Friday, September 7, 2012

हस्त वह जो बढ़ रहे सहाय आकांक्षा

हस्त जो बढ़ रहे सहाय आकांक्षा ...........


नहीं थामना , नहीं थामना ,

हस्त जो बढ़ रहे सहाय आकांक्षा ,

 भले ही हो तुम बाध्य दलदल में ,
तुम्हे मिला है अवसर सुनहरा,

 

मानव ऐसे जो हैं ठोस धरा पर ,
जीवन उत्कर्ष पास है उनके ,
तुम हो भले ही दूर उत्कर्षों  से ,
पहुँच  सकोगे यदि उत्कर्ष पर ,

 

तब मिलेगी उपलब्धि प्रशंसनीय ,
तुमने चल दी राह वह लम्बी ,
नहीं जो  अवसर उन समर्थों को ,
थोड़ी ही दूर थे जो उत्कर्ष से  

मानव हर में है सामर्थ्य अनूठा ,

ठान लिया है जब हम सब ने

सिध्द हुआ ,सिध्द हुआ तब  वैसा ,

हैं मुश्किल पर ना  कार्य असंभव ,

 

गर करो  विश्वास  स्वयं  पर ऐसा  ,

कर गुजरोगे हर कार्य तुम वैसा .

जो कर दिखलाये कुछ वीरों ने ,

पूर सकोगे तुम इस दलदल  को 

 

नहीं मुझे  है अब यह कहना ,

जो संघर्षरत है इस दलदल में

हर कोई है समर्थ वह ऐसा ,

पूर सकेगा वह दलदल को,

 

असमर्थ ऐसे अपवाद हैं होते ,

बढ़ते जिनके हस्त सहाय अपेक्षा ,

उनके लिए दयालु समर्थ हैं ऐसे ,

वे हस्त बढ़ाते  सहाय आकांक्षा ,

 

हर नियम के  अपवाद ये थोड़े ,

निश्चित तुम नहीं उन थोड़ों में,

तुम सभी  में है सामर्थ्य अनूठा ,

पूर सकोगे   अपने  दलदल को,

 

भली होती है सहाय भावना ,
पर जब होती  सहाय कोई घटना ,
अस्तित्व आता तब  कृतज्ञता का  ,
तब होती ये   समर्थों की अपेक्षा ,

माने कृतज्ञ तब उनकी आज्ञा,
गर नहीं पसंद जब कोई कृतज्ञ को ,
कहलाते हैं घोर क्रतज्ञना वे ,
जो लगता है अप्रिय उनको

गर नहीं असमर्थ अपवाद से ,
खतरा लेते क्यों अप्रियता का ,
बना  लो  अपना स्वाभिमान ऐसा
कर लें संतोष हम उपलब्ध थोड़े में ,


स्वाभिमान से जो हैं बढ़ते ,
जीवन पथ पर अनुशासित से ,
मिलती है तब जीवन मंजिल
भले ना फैले यश कीर्ति की ,

तब भी हैं वे कृति अनूठी
ऐसे थे  प्रयास निरंतर
ले आये मानव विकास ये वैसा ,
जो रही है कसर अब भी ,

 

वह आई है अब तुम्हारे पाले ,
कर न्याय कसर वह पूरी  तुम ,
अवश्य करो सार्थक जीवन अपना
नहीं कहाओगे अपढ़ गंवार तब ,

 

रीत मिटा दो इस धरती से ,
कहलाने का अपढ़ गंवार का ,
जो है लाती समाज अशांति ,
बनो  तुम अब शांतिदूत से  ,

 

इतना  कहकर सब में फिर ,
करता पुनः आव्हान हार्दिक ये ,

नहीं थामना , नहीं थामना ,

हस्त जो बढ़ रहे सहाय आकांक्षा ,



    









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