हस्त उठ रहे सहाय अपेक्षा
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भाग्य हमारे हम हैं, ठोस धरातल पर
जीवन अपना हम यों सुखद बिताते
कर उपेक्षा उन अभागों ,लाचारों की
संघर्षों में, बाध्य जीवन जो हैं जीते
देख हमें समर्थ इस धरा पर
हस्त उठ रहे बहु सहाय अपेक्षा
हमने थामें हाथ ऐसे जब जब
आ गए निकल वे ठोस धरा पर
कम हैं हम जो हैं , ठोस धरा पर
अधिसंख्य हैं , अब भी दलदलों में
सिध्द हो रहे अपर्याप्त प्रयत्न यह
थामें हस्त हम जो हो सहाय अपेक्षा
हुआ दुःख देख स्वार्थ वह उनका
जिन्हें ले आये हम ठोस धरा पर
कर रहे उपेक्षा उन लाचारों की
जो थे उनके साथी उस दलदल में
कैसे हो उत्थान तब उनका ?
अपने जब ना दें साथ सहारा
आओ सब थामे हाथ वह उनका
जो हस्त उठ रहे सहाय अपेक्षा
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