आँखें मेरी भर आती हैं
धन की सत्ता बढ़ी यूँ है
मानव मन बेखबर यूँ है
करुण दृश्य दिखते यूँ हैं
आँखें मेरी भर आती हैं
आये कोई भोजनालय में
थोडा खा उठे पर भूखा ही
भूख तो रह गई अभी शेष
पास चुकाने धन नहीं शेष
उपचार कराने जाता रोगी
सुन कीमत उपचार दवा की
लौटे इलाज अधूरा कराये कि
पास चुकाने धन नहीं शेष
देखते करुण दृश्य आसपास
पीड़ा अनुभव कर पाते नहीं
धन अभाव में रोगी व भूखे
बाध्य हो नित यूँ जी रहे हैं
जीवन मोह रहता है शेष
उदर क्षुधा रहती है शेष
उठे यों बीच से कोई जब
आँखें मेरी भर आती हैं
सम्मोहित हो आडम्बर में
अग्रसर दयाहीन दिशा में
समाज यूँ दिग्भ्रमित जब
आँखें मेरी भर आती हैं
मस्तिष्क विवेकशील जब
भूल अनुभव करेगा क्या
मन में है ये विश्वास मेरे
आएगा सही पथ ये समाज
जीवन न राजेश बहुत शेष
रहेगी क्या ये जिज्ञासा शेष
या हो सकेगी ये भूल सुधार
आँखें मेरी भर आती हैं
(संपादित)
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
28.04.2020
धन की सत्ता बढ़ी यूँ है
मानव मन बेखबर यूँ है
करुण दृश्य दिखते यूँ हैं
आँखें मेरी भर आती हैं
आये कोई भोजनालय में
थोडा खा उठे पर भूखा ही
भूख तो रह गई अभी शेष
पास चुकाने धन नहीं शेष
उपचार कराने जाता रोगी
सुन कीमत उपचार दवा की
लौटे इलाज अधूरा कराये कि
पास चुकाने धन नहीं शेष
देखते करुण दृश्य आसपास
पीड़ा अनुभव कर पाते नहीं
धन अभाव में रोगी व भूखे
बाध्य हो नित यूँ जी रहे हैं
जीवन मोह रहता है शेष
उदर क्षुधा रहती है शेष
उठे यों बीच से कोई जब
आँखें मेरी भर आती हैं
सम्मोहित हो आडम्बर में
अग्रसर दयाहीन दिशा में
समाज यूँ दिग्भ्रमित जब
आँखें मेरी भर आती हैं
मस्तिष्क विवेकशील जब
भूल अनुभव करेगा क्या
मन में है ये विश्वास मेरे
आएगा सही पथ ये समाज
जीवन न राजेश बहुत शेष
रहेगी क्या ये जिज्ञासा शेष
या हो सकेगी ये भूल सुधार
आँखें मेरी भर आती हैं
(संपादित)
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
28.04.2020
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