Saturday, October 19, 2013

धर्म और अपनी श्रेष्ठता

धर्म और अपनी श्रेष्ठता
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अपनी श्रेष्ठता अन्य पर दर्शाने के लिए हम कई उपाय करते हैं . और  इस हेतु हममें से -

* कोई रूप -सौन्दर्य का सहारा लेता है .
* कोई युवा अवस्था की शक्ति उपयोग करता है .
* कोई धन वैभव प्रदर्शित करता है .
* कोई इत्र -वस्त्र आदि के ब्रान्ड धारक बनता है .
* कोई अपनी अर्जित कला प्रस्तुत करता है .
* कोई बाहुबल आजमाता है.
* कोई दूसरों की शारीरिक कमी पर शब्द प्रहार करता है .
* कोई किसी के हीन कुल -जाति अथवा दरिद्रता पर चोट करता है .
* कोई हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषा के वार्तालाप के बीच अंग्रेजी प्रयोग आरम्भ करता है .
* कोई अपना अर्जित ज्ञान बघारता है .
* कोई दान ,परोपकार ,सहायता और भलमनसाहत के कर्म करता है .
  अगर ये सारे प्रभाव करते नहीं जान पड़ते तब हम अपने धर्म के किसी अंश को उध्द्रत करते हैं .

जबकि धर्म का ना तो पूरा ज्ञान हमें होता है . और ना ही पूरी तरह से हम अपने धर्म का पालन करते हैं .
अपनी श्रेष्ठता सिध्द करने के लिए सुविधाजनक, विवेचना पलड़ा अपने पक्ष में झुकाने के लिए करते हैं .

वस्तुतः धर्म तो वह मार्ग हैं जिसका पूरा ज्ञान सच्चे तरह से हो जाए तो अपनी श्रेष्ठता प्रदर्शन का मोह ही टूट जाता है .
और आचरण इस तरह हो जाते हैं जिससे श्रेष्ठता देखने -सुनने वाले को स्वतः अनुभूत होती है .

--राजेश जैन
20-10-2013

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