Monday, June 1, 2020

अनुपमा (2) ..

अनुपमा (2) ..

सरोज और अनुपमा में 11 वर्ष का अंतर ही था मगर गाँव के रिश्ते में सरोज, अनुपमा की चाची थी। वय में बहुत अधिक अंतर नहीं होने से और मन मिल जाने से, सरोज एवं अनुपमा, मित्रवत हो गए थे। अक्सर छुट्टी के दिन अब, अनुपमा सरोज के पास आ जाती थी।
एक दिन अनुपमा आई और उसने पूछा- चाची, भाई और 'भाई जैसा' होने में क्या अंतर होता है? 
सरोज ने तनिक सोचा फिर उत्तर दिया- कोई भी मनुष्य, हमेशा या पूरे जीवन भर, एक सा विचार और भाव नहीं रख सकता है। परिस्थिति और काल उसके चिंतन एवं भावनाओं को बदलती रहती है। खून के रिश्तों में ऐसा होते हुए भी विचार तो बदल सकते हैं मगर भाव नहीं बदलते हैं। 
ऐसे में, जो रिश्ते में नहीं, वह लड़का किसी समय भावातिरेक में, किसी लड़की के प्रति भाई सा भाव तो रख लेता है परन्तु किसी और समय, वह लड़की को लेकर 'भाई सा' भाव नहीं रख पाता है। 
इसके विपरीत सगा भाई, अपनी बहन के प्रति, सदा भाई वाला भाव ही रखता है। ऐसे, भाई और 'भाई जैसा' होने में अंतर होता है। 
अनुपमा तब बोली- समझ गई चाची कि क्यों मुझे, आपने, उस दिन रविंद्र को भाई सा मानते हुए भी, उससे सतर्क रहने को कहा था। 
सरोज बोली- हाँ अनुपमा, तुम ही रविंद्र को, खुद देख लो किसी दिन वह तुम्हारा रास्ता रोक, खड़ा हुआ था। फिर गलती के एहसास करने के बाद, तुम्हारे पापा से, तुम्हें अपनी छोटी बहन बता कर गया। ऐसे ही, उसका भाव आगे भी पलट सकता है। 
चूँकि बहन जैसी कहने वाला, हमसे ज्यादा निकटता प्राप्त कर लेता है। हम उस पर विश्वास करने लगते हैं। जबकि कोई अन्य युवक हमारे से वह निकटता नहीं पाता है, इस कारण हम उसके तरफ से चौकन्ने रहते हैं। तब, कोई 'भाई जैसा' युवक, हमारे लिए, किसी अन्य युवक से ज्यादा खतरनाक हो सकता है।
तब अनुपमा ने पूछा- चाची इसका मतलब, रविंद्र फिर पहले जैसी हरकत पर उतर सकता है?         
तब सरोज समझाते हुए बोली- अनुपमा, उसकी दो बहनें हैं, इसलिए ऐसा शायद वह फिर कभी न भी करे। मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उसने तुम्हारा रास्ता रोक तुमसे कहा था कि खेत में, वह तुम्हें प्यार वाली फिल्म दिखायेगा। इससे यह अंदेशा रहता है कि वह, फिर ऐसा कर सकता है।
अनुपमा ने फिर प्रश्न किया- चाची, यह 'प्यार वाली फिल्म' का मतलब क्या होता है। 
तब सरोज बोली- यह अच्छा है कि तुम्हारे पास मोबाइल नहीं है। आजकल मोबाइल पर इंटरनेट के माध्यम से ऐसी ख़राब सामग्री, बच्चों तक बहुत पहुँच जाती हैं। ऐसी ख़राब सामग्रियाँ, अनियंत्रित शारीरिक उत्तेजना उत्पन्न करतीं हैं। 
एक बार कोई इन्हें देखले तो उसके देखने/पढ़ने की लत सी हो जाती है। आजकल, लड़कियों और युवतियों पर जो यौन अपराध बढ़ रहे हैं। वह इन्हीं अश्लील सामग्रियों के कारण हो रहे हैं।
निश्चित ही 'प्यार वाली फिल्म', रविंद्र, इन्हीं अश्लील तरह की सामग्रियों के लिए प्रयोग कर रहा था। यदि रविंद्र में यह लत है तो उससे, अपनी बचत करना, अपने पर खतरा कम करना होगा।     
अनुपमा ने फिर पूछा- चाची, आप इतनी सब बातें कैसे जानती हैं?
सरोज- मैंने मुंबई में, ऐसी खराबियों को पास से देखा और अनुभव किया है। 
अनुपमा ने अगला प्रश्न किया - चाची, मेरे मम्मी, पापा यह सब जानते होंगे या नहीं?
सरोज ने सोचते हुए कहा - शायद नहीं, और यही हमारे समाज में बहुत बड़ी कमी है। वास्तव में जो पेरेंट्स, नई कंप्यूटर तकनीक एवं इंटरनेट के जानकार नहीं उन्हें मालूम नहीं कि कितनी खराबियाँ, इनके माध्यम से प्रसारित हो रही हैं। जिनकी जद में उनके बच्चे आ रहे हैं तथा अपने वर्तमान और भविष्य पर अनायास खतरा ले रहे हैं।   
अनुपमा ने बताया- जी, चाची, हमारे मम्मी-पापा तो मोबाइल पर सिर्फ बात कर पाते हैं। 
सरोज ने निष्कर्ष जैसा निकालते हुए बताया - इसलिए, सर्वाधिक हितैषी होते हुए भी अनेकों पालक, अपने बच्चों की भलाई सुनिश्चित नहीं कर पाते हैं। ऐसे में, उनके बच्चों को मार्गदर्शन के लिए अन्य पर निर्भर रहना होता है। यह समाज का दुर्भाग्य है कि स्कूल/कॉलेज में बच्चों को मिलने वाले अधिकाँश गुरु भी, आजकल मार्गदर्शक के रूप में अपनी सही भूमिका नहीं निभा रहे हैं। 
अनुपमा (खुश होते हुए) बोली- चाची, मुझे तो भाग्य से आप मिल गईं हैं।
सरोज- यह तुम से ज्यादा मेरे भाग्य की बात है, अनुपमा। पिछले वर्ष कोरोना खतरा नहीं आया होता तो, हम आज भी मुंबई की धारावी बस्ती में श्रमिक परिवार के रूप में, एक छोटी खोली में जीवन यापन कर रहे होते। उसी को अपनी नियति मानते और साधारण की तरह रह जाते। हम कोरोना के कारण, लाचारी में 1200 किमी पैदल चलके गाँव आये। उस यात्रा में मैंने बहुत सी बातें देखीं, जिनसे उस पूरी यात्रा में मेरा दिमाग अत्यंत सक्रिय रहा। उसी समय, मुझे अपनी विशिष्टताओं का ध्यान आया। 
मैं समझ सकी कि कोरोना विपदा के माध्यम से भगवान ने हम सभी को अपने तौर तरीकों पर, गौर करने का अवसर दिया और उन्हें ठीक कर लेने का संकेत दिया था। 
अनुपमा प्रसन्नता से बोली- पर चाची, सभी ने इसे समझा नहीं। आपने समझा और आज आप यहाँ गाँव में, समाज हितैषी की तरह विख्यात हो रही हैं।
सरोज ने गंभीर भाव से कहा- वास्तव में अनुपमा, भगवान हर किसी को समय समय पर कुछ बातों के संकेत दिया करते हैं। मगर, हम इन्हें समझने में चूक जाते हैं।
अनुपमा ने जिज्ञासा से पूछा - चाची, पिछले दिनों में मेरे साथ जो हुआ उसमें मेरे लिए भगवान का संकेत, क्या था? 
सरोज : तुम उम्र जनित दैहिक आकर्षण के प्रभाव में अपनी पढ़ाई के तरफ से विमुख हो रही थीं। कुछ घटनाओं के माध्यम से भगवान का संकेत, तुम्हें, अपने भविष्य के प्रति सचेत करने का था। तुम सचेत हुईं भी और भविष्य सुनिश्चित करने के उपाय के लिए, तुम्हारी अंतर्प्रेरणा तुम्हें मुझ तक ले आई। 
इसमें भगवान का संकेत यह भी है कि तुम, अपने पालकों के प्रति ज्यादा जिम्मेदार होकर अपने और उनके जीवन में कठिनाई बढ़ा लेने से बचो। इसमें ही तुम जैसी किशोरियों के लिए, भगवान का एक और इशारा भी है। 
अनुपमा का प्रश्न- वह क्या, चाची?
सरोज ने सलाह देने वाले अंदाज में कहा - अनुपमा, वह यह कि किशोरियों को स्कूल/कॉलेज के दिनों में पढ़ने पर ही, ध्यान देना चाहिए। किसी के प्रति उम्र जनित सहज आकर्षण को प्यार मानने की भूल नहीं करना चाहिए। यह समझना चाहिये कि गाँव बस्ती के लड़कों के चक्कर में पड़ने से पढाई और भविष्य चौपट होते हैं। 
दुनिया में सिर्फ इतने ही लड़के नहीं होते, जो आसपास दिखाई देते हैं। दुनिया में बहुत और अत्यंत योग्य लड़के होते हैं, जो लड़कियों की योग्यता हासिल करने के उपरान्त, उनसे विवाह और प्यार को उत्सुक मिल जाते हैं। 
अनुपमा सिर्फ मुस्कुराई तब सरोज ने आगे कहा- अनुपमा तुम्हारे लिए, योग्य लड़का, यहाँ गाँव में नहीं है। तुम अभी पढ़ो-लिखो और योग्य बनो।समय आने पर एक योग्य लड़का, स्वतः तुमसे परिणय करने आएगा। 
ऐसा सुनते हुए, अनुपमा के गोरे मुखड़े पर, गुलाबी रंगत आ गई, जिससे वह स्वर्ग से उतरी अप्सरा सी लग रही थी। तब सरोज ने उसे गले लगाया उसके माथे पर चुंबन लिया।
दोनों हँसने लगीं फिर अनुपमा ने विदा ली और सरोज, नीलम एवं अपने, छोटे छोटे बच्चों की देखभाल में व्यस्त हो गई ...   



--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
01-06-2020

   

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