Monday, November 26, 2012

क्षमता सच्चे नायक पहचान की खोते


क्षमता सच्चे नायक पहचान की खोते 

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कौन माता-पिता ऐसे जो संतान से कहते 
ज्यादा धन अर्जन के पीछे न पड़िये
स्वच्छ मार्ग और मेहनत से आ जाये 
उस धन से मित व्ययी हो यापन करिये

यदा कदा जहाँ संस्कार ये दिए जा रहे 
वहां बाहर के वातावरण प्रभाव दिखा रहे 
संतान द्वन्द भ्रम भंवर में पड़ रही
क्योंकि लक्ष्य आडम्बर रख भागते सब दिखते


जिनके भव्य गाड़ी , परिधान और बंगले
अहम् जिनके उपलब्धि कारण बड़े हैं
अहम् और आडम्बर को प्रभाव में ले वे
बाध्य ,मासूमों से बहु शारीरिक सम्बन्ध बनाते

आधुनिक माध्यम यह जीवन सफल बताते
युवा उन्हें आज आदर्श व नायक मानते
फिर प्रयास उसी पथ चलने का करते
क्षमता सच्चे नायक पहचान की खोते

दौड़ ,भाग ,चिंता और तनाव में उलझते
उर्जा बचती नहीं विवेक जगा समझते
संक्षिप्त मार्ग धन अर्जन को तलाशते
भौतिक सामग्रियां एक एक कर जुटाते

वही शिक्षा -संस्कार अपने बच्चों को देते
सम्पति जो स्वयं बनाने में असमर्थ रहते
महत्वाकांक्षा इस अधूरी को उन पर डालते
स्वयं और बच्चों को भोगवादी बना डालते

तीस चालीस वर्ष में ही रोग उन्हें आ घेरते
व्यस्तता ऊपर उपचार हेतु समय कारण से
समय कमी माँ-पिता प्रति कर्तव्य निभाने
न रही अच्छी संतान अब गूँज सब दिशा में

चेताया था वैयक्तिक भोगवाद एक विषधारा
कर रचना पचास वर्ष पूर्व राष्ट्र-कवि ने सबको
'राजेश' करते हुए यह उल्लेख दाद नहीं चाहे
समस्या उन्मूलन हेतु विवेक विचार मात्र चाहे

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