"इस प्यार" का मेरे
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जिसे "प्यार" आज करते हैं प्रचारित सब
वैसे प्यार के लिए नहीं हूँ मै उपलब्ध
गृह में है लक्ष्मी जिसे दिया है वह प्यार मैंने
किन्तु प्यार नहीं संकीर्ण समा जाए इतने से अर्थ में
जो प्यार का समंदर चाहिए आज दुनिया को
जिससे मानवता निर्मल प्रवाहित है धरातल पर
हित और कुशलता लिए जो चाहिए समाज को
प्यार का समंदर मै रखता हूँ दिल में संजो अपने
और देने को रहता बेताब भरपूर उसे सबको
गर सम्मान किसी को है "इस प्यार" का मेरे
--राजेश जैन
25-10-2013
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