साथ का महत्व ..
उस रात मेरी आँखों में नींद नहीं थी। मैं दो घटनाओं से अत्यंत अधिक व्यथित था। मेरा हृदय विलाप कर रहा था। मेरी आँखों में अश्रु भरे हुए थे।मैं, सोच रहा था प्रत्येक मनुष्य जो, अपने प्राणों को बड़ी फ़िक्र से बचाये रखता है। ऐसे में कोई कैसे एक कॉप (पुलिस अधिकारी) होकर, किसी अन्य नस्ल के व्यक्ति के छोटे से अपराध पर, उसकी निर्दयता से हत्या कर सकता है? या
खेत में थोड़ा नुकसान पहुँचाने पर, कोई अन्य व्यक्ति, केरल में, एक गर्भवती हथिनी को, अन्नानास में विस्फोटक खिला कर, कैसे मार सकता है?
ऐसी असहनीय मानसिक पीड़ा की हालत में मैं, पूरी रात सो न सका था। मेरा दिमाग तर्क कर रहा था। एक तरफ तो मेरे देश में, कोरोना से अपने प्राणों पर भय देख, करोड़ों लोग घर में कैद या लाखों लोग पैदल सैकड़ों किमी दूर अपने गाँव की ओर जा रहे हैं। दूसरी तरफ, ये लोग क्रूर रूप से हीन/मूक प्राणियों के प्राण ले रहे हैं।
अगली सुबह, चमत्कारिक रूप से, मैंने, स्वयं में एक दिव्य शक्ति का अनुभव किया था।
जिसके होने पर मैं हवा में, अत्यंत ऊंचाई पर उड़ान भरकर तीव्र गति से अमेरिका जा पहुँचा था। वहाँ उस मर्डरर कॉप को, मैंने अपने पीठ पर टाँगते हुए, फिर उड़ान भरी थी और उसे एक निर्जन टापू पर उतार दिया था।
ऐसी ही अगली उड़ान में, मैंने केरल से हथनी के हत्यारे व्यक्ति को लिया था। उसे भी एक अन्य निर्जन टापू पर, पहुँचा कर छोड़ दिया था।
टापू पर छोड़ते हुए, मैंने, दोनों के दिमाग की मेमोरी वाली, बटन ऑफ कर दी थी। जिसके कारण दोनों ही को, पहले की कोई स्मृति नहीं रह गई थी।
फिर मैंने, अपनी दिव्य शक्ति के माध्यम से, अपने ज्ञान पटल पर, दोनों टापू के दृश्यों को लेकर, दोनों की निगरानी आरंभ की थी।
दोनों ही, निर्जन प्रदेश में अकेलेपन से घबराये, इधर उधर दौड़-भाग और भटक रहे थे। यद्यपि वहाँ पीने को जल और खाने को फल/वनस्पति की कोई कमी नहीं थी, वे खा पी तो रहे थे लेकिन उससे, उन्हें तृप्ति और शाँति नहीं मिल रही थी। वे, निरंतर विक्षिप्तों की तरह भटक रहे थे।
अंततः तब पुलिस वाले को टापू पर, एक अश्वेत व्यक्ति मिला था। उसे देख वह यूँ खुश हुआ था जैसे उसे, उसका गॉड मिल गया हो।
अश्वेत से उसकी भाषा अलग थी मगर, दोनों आँखों एवं भाव भंगिमा से, प्रेम-करुणा की भाषा में, अपनी भावनायें एक दूसरे से आदान-प्रदान कर रहे थे। एक से भले दो की तरह, वे परस्पर साथ से, अत्यंत खुश थे।
ऐसे ही अन्य टापू पर केरल के उस व्यक्ति को, एक हथनी मिली थी। उससे मिल कर उसे ऐसे लगा था कि उसे, अपनी इष्ट देवी मिल गई हो। वह प्रेम से, तोड़-तोड़ उस हथनी को, विभिन्न तरह के फलों का सेवन करा रहा था। हथनी के द्वारा, सब उदरस्थ करते देख, उसे, असीम आत्मिक शाँति मिल रही थी।
स्पष्ट था कि कोई साथ नहीं हो तो किसी का भी साथ मिल जाये, कितना प्यारा लगता है। लेकिन ऐसे बहुत से मिलें तो, दुर्भाग्यपूर्ण रूप से, उनके होने का महत्व मनुष्य भुला देता है। एक दूसरे से ईर्ष्या, नफरत और यहाँ तक की दूसरे की जान का दुश्मन हो जाता है।
दो दिनों तक, मैंने इन्हें उन टापुओं पर यूँ ही रहने दिया था। फिर उन्हें उनके मूल स्थान पर पहुँचा दिया था। उनकी मेमोरी बटन फिर रिसेट कर दी थी। इस स्थिति में उन्हें अपने पूर्व की सारी स्मृति एवं निर्जन प्रदेश में बिताये समय का, स्मरण आ गया था।
अब पुलिस वाले को अश्वेत व्यक्ति की हत्या पर गहन वेदना एवं पश्चाताप हो रहा था। ऐसे ही केरल पहुँचाये गए व्यक्ति को मूक हथनी की हत्या को लेकर गहन वेदना एवं पश्चाताप हो रहा था।
निर्जन प्रदेश के, अपने एकमात्र साथी की स्मृति और यहाँ उनके द्वारा की गई हत्या के, ग्लानि बोध ने मिलकर, दोनों को विक्षिप्त कर दिया था। दोनों विक्षिप्त की तरह, अपने अपने नगरों में भटकने लगे थे। लोग उन्हें देख, यह एक दूसरे को बताते रहे थे कि अपने क्रूर हत्या के अपराध बोध ने, इन्हें पागल कर दिया है।
मैंने, अपने ज्ञान पटल पर दिव्य शक्ति के जरिये, ऐसा होते हुए भी देखा था।
जब मुझे यह तसल्ली हो गई कि दोनों ही व्यक्ति, अब आजीवन विक्षिप्त ही रहेंगे और इस तरह अपने क्रूर करतूतों का दंड भुगतेंगे, तब मैं अपने इष्ट ईश्वर के धर्मस्थान गया। मुझे मिली, अपनी मिली दिव्य शक्ति को मैंने, उनके चरण कमल में, अर्पित कर दी।
और मैं, अब मानसिक रूप से शांत होकर, सामान्य मनुष्य की तरह वापिस लौट आया हूँ ...
(नोट- मानव में ऐसी दिव्य शक्ति होना, मेरी कपोल कल्पना है। जिसके माध्यम से, अपने कुछ संदेश लिखता हूँ। कृपया ऐसे किसी दिव्यशक्ति धारी की खोज या किसी पाखंडी के झाँसे में न आयें)
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
04-06-2020
04-06-2020
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