Tuesday, September 11, 2012

छिपे पहलु

छिपा पहलु

---------------
आज सुबह अख़बार में कुछ लिखे जाने को ढूंढ रहे रवि ( स्तम्भ लेखक ) सुबह भ्रमण स्थल तक जा पहुंचा था . तब उसने दो भ्रमणकारियों में होड़ होती अनुभव की . वह उनके पीछे लग गया .
लगभग दो km तक दोनों में कभी एक तो कभी दूसरा आगे होता लगता . अंत में २०-२२ वर्ष का युवक आगे हो निकल गया . रवि ने पिछड़े लगभग ४० वर्षीय व्यक्ति को परिचय दिया और उनका सेल नंबर लिया .फिर युवक के पीछे लग उस तक पहुँच उससे कहा , बधाई ..
युवक ... किस बात की ?
रवि ... आप अभी पैदल चाल में जीते हो , मै प्रत्यक्ष देख रहा था .
युवक .... धन्यवाद , असल में वे सज्जन अपने आप को तुर्रम समझ रहे थे ,इसलिए पूरा जोर लगा दिया था , अब वे तुर्रम न समझेंगे कम से कम मेरे सामने .
रवि ... धन्यवाद , आपको .
युवक ... ठीक है ... जरुरत नहीं...
रवि तब एक पार्क में एक बेंच पर जा बैठा . उसने नोट किये उस सेल पर कॉल किया . रिप्लाई मिलने पर कहा .. नमस्कार महाशय में रवि बोल रहा हूँ .
महाशय .. नमस्कार , जी कहिये .
रवि ... आपका और युवक की अभी की स्पर्धा में प्रत्यक्ष देख रहा था ..
महाशय ... जी हाँ .
रवि .... आपने .. आगे रहने का भरसक प्रयास किया , अच्छा लगा .
महाशय .. ऐसा नहीं कुछ और था वह .
रवि (जिज्ञासा से ) .... क्या था ?
महाशय ... युवक तो २० वर्ष छोटा था ,शारीरिक क्षमता मुझसे ज्यादा ही होगी उसकी , आगे तो उसे ही रहना था .
रवि ... फिर आप कई बार आगे पीछे क्यों हो रहे थे उससे ?
महाशय ... मै उसके सामने कड़ी चुनौती रख रहा था ...
रवि .... इससे , आपको क्या हासिल हुआ ...
महाशय .... मुझे नहीं हासिल उसे होना था .
रवि .... कैसे ?
महाशय ... उसके श्रम और गुणवत्ता में सुधार हो रहा था .
रवि ..... समझ गया , महाशय . हार्दिक धन्यवाद
कहते हुए फोन काटा और डायरी निकाल लिखने लगा उसे लिखने को वांछित कथा वस्तु मिल चुकी थी .

--------------**-------------

 

छिपा पहलु  - 2


रवि पिछले दिन एक अच्छी कथा वस्तु हासिल कर लिए जाने से प्रसन्न था. आज सुबह इस उत्सुकता में फिर वहां पहुँच गया , जहाँ कल एक स्पर्धा को देखा था .
आज युवक तो नहीं दिखा पर महाशय आज भी भ्रमण पर थे . आज उनके पीछे एक पचास -बावन के सज्जन थे . लग रहा था कि वे महाशय कि बराबरी करना चाह रहे हैं .
आज महाशय उनसे कोई स्पर्धा में रूचि लेते नहीं लग रहे थे . 2 km
कि दूरी तय होने पर रवि महाशय के सम्मुख जा पहुंचा था .
रवि ... महाशय , नमस्कार जी .
महाशय ... नमस्कार , रवि कैसे हो ?
रवि ... जी ठीक ,एक बात पूछनी है.
महाशय .. हाँ ,कहो .
रवि ... आप कल कि स्पर्धा से थके हैं क्या ?
महाशय ... नहीं तो , ऐसा क्यों कह रहे हो ?
रवि ... आज आपने पीछे आ रहे सज्जन को तेज चलने को बाध्य नहीं किया ,स्वयं तेज चलते हुए .
महाशय .... आज वे पहली बार ही दिखे हैं , मुझे नहीं मालूम उन्हें भ्रमण का कितना अभ्यास है इसलिए .
रवि ... उस से क्या अंतर पड़ता है ?
महाशय ... पड़ता है .
रवि ........कैसे ?
महाशय .... मेरे एक रिश्तेदार , तीन चार वर्ष पूर्व कुछ दिन मेरे साथ walk पर आते थे . उनका इतना अभ्यास न था , मुझसे कहते आप तेज चलो , मै आपकी बराबरी करूँगा . 3 -4 दिनों ऐसा क्रम चला , फिर एक दिन घर में उन्हें बैचैनी हुयी . अस्पताल ले गए तो उन्हें हल्का ह्रदयाघात था . जिससे उबरने में उन्हें कुछ समय और काफी पैसा लग गया था .
रवि ... यह तो बुरा हुआ.
महाशय ... इसलिए वह करना चाहता हूँ ,जिससे किसी को परेशानी का कारण ना बनूँ .
रवि .... बहुत ठीक , महाशय ... अब कृपया इजाजत दें ... गुड डे .
महाशय ... गुड डे .
रवि फिर पार्क में आ बैठा था , फिर डायरी ,खोल लिखने बैठ गया था ,आज फिर उसके पास लिखने का मसाला था ... अपने स्तम्भ के लिए ...




छिपा पहलु - 3
---------------------

रवि एक दिन अन्तराल बाद आज फिर प्रातःकालीन भ्रमण स्थल पर पहुंचा था . आज उसे कुछ रुचिकर सा ज्यादा कुछ नहीं दिखा था . हाँ ,एक स्थान पर उन्होंने महाशय को कुछ वृध्द से एक सज्जन के चरण स्पर्श करते देखा था . कुछ देर उपरांत वह महाशय से मिलने पहुंचा .
रवि ... महाशय , नमस्कार.
महाशय .. नमस्कार रवि ...
रवि ... वे सज्जन कौन थे ? जिनके आप चरण स्पर्श कर रहे थे .
महाशय ...

.. . उन्हें मै गुरु का आदर देता हूँ .
रवि .... आपको कभी पढाया था उन्होंने ?
महाशय ... नहीं .. एक बार कुछ अपनी निजी बातें मुझसे शेयर कीं थी , जिससे मै प्रभावित हो उन्हें गुरु तुल्य मानता हूँ .
रवि .. कैसे ?
महाशय ... उनका विवाह एक अत्यंत धनवान कन्या से हुआ . लेकिन अपने साथ उन्होंने अपनी पत्नी को इतना समर्थ आर्थिक परिवेश ना दे सके थे .
रवि ... फिर ?
महाशय .... साथ ही अपने लापरवाही के जीवन यापन से स्वयं अस्वस्थ हो गए , और 35 वर्ष पहुँचते पहुँचते उन्हें शंका हुई , आगे ज्यादा नहीं जी सकेंगे.
रवि ... तब ?
महाशय ..... आभासित मौत के परिणाम से उन्होंने गंभीरता से विचार किया . उन्हें लगा धनवान घर की कन्या को समर्थ आर्थिक परिवेश ना दे पहले ही पत्नी को मै विषम जीवन से दो चार करा चूका हूँ . मौत से वैधव्य उनके लिए एक अभिशाप हो जायेगा .
रवि ... हूँ .
महाशय ..... तब उन्होंने जीवन की परवाह प्रारंभ की अपने को अनुशासित किया , दैनिक दिनचर्या सुधार कीं . भोज्य नियमित और पोषकता से चयनित किये , प्रातःकालीन भ्रमण आरम्भ किया .स्वयं स्वस्थ हुए , पत्नी को सुधार के पीछे के कारण का संकेत भी नहीं दिया . और आज तक जीवित हैं अब .
रवि ... वाह , वास्तव में गुरु हैं वे . उनका पता दीजिये कभी मिलूँगा उनसे , आशीर्वाद लेने के लिए .
महाशय ... हाँ लिखो .
महाशय से पता ले उनसे विदा ली और फिर पार्क की बेंच पर जा बैठ डायरी खोल कुछ लिखना आरम्भ किया रवि ने .




छिपा पहलु -4

----------------------

रवि आज बताये पते पर तलाशता हुआ पहुँच गया था. घंटी बजाने पर जिन्होंने किवाड़ खोले वे गुरु थे . रवि को नहीं पहचानते थे अतः मुख पर प्रश्नवाचक भाव थे. रवि चरण स्पर्श करता है.

रवि..... सर , मै एक दैनिक में स्तम्भ लेखक हूँ . देखिये , मेरा परिचय पत्र .

गुरु ... क्या चाहते हैं मुझसे .

...

रवि ... मै गुरु माँ से कुछ विवरण चाहता हूँ , आप को आपत्ति न हो तो .

गुरु ( आदर सूचक गुरु माँ संबोधन किस के लिए है ,समझते हुए घर में अन्दर की ओर मुखातिब हो आवाज देते हैं ) .... वंदना ,तुमसे मिलने आगुन्तक हैं .

अन्दर से आते हुए , वंदना रवि को पहचानने के प्रयास करते हुए .... जी हाँ , कहिये .

रवि .... आप कुछ समय दें तो अपने दैनिक पत्र के लिए आपसे कुछ विवरण लेना चाहता हूँ .

वंदना (बैठते हुए , रवि को सामने बैठने का संकेत करते हुए ) .... जल वगैरह लेना चाहेंगे ,अथवा बात आरम्भ करें !

रवि ... नहीं अभी आवश्यकता नहीं है ,गुरु माँ .

संबोधन ऐसा लगा वंदना को प्रभावित करता है . गुरु , जब यह समझते हैं कि उनकी आवश्यकता नहीं है , बताते हुए अन्दर चले गए हैं .

गुरु माँ ... ऐसा आदर किस बात के लिए ?

रवि .... बाद में बताऊंगा ,क्या हम चर्चा आरम्भ करें ?

गुरु माँ ... जी हाँ .

रवि... आप के विवाह को कितने वर्ष हुए हैं तथा अपनी आर्थिक हैसियत किस वर्ग की मानती हैं ?

गुरु माँ ... विवाह हुए 30 वर्ष हुए हैं , हम मध्यम वर्गीय श्रेणी में रखे जा सकते हैं .

रवि ... आप अपने वैवाहिक जीवन को कैसा मानती हैं.

गुरु माँ ... श्रेष्ठ .

रवि ... किस बात की प्रमुखता से ?

गुरु माँ ... मुझे मेरे पति से विश्वास और पूर्ण स्वतंत्रता इन तीस वर्षों में पूरे समय मिली है . इसलिए .

रवि ... आपके विवाह के पूर्व मायके में भी आर्थिक हैसियत क्या मध्यम वर्गीय ही थी ?

गुरु माँ ... नहीं वहां वैभव ज्यादा था .

रवि .. . तब भी आप वैवाहिक जीवन श्रेष्ठ मानती हैं , कुछ और स्पष्ट कीजिये .

गुरु माँ ... मायके में हमें सुरक्षा हमारे पिता से और विवाह बाद यह पति से मिलती रही है . हमारे पिता ज्यादा धनवान थे , यहाँ पति उतने समर्थ तो नहीं हैं . पिता हमें समस्त अनुकूलताएँ उपलब्ध करा देते थे यहाँ आर्थिक तो नहीं पर दूसरी अनुकूलताएँ मुझे संतुष्ट करती रहीं हैं . मैंने पति और पिता में तुलना नहीं की पिता कुछ गुणों के कारण और पति दूसरे गुणों के कारण मेरे लिए आदरणीय रहें हैं . तुलना ना करना आनंद देता रहा है . सभी में कुछ विशेष गुण होते हैं ... मै उन गुणों को अनुभव कर उन्हें आदर देती हूँ . मेरा द्रष्टिकोण ऐसा है .

रवि ... वाह गुरु माँ ... इस बात की ही प्रत्याशा में मैंने आप को गुरु माँ संबोधन किया था . आप इजाजत दें फिर आऊंगा आपका आशीर्वाद लेने .

रवि चरण स्पर्श करते हुए विदा लेता है .
 
 
 
छिपा पहलु -5

----------------------

एक वृध्द पार्क में बैठे थे , तब तीन युवक हँसते ,बतियाते आकर पास की बेंच पर आ बैठे . उनके स्वर चहकते हुए कुछ ऊँचे थे जिससे उनकी बातें वृध्द को सुनाई पढ़ रही थीं .

वे हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा को मिले जुले रूप से उपयोग कर रहे थे . वृद्ध उनका आशय जो ग्रहण कर पा रहे थे , वह कुछ इस प्रकार था .

पहला ... यार मै तो बूढ़ा होना पसंद नहीं करूँगा ... ये बूढ़े भी ना जाने ...
कैसे होते हैं , दादा जी के पैर पढो तो कहते हैं ... अन्शुमान हो (हँसता है ) .

दूसरा ... मेरे ताऊ दूरदर्शन पर अच्छा सीन देखते हैं तो कहते हैं .... नयनाभिराम दृश्य ... मालूम नहीं , अंग्रेजी सिखाओ तो कहेंगे .. कठिन है , फिर ना जाने हिंदी के कठिन -कठिन शब्द निकाल सुनाते हैं .

(वह हँसता है बाकि दो भी हँसते हैं . )

तीसरा ..... अपढ़ से हैं ये , अंग्रेजी नहीं सीख सकते , हमें बोलते हैं तुम्हे हिंदी नहीं आती . क्या हिंदी से कोई नौकरी मिलती है आजकल ?

वृध्द ये सब सुन रहे हैं , तब रवि आकर उनके चरण स्पर्श करता है . अजनबी युवक को झुकता देख प्रसन्न तो होते हैं पर पूछते हैं ..

.... भैया ,आयुष्मान हो ,ऐसा आशीर्वाद दूं तो नापसंद तो ना करोगे ?

रवि ... ऐसा क्यों पूछ रहे हैं , आप ?

वृध्द .... भाई ,आजकल लोग बूढ़ा होना पसंद नहीं करते , जबकि दीर्घायु की कामना में यह भी एक मुकाम होगा .

रवि सुन संशय में दीखता है और कुछ समझने और लिखने के लिए पास ही बैठ दिमाग दौड़ाने लगता है .

No comments:

Post a Comment