"कहते ज्ञान खोल देता चक्षु"
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छीन के कुछ किसी से कोई
कितने दिन सम्हाल रख पायेगा
या जो नहीं छीना भी किसी ने
कितने दिन कोई सम्हाल पायेगा
बारी जाने की तो बिना छीने
किसी के स्वयं छिन जायेगा
कैसा अंधत्व दिखता रोज पर
होता नहीं स्पष्ट यह सच हमें है
धन लोलुपता में प्राण ले लिए
अमर है क्या? जो धन को इस
अपने पास बचा रख पायेगा
छोड़ यहीं स्वयं वहीँ चला जायेगा
कहते ज्ञान खोल देता चक्षु ऐसे
भेद उचित अनुचित बीच में होवे
और कहते ज्ञान अर्जित कर रहे
आज लोग अपेक्षा पहले से ज्यादा
फिर आज का ज्ञान है ये कैसा ?
उठती दीवार गृह बीच भाइयों में देखी
न मिली खुदाई मोहन जोदड़ों में ऐसी
हीन? विकसित या वह सभ्यता बोलो..
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छीन के कुछ किसी से कोई
कितने दिन सम्हाल रख पायेगा
या जो नहीं छीना भी किसी ने
कितने दिन कोई सम्हाल पायेगा
बारी जाने की तो बिना छीने
किसी के स्वयं छिन जायेगा
कैसा अंधत्व दिखता रोज पर
होता नहीं स्पष्ट यह सच हमें है
धन लोलुपता में प्राण ले लिए
अमर है क्या? जो धन को इस
अपने पास बचा रख पायेगा
छोड़ यहीं स्वयं वहीँ चला जायेगा
कहते ज्ञान खोल देता चक्षु ऐसे
भेद उचित अनुचित बीच में होवे
और कहते ज्ञान अर्जित कर रहे
आज लोग अपेक्षा पहले से ज्यादा
फिर आज का ज्ञान है ये कैसा ?
उठती दीवार गृह बीच भाइयों में देखी
न मिली खुदाई मोहन जोदड़ों में ऐसी
हीन? विकसित या वह सभ्यता बोलो..
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