इक्कीसवीं सदी के भाग्यशाली बच्चे
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बच्चों मेरे प्रिय तुम बच्चों
तुम जन्मे इक्कीसवीं सदी में
जो कहाती अति आधनिक सदी है
इस तरह तुम अति भाग्यशाली हो
खोलीं तुमने आँखें अति साधनों बीच है
ऐ सी ,फ्लाईट ,मोबाईल ,नेट सुलभ हैं
मिलते ट्वॉय इलेक्ट्रॉनिक तुम्हें हैं
खाने मिल रहे पिज़्ज़ा ,नुडल्स ,कुरकुरे हैं
और भी भोज्य अति स्वादिष्ट तुम्हारे हैं
शिक्षा तीन वर्ष में तुम्हारी होती प्रारंभ है
पढने जाते बस और कारों में तुम हो
यूनिफार्म रंग बिरंगी तुम्हारी है
जल्दी तुम करते दक्षता अंग्रेजी में हो
एक या दो तुम "आँखों के तारे "
पलते घर में अति लाड दुलार बीच हो
जिद तुम्हारी पूरी सभी हों
पिता माँ रखते यह ख्याल बहुत हैं
इसलिए माँ भी जाती है कमाने
पर मेरे प्रिय तुम बच्चों
मै संशय में बहुत ही रहता
ऊपर की जिन बातों से तुम्हे हैं
सब मानते भाग्यशाली तुम्हे हैं
उनमे ना जाने क्यों मुझे संशय है
मुझे लगता हीन भाग्य तुम्हारा
आज की सुख सुविधा बीच में तुम
पलते आया की गोद में तुम हो
माँ जो खिलाती थी हमें खाना
वह बनाती स्वयं हाथों से अपने
जिसमें पौष्टिकता और स्नेह था होता
पकवान ढेर घर में ही बनते
शुध्द घी और गुड मावे में
यद्यपि ना थे टी वी सुलभ बहुत
इसलिए खेला करते बच्चे घर आँगन में
परिश्रम से खेल आउट डोर के
बच्चे होते स्वस्थ ,गठीले शरीर के
पलते जब थे सयुंक्त परिवारों में
सुलभ थी गोद दादा दादी , ताऊ ताई की
तुम पाते संस्कार ,भारतीय संस्कृति के
मिलता ध्यान बड़ों का अधिक था
घर के बाहर बच्चे थे निकलते
मिलते उन्हें आस पड़ोस के बड़े थे
सब होते बहन ,भैय्या चाची और चाचा
ना बच्चे ना पिता और माँ थे
जैसे आज होते अति व्यस्त सभी हैं
घर पड़ोस में रहती तसल्ली थी
जीवन जीते अति सहज सभी थे
जैसा आज आडम्बर ना होता तब था
पढ़कर यह पुरातन मुझे ना कहना
सब इतने के बाद भी तुमको
मै कहना भाग्यशाली तुम्हे चाहता
गर ले सको संस्कार उच्च से
पढ़कर प्रेरणात्मक साहित्य स्वयं से
गर लौटाओ भारतीय संस्कृति अपनी
सब आधुनिक साधनों बीच में
ह्रदय से करता कामना ऐसी
तुम बनो भाग्यशाली ऐसे
श्रेय मिले ढूँढने संस्कृति का तुम्हें
जो खोई विरासत थी हमने
तब होंगे तुलना में हीन वे बच्चे
जिन्होंने ली प्रथम श्वांस पिछली सदी में
कर दो सिध्द यह मेरे बच्चों तुम
तुम हो भाग्यशाली ,अति भाग्यशाली
भाग्यशाली मेरे तुम प्यारे बच्चों ..............
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