Saturday, November 10, 2012

स्वार्थ तुम्हे क्यों मौत ना आती ?


स्वार्थ तुम्हे क्यों मौत ना आती ?

छल-कपट तुम्हारी ऐसी की तैसी
तुम उठा रहे विश्वास समाज से
धोखा तुम जा गड़ो पाताल में 
ताकि लौटे विश्वास समाज में  

स्वार्थ तुम्हे क्यों मौत ना आती ?
तुम मरते तो परोपकार लौटता 
अंधी कामवासना धिक्कार तुम्हे है 
तुम पनपा रहे व्यभिचार विश्व में 

लोभ-लालच हो सर्वनाश तुम्हारा 
बड़ा दी तुमने बहुत धन की महिमा 
हिंसा तुम बहुत क्रूर व निंदनीय 
पीढ़ियों तक उपजाती वैमनस्य हो

ढोंग तुम बहुत निष्ठुर व निकम्मे 
शिकार शंका के सच्चे संत ,तुम्हारे 
निम्न स्तर की नहीं दे रहा गालियाँ
साहित्यिक अपशब्द तुम सभी को मेरे

हमारा जीवन कटता है जैसे तैसे
मगर हमें सख्त नापसंद यह कल्पना  
आने वाली मनु संतति हो इसी हाल में 
तुम जाओ तो आये शांति -सुरक्षा 

क्या? स्वाभिमान है बचा सभी ,तुम्हारा 
क्या? जाओगे नहीं मनुष्य समाज से 
निर्दयी तुम सब दया सीखो धर्म से
विदा लो इस सभ्य मनुष्य समाज से  

निष्कलंक सभ्यता वह कहलाती 
जहाँ तुम्हारा अस्तित्व ना होता
परस्पर प्रेम ,शांति ,करुणा जहाँ बसती
सज्जनता दिखती सभ्य समाज में     

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