Saturday, September 8, 2012

लहरें

लहरें

                          गिरधर जी को अंतिम विदाई देने आये प्रकाश जी , चिता तैयार करते समय दूर एक कोने में जा खड़े हुए हैं..उनकी स्मृति पटल पर पुरानी बातें छा रहीं  हैं . समुद्र तट किनारे किशोर उम्र में जब  वह जाते तो जाती हुई समुद्री लहरें  रेत सतह को सपाट करती जाती  . तब उम्र के उस पड़ाव पर जिस लड़की से आकर्षण अनुभव करते उसका एवं अपना नाम वहां वह लिखते जो अगली  जाती लहर मिटा जाती और  फिर सपाट बना चल देती ..इस तरह कल्पित रिश्ते हर बार पानी की लहरें मिटा देती. 

                          उन्हें लगा समुद्रीय लहरें जैसी समय की लहरें भी ऐसा ही कार्य करती हैं . समय की आती लहरों ने उनके जन्म के साथ उन्हें एक माँ और पिता से ममता एवं स्नेह के रिश्ते से जोड़ा था , फिर अनुभा से विवाह होने के साथ एक दाम्पत्य रिश्ते से जुड़े थे . ऐसी और समय की लहरें आयीं , वह पिता और फिर कुछ और अन्य रिश्तों से जुड़े थे .फिर जीवन में समय की उलटी लहरों को उन्होंने अनुभव किया पहले पिता फिर माँ की मौते इन लहरों ने लायीं , जो ममता और छत्र छाया देते इन रिश्तों को मिटाते चली गयीं. दो वर्ष पूर्व अनुभा की मौत भी एक मधुर रिश्ते को समाप्त कर गयी थी .

                         गिरधर जी उनके बचपन के साथी थे .स्कूल , कॉलेज फिर व्यवसाय और सामाजिक कार्यक्रमों में उनसे प्रतिद्वंदिता बचपन से  अभी कुछ दिनों पूर्व उनके अस्वस्थ होने तक हमेशा रही . कॉलेज के समय में एक ही लड़की से दोनों की चाहत होने से भी वहां भी वे प्रतिद्वंदी ही थे . इस प्रतिद्वंदिता के कारण दोनों के रिश्तों में कटुता दोनों ही ओर से सदैव अनुभव हुयी . समय की उलटी लहरों ने आज इस  कटु रिश्ते को भी मिटा दिया था .अब जब गिरधर जी नहीं रहें हैं .वे सोचते हैं इतने अल्प काल जब किसी रिश्ते का अस्तित्व रहता है , तो फिर ऐसी कटुता के रिश्ते हम क्यों जीते हैं ?
                        उन्हें लगा अगर जीवन उनके जन्म से पुनः फिर प्रारंभ किया जाए तो निश्चित ही वे कोई कटुता के रिश्ते नहीं तब बनने देंगे...तभी कंधे पर एक हाथ के स्पर्श से उनकी तन्द्रा टूटती है . गिरधर जी की चिता अब अग्नि से अधिकांश जल चुकी है . संकेत समझ उनके कदम सांसारिक जीवन के तरफ वापिस चल पड़े हैं ......

 

No comments:

Post a Comment