Sunday, September 2, 2012

वृध्दा आश्रम

वृध्दा आश्रम

                             एक दिन सुबह भ्रमण पर निकले भ्रमणकारियों ने लाठी टेकती चश्माधारी एक वृध्दा को भटकता पाया . अवस्थावश उनकी स्मरण शक्ति भी प्रभावित हुई लगती थी . वे अपने बेटे को तलाश रही थीं .प्रत्यक्ष दर्शी ने सहायता के ख्याल से उनसे पूछताछ की तो ज्ञात हुआ की उनका बेटा रज्जू समीपी किसी ग्राम से उनके शहर में उपचार कराने के लिए उनको लेकर आया था . रात्रि साथ था . और खाने पीने की सामग्री लेकर आता हूँ कहकर उन्हें एक स्थान पर बैठा गया था .पर वापस न लौटा था.क्षेत्र सेना का था अतः सेना पुलिस ने आ बाद में वृध्दा को अपने साथ ले गयी थी , लेकिन प्रत्यक्ष दर्शी के मन में तरह तरह की शंकाएं उत्पन्न हुयी थी . जिसका ठीक समाधान न हो सका .लेकिन प्रकरण सेना पुलिस के समक्ष जाने से छानबीन में तथ्य उन्हें मालूम पढ़ गए थे.

                                    रज्जू एक गाँव में अपनी पत्नी , दो बच्चों और अपनी बूढी माँ के साथ रहता था . आर्थिक हैसियत साधारण खाते पीते मध्यम वर्गीय ग्रामीणों जैसी थी . माँ अवस्थावश कुछ रोगी थीं . बच्चे आठ -दस वर्ष के थे . ठीक ठीक सा जीवन निर्वाह हो रहा था . पत्नी और बच्चे घर पर दूरदर्शन के माध्यम वैभव पूर्ण ,शहरी जीवन देख रहे थे. फ़िल्में  देखने से छोटे उन ग्राम्य बच्चों को भी नायक -नायिकाओं की बहुत जानकारी हो गयी थी . वे दूरदर्शन पर तरह तरह की सामग्री की बिक्री प्रोन्नत करने के लिए बहुत विज्ञापनों में दिखाई देते थे .बच्चों  को इस बात की खबर ना थी कि वास्तव में ये सामग्री वे स्वयं उपयोग में नहीं लाते थे .लेकिन अबोध मन में नायक-नायिकाओं की छवि ने घर कर लिया था . बच्चे उनकी नक़ल के जंक फ़ूड खाने कि जिद करते . आलीशान बंगलों में दिखाए जाते बच्चों के आधुनिक खिलौने की मांग रखते . ग्रामीणों जैसे कपडे अब उन्हें पिछड़ापन लगता उन्हें कीमती वस्त्र लुभाते . ऐसी और भी बातों को अपने में ले आना चाहते थे . रज्जू पर एक तरफ माँ की दवाओं और उपचार का अतिरिक्त भार पड़ता ,दूसरी तरफ बच्चों की फरमाइश पूरी करने कि चिंता होती .द्वन्द में दिन व्यतीत हो रहे थे .

                                     एक रात्रि पत्नी से विचारविमर्श में यह लगा कि बच्चों के भविष्य के खातिर वृध्दा माँ का उपचार नहीं सहन किया जा सकता .तय किया उन्हें शहर में किसी बहाने छोड़ आया जाये . जहाँ कोई दयालु अमीर उनका जिम्मा उठा लेगा और रज्जू पर व्यव बोझ कम हो जायेगा.उसी की परिणिति में वृध्दा बेटे को तलाश करती देखी गयी  थी .पुलिस के द्वारा जोर दिए जाने पर भी रज्जू ने माँ को रखने से इनकार कर दिया था . तब माँ एक वृध्दा-आश्रम पहुंचा दी गयी थी.बच्चों का अच्छा भविष्य रज्जू और पत्नी ने  इस प्रकार सुनिश्चित कर लिया था .
                                   लेकिन अपना भविष्य दांव पर लगा कर .उसके बच्चों के बालमन पर इस तरह की समस्या का यह समाधान अंकित हो चुका था .  और भगवान न करे कि रज्जू और उसकी पत्नी के बच्चों पर आश्रित हो जाने के समय उनके बच्चे भी आर्थिक अपनी परिस्थिति ,अपने बच्चों को दिए जा रहे लाड़दुलार अपने बुजुर्गों के प्रति     अपने  कर्तव्य में उचित संतुलन ना बनाते इसी तरह का अन्याय पूर्ण हल ऐसी समस्या का निकाल

 लें    , अन्यथा ज़माने को यही दिखाई देगा कि बच्चे बेरहम हैं , अहसान फरामोश हैं बूढ़े माँ- पिता पर दया नहीं कर सके उन्हें वृध्दा आश्रम का रास्ता दिखा दिया ............

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