Monday, September 23, 2013

भलापन -छोटा छोटा सा

भलापन -छोटा छोटा सा
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अपने को भला बना लेना हमारा ही सामर्थ्य होता है हमारी ही उपलब्धि होती है . भला कितना अधिक बन सकते हैं इसकी कोई सीमा ही नहीं है . हम भले से भले की बराबरी तो कर ही सकते हैं इतना भी भले हो सकते हैं जितना कोई कभी हुआ ही नहीं हो .भला होने के लिए यह भी आवश्यक नहीं कि बहुत ही दुष्कर कर्मों को हम संपन्न करें . बहुत छोटे छोटे अच्छे कर्मों को समय और आवश्यकता अनुसार करने लगना भी भलापन ही होता है .
बहुत छोटे छोटे अच्छे कर्म ,विचार और भावना , हमारा छोटा छोटा सा भलापन कैसे हो सकता है ? इस पर उदाहरण के साथ विचार करें .
* सड़क पर कार /बाइक या स्कूटी चलाते हुए हमारी भावना स्वयं को दुर्घटना से बचाने की होती है . यदि हम भावना थोड़ी संशोधित करें कि हमारी असावधानी से कोई दूसरा हमारी गाड़ी की चपेट में आकर गंभीर शारीरिक यातना या क्षति का शिकार ना हो जाए . वह किसी परिवार का लाडला या इकलौता कमाऊ सदस्य हो सकता है . इस भावना से हम वाहन चलायें तो छोटा सा भलापन है .
* सड़क पर हम कभी भ्रमण करते हैं , देखते हैं कुछ प्रौढ़ या महिला /युवती स्कूटी या बाइक धकेलते हुए ले जाते हैं . पेट्रोल /पंक्चर या अन्य समस्या हो सकती है . यदि हम स्वस्थ हैं दस -पंद्रह मिनट का समय और कुछ श्रम लगा कर पेट्रोल पंप / रिपेयरिंग शॉप तक गाड़ी पहुंचा दें . नारी तो कम शक्तिवान होती है इसलिए और प्रौढ़ हो सकता है ह्रदय ब्लॉकेज की समस्या ग्रस्त हों . इस तरह का श्रम उनके लिए हानिकर हो सकता है . इस भावना से छोटा यह भला कर्म किया जा सकता है .
* रिजर्वेशन के कारण कुछ श्रेणी के व्यक्ति हम से बेहतर पद , सर्विस या शैक्षणिक संस्था पा गए हों . बुरा लग सकता है हमें , लेकिन यह विचार करें हमारी पूर्व समाज व्यवस्था में उनके पूर्व कुटुंबजनों ने अपमानजनक जीवन देखा है . हमारी पीढ़ी यह त्याग कर कुछ उसकी भरपाई कर रही है .
* एक सेविंग बैंक अकाउंट में हमारी कुछ जमा -पूंजी कम ब्याज दर पर जमा है . जबकि फिक्स्ड-डिपोसिट में ज्यादा दर मिलती है . कम पर गम ना कर हम सोचें बैंकिंग सिस्टम बहुत बड़ा है . हम जो बिज़नेस देते हैं उससे ही उसके व्यय उठाये जाते हैं . अब बैंक किसी नीति के अंतर्गत हमारा अकाउंट कॉर्पोरेट में परिवर्तित कर दे .बैंक जिस पर ऑटोमेटिक हमें ज्यादा दर से ब्याज देने लगता है . हमने अपेक्षा तो नहीं की किन्तु ज्यादा हमें मिलने लगा . अब बड़े इस कुछ लाभ को हम अपने मैड /सर्वेंट की महँगाई के अनुपात में पारिश्रमिक सरलता से बड़ा सकते हैं . उनके बच्चों के कपडे या अध्ययन में कुछ सहायता कर सकते हैं . यह व्यवस्था और हमारे मातहत ये मनुष्य हमारे अपने ही हैं .
* कोई भ्रष्टाचार कर रहा हो . मिलावटी सामग्री बेच रहा हो . दया भाव रखें कि क्यों सदबुध्दि नहीं मिली उसे . एक जगह तो इस अनैतिकता से लाभ ले रहा है वह,  किन्तु इस सदबुध्दि हीनता के कारण अधिकांश भी जब वैसा ही करने लगे हैं  तो सैकड़ों ऐसी जगह - दुकानों पर स्वयं वह रोग कारक सामान/सर्विस  क्रय कर शिकार हो रहा है . 
* सिनेमा हम सभी देखते हैं . नायक या नायिका को उच्च आदर्श निभाते कुछ दृश्य किसी भी फिल्म धारावाहिक में डालना निर्माणकर्ता की लाचारी होती है क्योंकि वास्तव में नायक होता वही है जो उच्च आदर्श जीता है . देखे ऐसे सिनेमा के हलके गीत-गाने तो गुनगुना लेते हैं उन्हें बार बार देखते-सुनते हैं . कभी-कभी हम देखे गए "उच्च आदर्श निभाये दृश्य" की कुछ भी नकल अपने परिवार- पास पड़ोस में  करें .. यह भी छोटा भलापन ही होता है 
इन भावना और विचारपूर्वक हम थोडा सा आचरण और कर्म संशोधित करेंगे तो  छोटा छोटा सा  हमारा भलापन समाज में मधुरता का संगीत -गीत सृजित करेगा और मानवता पोषित होगी .
--राजेश जैन
24-09-2013

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