Saturday, November 24, 2012

'राजेश' का आव्हान 'सरोवर'


'राजेश' का आव्हान 'सरोवर'
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रचते स्वयं वे साहित्य पुष्प हैं 
सजाने एक साहित्य सरोवर को 
पर जब लगाते पुष्प गुच्छ हैं 
वे चुनते अन्य रचित पुष्प हैं 

उनकी भावना उतनी ही पावन
गई थी लिखी अभिलाषा पुष्प की
मुझे तोडना वनमाली तुम और
करना समर्पित मातृभूमि वीर को   

भावना से सजता साहित्य सरोवर
वह उत्कृष्ट और अनुकरणीय होती 
साहित्यकार दे निस्वार्थ योग अपना 
रूप देते निर्मल साहित्य सरोवर का 

ऐसे भाव यदि रखें अन्य भी
अपने अपने कार्यक्षेत्र में 
स्वार्थ रहित कुछ योगदान से
प्रेरणा मिले यदि आज युवा को 

समवेत प्रयास से कुछ साहसी के
तब बनेगे कुछ चिकित्सा सरोवर
न्यायालय निर्मल न्याय सरोवर
होंगे सब धर्मालय ,धर्म सरोवर  

बनेगे कई निर्मल ज्ञान सरोवर
होगा निर्मल एक समाज सरोवर 
कहलायेगा पवित्र राष्ट्र सरोवर 
प्रेरित होगा सम्पूर्ण विश्व सरोवर 

चलें पथ निर्मित करने सरोवर
करें सार्थक यह मनुष्य जीवन 
पछतावा मौत सम्मुख हमें ना 
क्योंकि होंगे पूरे दायित्व हमारे 

'राजेश' का आव्हान 'सरोवर'
निर्मित करें अपने कार्यक्षेत्र में  
सबके कार्य अति महत्वपूर्ण है
संपन्न यदि हो पूर्ण न्याय से  




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