Saturday, November 24, 2012

स्वार्थ वशीभूत न इसे मिटायें

स्वार्थ वशीभूत न इसे मिटायें
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घूम रहे दो व्यक्ति इस तरह
नीयत एक की दिखे कोई सीधा
जिसे कम यत्न से मै ठग लूं
दूजा देखे कौन विपत्ति में
जिसकी सहायता मै कर दूं
दोनों की इन दृष्टि को देखकर
अधिकांश भावना दूजे की सराहें
संस्कार मिले परिजन ,धर्म से
अच्छी बात मन अच्छी माने

फिर जब अपनी करनी पर आयें
क्यों पलड़ा पहले तरफ झुक जाए
स्वार्थवश अपने हित की सोचते
निस्वार्थ सहायता कम कर पाते
सबको इस भांति करते देखते, सुनते
सब ही इसी रास्ते चल पड़ते
फिर दोष समय पर मड़ते
समय ख़राब आया है कहते
किसी को अन्य की चिंता न होती
सबको चिंता अपने भले की होती

हम घर दरवाजे मजबूत बनाते
मूल्यवान घुस चोर न ले जाये
पर कमजोर किये ह्रदय द्वार हमने
अवगुण चोर घुस अन्दर ह्रदय में
मूल्यवान गुणों को हर रहे
जिस तरह मेहनत लगे
मजबूत घर द्वार बनाने
उसी तरह ह्रदय द्वार हेतु भी

संकल्प यदि मजबूती का न करें
तो आएगा समय और ख़राब ही
कहते स्वयं को बच्चों का हितैषी
ख़राब समय यदि लाये बच्चों पर
तो क्या सचमुच हम रहे हितैषी?

करें मंथन अगर लगे उचित तो
आसक्तियों पर लगायें पाबंदी
करें त्याग बांटे मिठास थोड़ी
अन्य भी चख सके जीवन मीठा
देखें जब अन्य ऐसा करते आपको
प्रेरणा शायद ले सकें वे थोड़ी
तब आने वाला समय शायद
नहीं होगा ख़राब आज सा
बच्चे हो सकें निहाल जिसमें
और दे सकें अच्छे संस्कार भी
होने वाले अपने बच्चों को
अगर जो हो सकें हम
अच्छे माता-पिता अपने बच्चों के
तब ही वे हो सकेंगे ऐसे
अपने बच्चों के लिए भी
यह थी इस माटी की परम्पराएँ
स्वार्थ वशीभूत न इसे मिटायें
स्वार्थ वशीभूत न इसे मिटायें

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