Tuesday, November 27, 2012

प्रेम मूल मन्त्र सुखी समाज लिए होता

प्रेम मूल मन्त्र सुखी समाज लिए होता
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प्रेम एक अति मधुर प्रचलित शब्द
जो प्रथम दृष्टया मिश्री घोलता
मीठे में कीड़े लगने की आशंका
अतः कठिन प्रेम सम्हालना होता

प्रेम डालता प्रेमियों पर जिम्मेदारी
जब ले रहे प्रेम को सीमित अर्थ में

प्रेम भाव प्रमुखतः ह्रदय से होता
किन्तु आज इसे मात्र तन से जोड़ते

पति-पत्नी मध्य जो प्रेम है होता
वह मन अतिरिक्त तन साथ होता
अन्य संबंधों में प्रेम ह्रदय में होता
अति विस्तृत प्रेम की सीमा होती

जहाँ प्रेम वहां सामीप्य में प्रसन्नता
प्रसन्न ह्रदय आत्म विश्वास जगाता
जिनमें प्रेम उनमें आदर भाव जागता
अतः बैर मिटाने प्रेम एक आवश्यकता

जहाँ प्रेम वहां रक्षक भाव भी होता
रक्षा हेतु आती एकता और वीरता
जिससे प्रेम उस पर यदि आता संकट
करुणा,त्याग भाव तब ह्रदय में आता

पवित्रता ,मधुरता,विश्वास , प्रसन्नता
रक्षा , त्याग, करुणा ,एकता और वीरता
जहाँ प्रेम वहां सब अस्तित्व में होते
प्रेम मूल मन्त्र सुखी समाज लिए होता

बहु प्रचारित किया अर्थ आज प्रेम का
प्रेम को जकड़ा सीमित अर्थ में
जब जगती वासना किसी साथ में
उसे बताया जाता प्रेम उनके बीच में

वासना फिसलती वह अति चंचल होती
अतः कई साथ छल करने का कारण होती
प्रेम भाव और प्रेम शब्द अति पावन होता
पर वासना ,छल में छद्म प्रेम बताया होता

प्रेम मिटाता शत्रुता पर बना अब कारण बैर का
मिटाता बैर ,वह प्रेम भारतीय होता
पाश्चात्य प्रभाव से प्रेम छद्म हो लाता बैर
राजेश चाहे उपाय भारतीय प्रेम प्रसार का                                                   

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