हस्त जो बढ़ रहे सहाय आकांक्षा ...........
नहीं थामना , नहीं थामना ,
हस्त जो बढ़ रहे सहाय आकांक्षा ,
भले ही हो तुम बाध्य दलदल में ,
तुम्हे मिला है अवसर सुनहरा,
मानव ऐसे जो हैं ठोस धरा पर ,
जीवन उत्कर्ष पास है उनके ,
तुम हो भले ही दूर उत्कर्षों से ,
पहुँच सकोगे यदि उत्कर्ष पर ,
तब मिलेगी उपलब्धि प्रशंसनीय ,
तुमने चल दी राह वह लम्बी ,
नहीं जो अवसर उन समर्थों को ,
थोड़ी ही दूर थे जो उत्कर्ष से
मानव हर में है सामर्थ्य अनूठा ,
ठान लिया है जब हम सब ने
सिध्द हुआ ,सिध्द हुआ तब वैसा ,
हैं मुश्किल पर ना कार्य असंभव ,
गर करो विश्वास स्वयं पर ऐसा ,
कर गुजरोगे हर कार्य तुम वैसा .
जो कर दिखलाये कुछ वीरों ने ,
पूर सकोगे तुम इस दलदल को
नहीं मुझे है अब यह कहना ,
जो संघर्षरत है इस दलदल में
हर कोई है समर्थ वह ऐसा ,
पूर सकेगा वह दलदल को,
असमर्थ ऐसे अपवाद हैं होते ,
बढ़ते जिनके हस्त सहाय अपेक्षा ,
उनके लिए दयालु समर्थ हैं ऐसे ,
वे हस्त बढ़ाते सहाय आकांक्षा ,
हर नियम के अपवाद ये थोड़े ,
निश्चित तुम नहीं उन थोड़ों में,
तुम सभी में है सामर्थ्य अनूठा ,
पूर सकोगे अपने दलदल को,
भली होती है सहाय भावना ,
पर जब होती सहाय कोई घटना ,
अस्तित्व आता तब कृतज्ञता का ,
तब होती ये समर्थों की अपेक्षा ,
माने कृतज्ञ तब उनकी आज्ञा,
गर नहीं पसंद जब कोई कृतज्ञ को ,
कहलाते हैं घोर क्रतज्ञना वे ,
जो लगता है अप्रिय उनको
गर नहीं असमर्थ अपवाद से ,
खतरा लेते क्यों अप्रियता का ,
बना लो अपना स्वाभिमान ऐसा
कर लें संतोष हम उपलब्ध थोड़े में ,
स्वाभिमान से जो हैं बढ़ते ,
जीवन पथ पर अनुशासित से ,
मिलती है तब जीवन मंजिल
भले ना फैले यश कीर्ति की ,
तब भी हैं वे कृति अनूठी
ऐसे थे प्रयास निरंतर
ले आये मानव विकास ये वैसा ,
जो रही है कसर अब भी ,
वह आई है अब तुम्हारे पाले ,
कर न्याय कसर वह पूरी तुम ,
अवश्य करो सार्थक जीवन अपना
नहीं कहाओगे अपढ़ गंवार तब ,
रीत मिटा दो इस धरती से ,
कहलाने का अपढ़ गंवार का ,
जो है लाती समाज अशांति ,
बनो तुम अब शांतिदूत से ,
इतना कहकर सब में फिर ,
करता पुनः आव्हान हार्दिक ये ,
नहीं थामना , नहीं थामना ,
हस्त जो बढ़ रहे सहाय आकांक्षा ,
No comments:
Post a Comment