Monday, June 22, 2020

यशस्वी ...

यशस्वी (1) ...

सुबह चार बजे नींद खुल गई थी, मेरी। मैंने 4.45 तक दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर चाय भी पी ली थी। उजाला होने में अभी समय था तो, नर्मदा तीर घूमने को मन हुआ। प्रिया को बताया कि नर्मदा किनारे की ताजा-शीतल वायु लेकर आता हूँ। हाँ, सुनने के बाद, बाहर गॉर्ड को साथ न लेकर, अकेले ही कार से 15 मिनट में, नर्मदा किनारे पहुँच कर मैं, सैर करने लगा था।
मुझे, घूमते कोई पच्चीस मिनट हुए होंगे कि 25-30 मीटर दूर, 18-20 साल की एक लड़की दिखी। एक वृक्ष की आड़ होने से लड़की, मुझे देख ना सकी थी। वह उस तरफ बढ़ रही थी, जहाँ से 10 फिट नीचे, पानी अधिक गहरा था। उसके खतरनाक इरादे को भाँप कर मैंने, अपने कदम तेज किये और जब वह छलाँग लगा रही थी, कुछ ही क्षण पहले, लपक कर मैंने उसकी दाहिनी बाँह मजबूती से पकड़ ली।   
निर्जन स्थान पर उसके लिए यह अप्रत्याशित था। वह, कुध्द होकर मुझे देखने लगी। मैं, शक्ति लगाकर उसे किनारे से दूर के तरफ खींचने लगा था। थोड़ा प्रतिरोध करते हुए वह, मेरे साथ चलने लगी थी।
कोई 50-60 मीटर दूर की चट्टान पर मैंने, उसे साथ बिठाया था। मैंने, उसके हाथ थामे रखते हुए, फिर कहा- मैं, पुलिस कप्तान हूँ।
इसे, सुन उसके बल ढीले पड़ गए, एक तरह से वह, मुझसे डर गई थी।
मैंने पूछा- घर में, कोई पत्र लिख कर छोड़ा है?
उसने कहा- हाँ!
तब मैंने कहा - उसे पढ़कर घर में अभी, कोहराम मच रहा होगा। चलो, कार से मैं, तुम्हें घर छोड़ देता हूँ।     
उसने कहा- स्कूटी, मेरी यहाँ है। 
मैंने कहा - चिंता मत करो वह मेरा अधीनस्थ कर्मी, तुम्हारे घर पहुँचा देगा।     
अच्छी बात यह थी कि मेरे निर्देश वह मान रही थी। कार चलाते हुए, मैंने बातों में, उसका एवं घरवालों का पूरा परिचय, उसका मोबाइल नं आदि ले लिया।
फिर धमकी जैसे, मगर नम्रता से यह मैंने बताया कि- मैं, उस पर आत्महत्या के प्रयास का अपराध दर्ज करवाते हुए, कार्यवाही कर सकता हूँ। 
(आगे कहा) मगर मैं यह ना करूँगा, आज बस तुम इसे स्थगित रखो और दोपहर 2 बजे, जब मैं लंच लेता हूँ मेरे ऑफिस में आकर, मुझे आत्महत्या का कारण बताओ। अगर उससे मैं, संतुष्ट हुआ तो तुम्हें, करने के लिए मुक्त छोड़ दूँगा।
यह कहते हुए मैंने, अपना कार्ड उसे दिया।
तभी, यशस्वी (नाम उसने, यह बताया था) के मोबाइल पर कॉल आने लगा, मेरी प्रश्नवाचक निगाह पर उसने बताया- पापा का है। 
मैंने, उसे आंसर करने कहा और निर्देश दिए-  उन्हें बताओ कि मॉर्निंग वॉक खत्म करके, अभी आ रही हूँ।   
यशस्वी ने कॉल पर यही कहा।
साथ ही उसे, आगे सफाई में कहना पड़ा कि- आप सभी सो रहे थे अतः चुपचाप निकल आई थी।
फिर कॉल, काट दिया था। मैंने फ़िलहाल के लिए उस घातक पल को टाल दिया था। अतः निश्चिंत हो उसके घर के कुछ पहले यशस्वी को, यह कहते हुए कि सबमें पहले वह आत्महत्या का लिखा नोट, जाकर फाड़ दे फिर उसे, ड्राप किया और घर लौट आया था।     
आशा अनुरूप यशस्वी दो बजे के पहले, मेरे ऑफिस पहुँच गई थी। वैसे, मैं लंच घर पर करता था, लेकिन यशस्वी की निजता को ध्यान रखते हुए, मैंने पास के रेस्टोरेंट में जाना उचित समझा। ड्राइवर को मना किया, फिर साइड सीट पर यशस्वी को बैठाते हुए मैं, खुद ड्राइव ने लगा। तीन मिनट में, हम रेस्टोरेंट पहुँच गए थे। मैंने मोबाइल म्यूट पर रखा और फॅमिली केबिन में, यशस्वी को सामने बिठा लंच आर्डर किया।
फिर उससे पूछा कि- तुमने, यह प्रयास क्यों किया, बिना संकोच एवं भय के सविस्तार बताओ। 
यशस्वी ने कुछ पल सोचा फिर कहना आरंभ किया - मेरे पापा, टेलरिंग शॉप चलाते हैं। वे कुछ समय से अस्थमा से पीड़ित है, जिसका असर शॉप पर पड़ रहा है। उन्होंने अच्छा कमाया हुआ था लेकिन बचत का ज्यादा पैसा, मेरी दो बुआओं की शादी पर खर्च हो गया है। अब घर में, पापा, माँ एवं मेरी दो छोटी बहनों का परिवार है। पापा की अस्वस्थता के कारण मैं, उन पर आर्थिक भार कम करने के लिए खुद कमाने योग्य बनना चाहती हूँ। मैंने इस वर्ष बारहवीं की परीक्षा 90% अंको से पास की है। प्रवेश परीक्षा मैंने, बुखार की हालत में दी थी। कल उसके नतीजे आये हैं। जो रैंक मेरी आई है उससे, मुझे शासकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय में प्रवेश नहीं मिल सकेगा।       
तब आर्डर सर्व करने के लिए बेयरे के आने से, यशस्वी चुप हो गई। फिर उसके जाने के बाद उसने और मैंने खाना शुरू किया। बात आगे बढ़ाने के लिए मैंने उससे पूछा- तुम्हारे रिजल्ट पर घर में, कोई नाराज हुआ ?
नहीं, कोई नाराज नहीं हुआ, यशस्वी ने उत्तर देते हुए आगे बताया - मगर, मुझे बहुत दुःख है कि मैं पापा को कमाकर देने योग्य नहीं बन सकूँगी। निजी कॉलेज में फीस बहुत है जो मेरे पापा अभी की हालत में, भर न सकेंगे।
अब मैंने कहा- यशस्वी, तुम आज नर्मदा में कूद के जान दे देती तो मालूम क्या होता?
उसने उत्सुकता से पूछा - क्या होता? सर!
मैंने बताया - जिस नर्मदा को लोग श्रध्दा से पूजते हैं। जो नर्मदा, प्राणियों के जीवन के लिए जल प्रदान करती है, उसमें मरकर तुम उसे, गंदा करती।
यशस्वी ने इस पर कहा - सर इसका अर्थ यह कि मुझे आत्महत्या का कोई और तरीका चुनना चाहिए था ?
मैं हँसा, मैंने उत्तर दिया- नहीं, ये मतलब नहीं है, वास्तव में तुम्हें आत्महत्या करनी ही, नहीं चाहिए। मैं, संयोग और भाग्यवश वहाँ नहीं होता तो हमारा अमला, दूसरे काम छोड़ कर अभी, नर्मदा में तुम्हारे शव की खोज करने में लगा होता। एक दो दिन में पानी में फूला और नदी के जीव जंतुओं द्वारा खा लिए जाने से दुर्गंध देता तुम्हारा शव, जब घर पहुँचता तो पहले ही अस्वस्थ, तुम्हारे पापा की हालत और बिगड़ जाती। हो सकता है, सदमा उनकी जान ले लेता। तुम्हारी दो छोटी बहनें अनाथ हो जातीं।  तुम्हारी माँ पर मुसीबत का पहाड़ आ गिरता। लोग बेकार की दसियों बात करते।
ऐसा न भी होता तो तुम्हारे पापा के 18 वर्ष का, तुम्हारे पालन-पोषण पर किया व्यय, व्यर्थ चला जाता। समाज में तुम्हारे परिवार की बदनामी होती।         
मैं अगला कौर लेने चुप हुआ तो यशस्वी ने कहा - लेकिन सर, मेरी मौत से अगले पाँच साल का मुझ पर होने वाला तथा फिर मेरे विवाह पर होने वाला खर्च, तो उन पर नहीं आता।   
मैंने कहा - नहीं, ऐसा नहीं होता। कोरोना के कारण से, विवाह के तरीके में बदलाव आये हैं, अब विवाह ज्यादा खर्चीले नहीं रह जायेंगे। साथ ही अगले पाँच साल के खर्च के बोझ, तुम्हारे पापा पर न आयें इसके भी उपाय हैं। फिर समझाने के मृदु स्वर में, मैंने आगे कहा-
यशस्वी, तुमने जीवन थोड़ा देखा है अतः कम जानती हो। किसी की सेट मंजिल पर पहुँचने का, कोई एक ही मार्ग नहीं होता। जीवन अनेकों विकल्प उपलब्ध कराता है। जिनमें से किसी एक पर चलकर, कोई अपनी मंजिल पर पहुँच सकता है। तुमने मंजिल सेट की है कि तुम्हें, अपने पापा का आर्थिक बोझ, कुछ अपने पर लेते हुए, कम करना है, तो तुम यह समझ लो, तुम उस पर पहुँचोगी। हाँ, पर उस पर पहुँचने का तुम्हारा मार्ग, शासकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय से होकर नहीं जाता है। 
यशस्वी ने पूछा - सर, तो अब मुझे क्या करना चाहिए ?
मैं समझ गया था कि सुबह से अब तक की घटना एवं मेरी बातों के असर से, यशस्वी अपने डिप्रेशन से उबर चुकी है। हमारा लंच भी हो गया था। मैंने यशस्वी से कहा - इसका उत्तर मैं तुम्हें रविवार को दूँगा। तब तक तुम यह भूल कर कि तुम्हें कोई असफलता मिली है, घर में सबके बीच खुश रहो एवं रविवार को मेरे बँगले पर आओ
उसने सहमति से सर हिलाया, फिर मैंने उसे, अपने कार्यालय में उतारा, जहाँ उसने अपनी स्कूटी ली और वह चली गई थी ...
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
22-06-2020
       


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