व
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धर्म का उथला ज्ञानी , धर्म उसको मानता है जैसा  उसके आज कट्टर मानने वाले स्वयं को प्रदर्शित करते हैं . ऐसे में धर्म को
दोषपूर्ण ढंग से मानने का प्रदर्शन यदि प्रधानता से प्रचारित होता है तो वास्तविक धर्म और उसकी अच्छाई पृष्टभूमि में छिप जाती है , और भ्रम धर्म में दोष का प्रतीत होता है . जबकि धर्म दोष रहित है तभी तो सभी अनुकूल /प्रतिकूल परिस्थिति में धर्म अनादि से अस्तित्व में बना हुआ है . धर्म के सच्चे ज्ञानी में प्रदर्शन की अभिलाषा स्वतः समाप्त होती है . बिना प्रचार के ऐसे धर्म ज्ञानी को जगत स्वयं पहचान लेता है . लेकिन जब धर्म के पूर्ण ज्ञान प्राप्ति की भावना दूसरे भौतिक सुखों की प्राप्ति की भाग-दौड़ में प्रमुख नहीं रह गई है . ऐसे में धर्म के नाम पर फैले अन्धविश्वास और पाखण्ड की ओट में छिपने से धर्म को नहीं बचाया गया तो आशंका  है कि हमारी आगामी पीढ़ियां धर्म के प्रति विमुख होती जायेंगी और धर्म अनुमोदित कर्मों और आचरण के प्रति उदासीनता से परिवार ,समाज ,राष्ट्र और विश्व में बुराई और अनाचार और जीवन अशांति का कारण बनेगी .

सभी अनुकूल /प्रतिकूल परिस्थिति में धर्म अनादि से अनंत तक अस्तित्व में तो रहेगा शंका नहीं है किन्तु अपने काल में हम बुराई से जूझते जीवन संघर्ष को बाध्य होंगें ...

--राजेश जैन
29-10-2013

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