भारतीय संस्कृति और मानवता का बचाव
मनुष्य का शरीर , शरीर का बनाव ,श्रृंगार तथा वस्त्र हार्डवेयर रूप में , और ह्रदय (मनो-मस्तिष्क ) में जगह करने वाले सिध्दांत ,विचार को सॉफ्टवेयर रूप में देखें .तो भारतीयता और भारतीय संस्कार के लिए , हार्डवेयर का महत्व ज्यादा नहीं होता है ,सॉफ्टवेयर अवश्य ही भारतीय संस्कृति अनुमोदित रहने से समाज और विश्व में भारतीय संस्कृति ,परम्पराओं और मर्यादाओं को पुनः स्थापित कर मानवता की भलाई की जा सकती है.
भारतीय संस्कृति क्या है ? इसका सबको अपने तरह का विवरण और ज्ञान होगा. जिन्होंने (विशेषकर नव-युवाओं ) इसके अर्थ के तरफ कभी चिंतन मनन नहीं कर पाया है ,संक्षिप्त में उन्हें यह उल्लेख करना उचित होगा .भारतीय संस्कृति को जो मानते रहे हैं उनके ह्रदय में उमड़ने वाले विवेक विचारों में निम्न बातों की प्रमुखता होती है .1. उदारता 2. करुणा 3. परस्पर स्नेह 4. परस्पर विश्वास 5. न्याय 6.सत्य .7 अहिंसा 8.चरित्र 9.आडम्बर मुक्त 10 आत्म विश्वास .... और भी कुछ अन्य .सामाजिक वातावरण पाश्चात्य प्रभाव में प्रभावित हुआ . और भारतीय ह्रदय में सॉफ्टवेयर (विश्वास-विचार) डिगने लगे .प्रभाव हर क्षेत्र में धीरे धीरे दिखने लगे .
20-25 वर्ष पूर्व किसी संस्थान से वरिष्ट पदों पर आसीन अधिकारी रिटायर होते समय यह सोचता था , उसने संस्थान में कार्यरत रहते अपने परिवार का भरण पोषण कर लिया , बच्चों को उचित शिक्षा दिलवा दी , अपने लिए कुछ मान सम्मान अर्जित कर लिया , कुछ धन भी संग्रह कर लिया . इस सबके साथ जीवन का शेष समय सुविधा से कट जायेगा। अब मै ऐसा कुछ कर लूं , जिससे संस्थान आगे भी उन्नति कर सके और संस्थान जिस प्रकारकी सर्विस जुड़े उपभोक्ता / नागरिकों को देता है वह इससे बेहतर तरीके से जारी रह सके .इससे अभी जो हैं और बाद में जुड़ने वालों का जीवन भी मेरी जैसी सरलता से इसको साथ देते और इसके सहारे से व्यतीत होता रहे .परिस्थितियां बदली आज रिटायर हो रहे ऐसे वरिष्ट की चिंता कुछ इस तरह होने लगी , मेरे थोड़े से दिन बचे हैं कैसे सुविधा से निकाल लूं , कैसे कुछ और धन बना लूं , जिससे आगे आसानी हो और फिर बाद संस्थान को जो होना हो होता रहे .
यह सब हार्डवेयर के बदलाव से नहीं हुआ है। हमारे अन्दर बदल रहे सॉफ्टवेयर से हो रहा है। सॉफ्टवेयर एक दो या कुछ में बदल गया होता तो सरलता से ठीक किया जा सकता था . पर यह अधिकांश में बदल गया . ऐसे बहुसंख्य बदलाव संकेत करता है आज का वातावरण (ENVOIRNMENT) कुछ ऐसा हो गया है जो अधिसंख्य भारतीय नागरिकों के अन्दर का सॉफ्टवेयर सुलभता से बदले जाने में सहायक हो रहा है . वातावरण बदलने के आरोपित कारण का विस्तृत वर्णन और लेखों में किया गया है . संक्षिप्त में रोज हम क्या देख रहे हैं , किस से प्रेरणा ले रहे हैं . क्या पढने में ज्यादा समय लगा रहे हैं . वह हममें बदलाव ला रहा है . और अधिसंख्य भी जब वही सब कर रहे हैं तो पूरा वातावरण ही बदल जा रहा है . जब वातावरण ही कुछ दूसरे प्रकार का हो गया है ऐसे में पुराने सॉफ्टवेयर के साथ अपवाद कुछ रहना भी चाहें तो SERVIVAL ( बचाए रखा जाना ) कठिन हो रहा है . भारतीय संस्कार तो विश्व के अन्य क्षेत्र के मनुष्य (हार्डवेयर ) के अन्दर डाले जा सकते हैं . लेकिन हो उल्टा रहा है उनका सॉफ्टवेयर भारतीय मनुष्य के अन्दर के संस्कृति का स्थान ले रहा है .
ऐसे में भारतीय संस्कृति अनुमोदित संस्कार कैसे दिए जा सकते हैं , और दिए जाएँ तो ग्रहण करने वालों को किन चुनौतियों से दो चार होना पढ़ेगा . कल्पना की जा सकती है।ऐसा संक्षिप्त रास्ता ढूंढना कि मै तो छुप कर या प्रकट में जो मन मर्जी हो करूँ पर दूसरे सुसंस्कारित रहते हुये व्यवहार करें / या संस्कृति का ध्यान और चिंता रखें . यह आचरण समस्या नहीं सुलझा सकेगा . क्यों कि अगर इसमें मजा हम को आता है तो दूसरा कोई अलग माटी का तो शायद ही होगा जिसे इसमें नहीं , बल्कि अच्छी बात अच्छी लगेगी . आशय यह है कि जिस आचरण से संस्कृति बचाई या पुनर्जीवित नहीं की जा सकती वैसा आचरण त्यागना होगा . कोई दूसरा त्यागे उससे पहले आरम्भ अपने से करना होगा .
यही मार्ग दिखाई पढता है। अगर यह त्याग हम नहीं कर सकते हैं . तो हम दूसरी एक बात त्याग करें . वह है " हम संस्कृति के ख्याल को मन से विदा कर दें , उसके संबंध में चिंता अपनी चर्चाओं और अपने लिखने पढने से दूर कर दें " . हम अपने मन के राजा हो कर जियें . हमारे बच्चे एक कदम और आगे बढ़ाएंगे . हमें यह भी चिंता छोड़ देनी चाहिए। हमें अलग कर अगर कोई और संस्कृति को महत्व देगा और आचरण , इक्छा शक्ति उसमें या उनमें ज्यादा होगी तो संस्कृति बचा ली जाएगी . अन्यथा अन्य भी सब आदत से लाचार होंगे तो पूरे विश्व में वैयक्तित भोगवाद की संस्कृति चलेगी , वैश्विक होगी वह . कोई भारतीय या पाश्चात्य नहीं रह जाएगी भेद ख़त्म होगा .
पढने में यदि बुरा लगता है तो गंभीरता से सोचना और करना होगा उपाय . नहीं तो बहुत सरल है , सब मजे में रहेंगे जिसका जितना प्रभाव , ताकत और इक्छा में प्रबलता होगी उस अनुसार उपभोग करता जायेगा. कभी एक दूसरे से भोग के रास्ते में टकराव होगा तो जो शक्तिशाली होगा दूसरे पर काबू कर अपना मंतव्य सिध्द करेगा . जो आज दूसरे द्वारा काबू कर लिया गया है , अपने समय (बारी ) की प्रतीक्षा कर लेगा। अक्सर बारी जीवन में सभी की आ ही जाती है. कभी नाव नदी पर होती है कभी नदी नाव पर हो जाती है . क्रम चलेगा . जी हाँ जानवर विमान ना तो चला रहा होगा , ना उसमें चल रहा होगा . वह ना ही भव्य / आलीशान महलों में भी निवास कर रहा होगा . लेकिन उसके जैसे भोज्य की चाह ( जिसे पसंद किया शिकार किया और भोजन बनाया ) , जितने और जब जब मिले उनसे रति सम्बन्ध बनाये . और जब आयु पूर्ण हुई चले गए . यह हैवानियत हम मनुष्य में निवास करने लगेगी . आदि काल का मानव से तब हम भिन्न होंगे , वह नग्न और जंगलों में रहता था , जानवर जैसा विचरण करता और अमर्यादित था . हम वस्त्रों में होंगे ,भवनों में रहेंगे विचरण भले विमानों में करेंगें पर अमर्यादित वैसे ही हो जायेंगे।
अभी भी मानव समाज का बचाओ भारतीय संस्कृति की ओर वापस आने पर किया जा सकता है . अभी भी भारत में रह रहे व्यक्ति के ह्रदय से सॉफ्टवेयर पूरी तरह नहीं बदला है .अभी भी वह क्षमता बाकि है जिससे रोलबैक (वापस लौटना) संभव है .
अन्य क्षेत्र से मानवता की भलाई में अग्रणी बनने या नेतृत्व की आशा नहीं की जा सकती है. मनुष्य पाश्चात्य क्षेत्रों में यांत्रिक हो गया है . भारतीय संस्कृति में उल्लेखित विशेषताओं पर कोई विशेष चिंतन वहां बचा नहीं है . अपना बचाओ सभी चाहते हैं . उनका इस हेतु समाधान व्यवस्था रूप में ढूँढने का है . अर्थात मनुष्य के ह्रदय में सॉफ्टवेयर (विवेक-विचार ) से किसी को कुछ लेना देना नहीं है . आदत और आचरण व्यवस्थाओं के भय से कोई भी दुरुस्त रखे यह उनके लिए पर्याप्त है. भोगवाद प्रमुख है . मनुष्य जीवन का यही प्रयोजन है . धन की महिमा बढ़ी कर ली है. अपनी चालाकी से , यह अधिकतर प्रकृति प्रदत्त संसाधनों पर अपना वर्चस्व उन्होंने किया है. धन की ताकत से अच्छे से अच्छा क्रय करने की क्षमता उत्पन्न कर ली है . विश्व के किसी भी हिस्से में वह सामग्री जो उनके उपभोग में प्रिय है उन तक इस क्षमता के होने से पहुँच जाती है. रति सम्बन्ध मन-बहलाने का एक प्रमुख स्त्रोत बना है. प्रचुरता से उसकी सामग्री /वीडियो/लेख/कहानियां में उपलब्ध की जा रही है . यही देख दिखला कर 10-12 वर्ष के बालक बालिकाओं को भी इस हेतु प्रवृत और सम्मोहित किया जा रहा है. उनके मन में यही सॉफ्टवेयर डाला जा रहा है. यही जीवन और मौज मजा है .भारत में यह सब नहीं होता था . यहाँ जान बूझकर लाया जा रहा है . अगर हम भी इसमें लिप्त हो जाएँ या कामना ही ऐसी रखने लगें तो विरोध और आलोचना का खतरा उनके लिए नहीं रह जाने वाला है.
हमारे धार्मिक विश्वास अलग रहे हैं . हमने जीवन समाप्त होता है पर जीव अनश्वर है (जो सर्व काल रहने वाला है) माना है . किसी ने किसी रूप में शरीर में हमारे अन्दर की आत्मा अस्तित्व में हमेशा रही है रहेगी . हमारे जीवन में अनुकूलताएँ /प्रतिकूलताएं हमारे जन्म-जन्मान्तर के पुण्य और पापों के अनुरूप आती जाती हैं. संस्कृति से हमें संस्कार ऐसे ही मिलते आयें हैं . तभी हम आज भी सम्मोहित तो भोगवाद -प्रमुख पाश्चात्य दर्शन से हो रहे हैं . फिर भी उनकी व्यभिचार प्रवृति का अनुकरण करते भी हैं तो डर-छिपकर . ऐसा जब कर भी लेते हैं तो एक अपराध बोध मन में कभी आता है ,आत्मग्लानि भी उत्पन्न होती है . यह अपराध बोध और आत्मग्लानि भारतीय ह्रदय से निकालना पाश्चात्य यांत्रिक मनुष्य चाहता है. जबकि यह ही वह आशा की किरण अभी बाकि है , जिसके कारण हम अपनी संस्कृति बचा सकते हैं . मानवता को बचा सकते हैं . इसका नेतृत्व करते हुए पुनः भारत की पुरातन गरिमा और महत्व को बचा कर शेष विश्व का भी विनाशकारी मार्ग /पतन की ओर अग्रसर मानव अस्तित्व को बचा सकते हैं .
वास्तव में अपनी संस्कृति के लिए किसी भाषा विशेष या पाठ्यक्रम विशेष की शिक्षा अनिवार्य नहीं है . किसी भी भाषा का जानकार ,ह्रदय में संस्कृति अनुमोदित विचार और विवेक धारण कर सकता है . जिन्हें आचरण में लाये जाने के लिए भी भाषा कोई सीमा नहीं है. यह अवश्य उल्लेख करना होगा कठिनाई एकमात्र यह है , आज सब जिस दिशा में चल रहे हैं , उससे अलग होकर दिखना और चलना पड़ेगा . कुछ अवश्य ही इस मार्ग के पथिक मिल जायेंगे . जब संख्या बढे और ये कुछ , कुछ अधिक हो जाएँ तो समझिये मनुष्य फिर मानवता के पथ पर चल पड़ेगा . नेतृत्व हमेशा थोड़े लोग करते हैं , जो अनुशरण करने वालों को भी सही मंजिल पर पहुंचाते है. अगर आपको कोई इस मार्ग पर मार्गदर्शन देने वाला नहीं मिल रहा है तो आप ही आगे आयें . आपको नेतृत्व का दायित्व ग्रहण कर दूसरों को यह (मार्गदर्शन ) देना है .
मनुष्य यह जीवन शेष रहते सब कुछ हम पर ही है।
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