जय हिंदी जय मातृभाषा हमारी
बच्चा जन्मता है . कुछ बताने की भाषा , कुछ कहा गया समझने की भाषा नहीं जानता है . माँ दुलारती है तो रोता हुआ चुप हो जाता है ,माँ पोषण हेतु छाती से लगाती है तो दुग्घ पान करता है और हलकी थपकियाँ जब लगाती है तो सो जाता है .माँ को तो बोलचाल की भाषा का ज्ञान होता है तब भी वह अपने नवजात शिशु से बोलकर नहीं , ऐसे संवाद करती है . स्पष्ट है कि नवजात शिशु सर्वप्रथम माँ से ही संवाद स्थापित करता है . इस तरह यदि हिंदी या और कोई संवाद की भाषा न भी बनती तो भी मनुष्यों के बीच संवाद चलते रह सकते थे , और शायद मनुष्य नेत्र , मुखाकृति और शारीरिक संकेतों से आपसी संवाद करता . यह ढंग अन्य प्राणी अपनाते हैं . जिन्होंने भाषा या शब्दकोष नहीं बना सके हैं .अगर मनुष्य बोलचाल का यह ढंग ना आविष्कृत करता तो शायद संकेतों से संवाद की भाषा बेहद उन्नत होती. मनुष्य का मष्तिस्क अन्य प्राणियों से ज्यादा विकसित और शक्ति शाली रहा है. इस कारण उसने सभ्यता विकसित की और अन्य प्राणी जब ज्यादा सीख नहीं सके . तब उसने अपनी जिव्हा का बेहद व्यवस्थित संचालन का अभ्यास किया और कुछ संवादों के स्वर उच्चारित करने प्रारंभ किये . भारतवर्ष के अधिकांश क्षेत्रों में जो भाषाएँ उन्नत हुईं उनमे पहले संस्कृत और फिर हिंदी ज्यादा मानवों में लोकप्रिय हुईं .
संवाद शिशु , माँ से सीखना शुरू करता है . अतः माँ द्वारा उपयोग की जाने वाली भाषा मातृभाषा कही जाती है . मेरी माँ हिंदी भाषी रहीं हैं अतः मेरी मातृभाषा हिंदी है . जब मै कोई पाठशाला या अन्य विद्यालय भी नहीं गया तब से ही इस भाषा को मैंने घर और पास - पड़ोस के देखा देखी , सीखना और बोलना प्रारंभ किया . अतः सबसे ज्यादा जिस भाषा की जानने की अवधि है वह हिंदी ही है . मै अपने भाव और विचार सब से ज्यादा पारंगतता से हिंदी में अभिव्यक्त कर सकता हूँ . अतः हिंदी मुझे सर्वाधिक उपयोग करना पसंद होता है . इस भाषा के प्रयोग करते मुझे कभी संकोच नहीं होता . मुझे इस पर गर्व होता है . अपने जीवन में जिन सिध्दांतों और आदर्शों को मै समझ सका तथा निभा सका उसे अपने मनुष्य साथियों से हिंदी के प्रयोग से बाँट रहा हूँ . मैं अभियांत्रिकी शिक्षा में अंग्रेजी माध्यम से पढने के बाद भी अंग्रेजी में पर्याप्त अधिकार नहीं बना सका . अतः अंग्रेजी में हिंदी जैसे ही गूढ़ भावों और विचारों को अभिव्यक्त करने में कई अवसरों पर असमर्थ हो जाता हूँ . इसे अपनी कमी ही मानता हूँ .पर सोचता हूँ यदि यह दक्षता भी होती मुझमें , तब भी मै अपने लेखन हेतु हिंदी को ही प्राथमिकता देता .
मै यह भी सोचता हूँ जिन भी विद्वानों ने अपना अधिकार एकाधिक भाषा पर किया है . वह प्रेरणात्मक ,वैचारिक और साहित्यक सृजन हेतु अपनी मातृभाषा का ही प्रयोग कर उसे प्रचारित करें . यह मातृभाषा और अपनी जननी के प्रति सम्मान तो है ही , साथ ही इसे मै प्रत्येक का कर्तव्य भी मानता हूँ. धार्मिक , साहित्यिक और कई पाठ्यक्रमों के अच्छे शास्त्र , पुस्तकें एवं पठन सामग्रियां हमारे ज्ञानियों ने हमारी मातृभाषा हिंदी में सृजन की हैं . ये प्राचीन समय से उपलब्ध कराईं गयीं हैं . हम हिंदी भाषी अगर अपने दैनिक जीवन में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करेंगे तब हम अपनी वैभवशाली संस्कृति और परम्पराओं को भी बचा सकेंगे . प्राचीन हमारे समृध्द इस देश की ओर पूरा शेष विश्व आकृष्ट होता था . यहाँ से ज्ञान अर्जित करने बाहय विद्वान् भी आये ,धार्मिक , संस्कृतिक और सामाजिक विरासत अपने देशों में ले गए . पर किसी समय किसी स्थान पर हम हिंदी भाषी अपने ही महत्व पर शंकित हो गए . और जब सब हमारी नक़ल कर रहे थे हमने उनकी नक़ल में अपनी भाषा , अपनी संस्कृति अपने पहनावे और वस्त्र इत्यादि देखादेखी परिवर्तित करने प्रारंभ कर दिए . एक दिन ऐसा आ गया जब अपनी मातृ -भाषा में बोलना हम पुरातन और हीनता के बोध वश छोड़ने को प्रवृत्त होने लगे . सब कुछ हममें होते हुए हम अपनी प्रतिभा के प्रति शंकित हो गए . ऐसे भ्रम में आज हम चहुँ ओर समस्याओं से घिरे हैं . यह समस्याएँ कम होती अगर हम आज भी अपनी बहु प्रतिष्ठित , सहिष्णुता की मिसालें रख रहे होते . तथा अगर हम अपनी मातृभाषा , अपनी संस्कृति और अपनी पुरातन परम्पराओं और अपने धार्मिक आदर्शों पर अपने विश्वास को नहीं खोते .
हम वापिस अपनी समृध्द और वैभवता को प्राप्त कर सकते हैं . अगर सर्वप्रथम अपनी मातृभाषा को बढ़ावा देते हैं तब . साधुवाद दिया जाना चाहिए आज के हमारे साफ्टवेअर विशेषज्ञों को जो हिंदी में प्रचार और प्रसार नेट के माध्यम से हमें उपलब्ध करा रहे हैं .
हम हिंदी के अतिरिक्त कोई भाषा न जानें यह अनुचित है . वह ज्ञान का विषय है . हमें यह भी पुनः सिध्द कर देना है "हम हिंदी भाषी न केवल सहिष्णुता ,सज्जनता ,उच्च सिध्दांतों , उच्च चरित्र ,दयालुता और मानवीयता पर तो अपना दृढ विश्वास रखते ही है अपितु हमारी मस्तिष्क क्षमता कहीं कम नहीं है . हम अब इस बात पर दुखी भी ना होंगे , हमें दुष्टों ने लूटा है. अपनी आर्थिक सीमितताओं के होते हुए भी , इस मातृभाषा का अधिकतम प्रयोग कर हम विश्व को प्रचुर वह पठन , प्रचार सामग्री उपलब्ध कराएँगे . जो अशांत इस विश्व और समाज को अहिंसक और शांत उपायों की प्रेरणा दे सकेगी और उचित पथ प्रदर्शन देते हुए आगामी मानव संतति को आज से बेहतर विश्व और समाज की ओर अग्रसर कर सकने में समर्थ होगी .
"जय हिंदी जय मातृभाषा हमारी "
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