Thursday, September 5, 2013

अब क्या करे छला गया भक्त ?

अब क्या करे छला गया भक्त ?
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किसी संत /गुरु के तेज ,प्रसिध्दि उसके उपदेशों और लेखों से प्रभावित एक साधारण व्यक्ति भी और करोड़ों के भांति संत का भक्त बन जाता है . उसके प्रति अथाह श्रध्दा करता है . अपनी बीस -पच्चीस वर्षीय भक्ति और श्रध्दा के बीच कई बार उसे संत के बारे में कुछ ख़राब चर्चाएँ सुनाई देती है . वह इसे अपने इष्ट के चरित्र हनन का प्रयास लगती है . संत के प्रति पूज्य भाव के रहते अनसुना करता जाता है .आरम्भ में ये चर्चा कुछ कम फिर बढती भी हैं . लेकिन गुरु के प्रति आदरभाव भी समय के साथ उत्तरोत्तर बड़ा होता है . अतः ख़राब चर्चाएँ उसे ख़राब लोगों का दुष्प्रयास ही लगता है .
उन बातों पर वह विश्वास नहीं कर पाता है . उसे लगता है अगर हमारे संत में कोई खराबी होती तो क्यों उसके अनन्य भक्तों की इतनी ज्यादा संख्या होती .वह भी यहीं नहीं दूर -दूर तक अनुशरण करने वाले विद्यमान होते . यह भी लगता कि गुरु ठीक ना होते उनके कर्म बुरे होते तो लगते आरोप प्रमाणित हो गए होते . इस तरह मन में चलते तर्कों के साथ श्रध्दा कायम रहती . श्रद्धालु होने का समय धीरे धीरे पच्चीस वर्ष का बीत जाता है .फिर एक दिन वह आ जाता है जब संत का एक  दुष्कर्म प्रमाणित होता है . संत विपत्ति में फंसता है . संत का प्रभाव चला जाता है जिससे  उसके दुष्कर्म पीड़ित और भी कई सामने आ जाते हैं . संत संत नहीं पाखण्डी सिध्द हो जाता है .
करोड़ों अन्य भक्त जैसे ही वह (छला)  भी उस सच्चाई (पाखण्ड ) पर विश्वास नहीं करना चाहता है . लेकिन प्रकाशित हो रहे सच को मानना पड़ता है .उसके दुखी होने के कारण हैं . उसकी आस्था छली गई है . विभिन्न सांसारिक कर्मों में व्यस्त ,भागदौड की जिन्दगी में पाए तनावों से मुक्त होने के लिए जिसकी भक्ति ,सत्संग का सहारा लेकर वह शांति अनुभव करता रहा था . वह सब तो ढोंग साबित हो गया होता है . सांसारिकता निभाने के लिए अपने मंतव्य सिध्द करने के लिए जितने छल स्वयं भक्त ने नहीं किये (भक्त संत की तुलना में हल्का मनुष्य होता है )  उस से कई गुने छल उसके इस पाखंडी इष्ट ने अपने लुभावने आश्रम ,लीला स्थल बनाकर अध्यात्म का रूप दिखाकर सम्मोहित करते अपने ही भक्तों के साथ किये .धन के अतिरिक्त बीस -पचीस वर्षों में अपने अंध श्रध्दा पर इस भक्त ने नौ हजार छह सौ घंटे ( चार सौ दिनों के बराबर ) इस संत पर व्यय किये . अनमोल जीवन का एक वर्ष से ज्यादा वह पाखंडी को पुष्ट करता चला गया .
छले इस भक्त को क्या करना चाहिए ? क्या अभी भी संत का बचाव करना चाहिए ? या  अपने अंध-विश्वास ,अंध-श्रध्दा और अंध-भक्ति समाप्त करनी चाहिए ? देखा -देखी में किसी बात को स्वयं बिना विवेक -विचार करना चाहिए ? 
'देखा -देखी' करते जाना पाखण्ड को पुष्ट करने वाली हो सकती है . इक पूरे समाज और देश की प्रतिभा को पथ भ्रमित करने वाली हो सकती है.
समाज में भोगवाद प्रवृत्ति जब बढ़ी तो बहुत से अतिभोग प्रवृत्ति के व्यक्ति हमारी धर्म श्रध्दा को देखते धर्म प्रवॄतक संत का वेश धारण कर अपने भोग-लालसाओं  को तुष्ट करने अवतरित हो गए ."वास्तव में विभिन्न धर्म तो पुरातन और सिध्द हैं .जग कल्याणकारी रहे हैं . बच्चे और नवयुवा उन पुरातन शास्त्र और ग्रंथों को नहीं जानते . धर्म की प्रभावना वर्तमान के विद्वान के माध्यम से उन तक पहुँचती है .  अर्थात आवरण आज के विद्वान होते हैं जिसके अंतर्गत प्रवर्तन हमारे स्थापित धर्मों का होता है ".ऐसे में तथाकथित ढोंगी ,पाखंडी को अंधश्रध्दा में भक्त पहचान नहीं सकें तो आवरण पर ये पाखंडी आसीन हो जायेंगे . जिस दिन पापाचार का भंडा फूटेगा . उसदिन इनसे सब की आस्था टूटेगी . ऐसे में धर्म के आवरण पर विराजित इनके कारण नई पीढ़ी की विरक्ति हमारे सच्चे धर्म के प्रति हो जाने का खतरा होगा . और धर्म से हमारे बच्चे विमुख हुए तो समाज और मानवता बुरी तरह प्रभावित हो जायेगी .
इसलिए छला भक्त अबसे भी सावधानी करे . अन्धता त्यागे तो रहा सहा तो अपना हित बचाएगा ही और भविष्य के धर्म विमुखता को (छला गया भक्त) भी रोक सकेगा .  मानवता और समाजहित के प्रति दायित्व निभा कर कुछ हद तक अपना धर्म निभा सकेगा .

--राजेश जैन
06-09-2013





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