Monday, October 28, 2013

नरक -स्वर्ग और धर्म

नरक -स्वर्ग और धर्म
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भारत में प्रचलित अधिकाँश धर्मों में प्राणी जीवन अनादि-अनंत बताया गया है . विश्व में दूसरे धर्म ऐसा नहीं बताते उन्हें कोई चुनौती नहीं देते हुये ,लेख में अपनी सहमति भी इसी आस्था में है निसंकोच लिख रहा हूँ . जिन धर्मों में "प्राणी जीवन अनादि-अनंत " बताया गया है , उनमें नरक -स्वर्ग (और ज्यादातर में मोक्ष भी ) का अस्तित्व भी माना गया है .
पृथ्वी पर और पृथ्वी तरह के अन्य ग्रहों में जिनमें भी जीवन है ,वहाँ प्राणियों के कर्मों अनुरूप ही जीवन में और आगामी जन्मों में प्रतिफल प्राप्त होता है .
अत्यंत अच्छे और स्वच्छ कर्मों के संचय से स्वर्ग और अत्यंत निकृष्ट कर्मों के संचय के प्रतिफल में नरक के जीवन पाने की अवधारणा है .
आजकल जब विज्ञान और गणितीय ज्ञान अधिकतर मनुष्य प्राप्त कर रहे हैं तब इन धर्म के आस्था वाले कुल में जन्म लेने के बाद भी प्रमाण के साथ नरक -स्वर्ग के अस्तित्व को सिध्द नहीं किये जा सकने के कारण उन्हें धर्म पर शंका होती है .वे विज्ञान और गणितीय उत्तर के तरह धर्म के सिद्धांत को पुष्ट करने का प्रमाण ढूंढते हैं . धर्म ग्रन्थ-शास्त्र के अनेकों उल्लेखों को तर्क और प्रमाण की कसौटी पर परखते हैं .
धर्म पर आस्था होनी चाहिए या नहीं इस विवाद में नहीं जाते हुए यह सुविधाजनक होगा की सीधे लेख का मंतव्य स्पष्ट किया जाए .
वास्तव में व्यवहारिक -भौतिक और विज्ञान के ज्ञान के विद्यालय जब बढे तो धर्म ज्ञान शंका कि प्रवृत्ति बढ़ी . जिससे हमारे कर्म और आचरण धर्म अनुमोदना अनुरूप कम होते गये और इनमें स्वच्छंदता बढ़ने लगी . जिससे पारिवारिक -सामाजिक और अंततः राष्ट्र और विश्व में सौहाद्र -विश्वास शांति कम होती गई . बुराई -अशांति इत्यादि दिनोंदिन बढ़ती गई  .
जीवन इस जन्म पूर्व था या नहीं , उपरान्त रहेगा या नहीं और इस जीवन के पाप पुण्य के लेखा -जोखा से स्वर्ग -नरक जाना होगा अथवा नहीं इस तरह धर्म में कही अनेकों बातों के प्रमाणिकता भले ही ना दी जा सके किन्तु धर्म विरुध्द कर्म और आचरण से आज जीवन-संघर्ष ना सिर्फ हमारे अपितु हमारे माँ-पिता ,भाई -बहन और बच्चों इस तरह सभी के बढ़ गए हैं . जो स्वतः प्रमाण है  इस बात का कि धर्म सच्चे हैं और मानव हित (और प्राणियों के भी हित ) में हैं .

--राजेश जैन
28-10-2013
 

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