Friday, June 26, 2020

यशस्वी (5) ...

यशस्वी (5) ...

पापा के नहीं रह जाने से, अब यशस्वी उस कमी की पूर्ति, मुझे पापा मानकर करने लगी, लगता था। यद्यपि यशस्वी ने ऐसा, कभी कहा या लिखा नहीं था।
कुछ दिन हुए, फिर यशस्वी का कॉल आया लगता था। उस समय मैं, एक अति आवश्यक बैठक में था। मैंने रिसीव किया तब उसका स्वर, रुआँसा था। 
मैंने उसे कहा कि- थोड़ी प्रतीक्षा करो। अभी मैं बैठक में हूँ, इससे फ्री होते ही, कॉल बैक करूँगा।    
फिर मैं, शाम को ही कॉल कर सका था। उस समय भी वह उदास ही लग रही थी। यशस्वी ने जो बताया उसे, यशस्वी एवं महिला ग्राहक के वार्तालप के रूप में, यूँ पढ़ा जा सकता है :- 
महिला ग्राहक - मैं, छह हजार के परिधान तो पसंद कर चुकी हूँ। मुझे और चाहिए हैं मगर, तुम्हारे पास 'सुंदर अंगों' को उभार देने वाले वस्त्रों की उपलब्धता नहीं है। 
यशस्वी - जी, हम ऐसे वस्त्र, गाउन के अंदर के पीस के रूप में बनाते हैं। पार्टी वियर में ऐसे डिज़ाइन किये वस्त्रों के साथ, एक ऊपर का आवरण देते हैं। 
कहते हुए यशस्वी ने, उन्हें कुछ ऐसे वस्त्र सामने रख, दिखाने शुरू किये। जिनमें से महिला ने, 5 हजार के वस्त्र और लिए। 
इसके बाद महिला ने कहा - तुम्हारी डिजाइनिंग उत्तम है। तुम्हारा व्यवसाय और बढ़ सकता है अगर तुम, अपने परिधानों में और विविधता (वैराइटी )लाओ। 
यशस्वी - मेम, कैसी वैराइटी?
महिला - लो नेक, बैकलेस तथा मोटे के स्थान पर कुछ अंगों या कुछ भाग पर झीने कपड़े के प्रयोग के, परिधान की माँग आज ज्यादा होती है। 
यशस्वी (प्रिया की दी टिप्स का स्मरण करते हुए) - मेम, ऐसे परिधान हम अपने अपनाये, सिद्धांत के तहत नहीं बनाते हैं। ऐसे वस्त्र, पुरुषों की निगाहें, हमारे अंगो पर रोक सकते हैं। जो पहनने वाली युवती के लिए असुविधाजनक हो सकता है।
महिला हँसते हुए - कोई पुरुष यदि ऐसा घूर लेता है तो हमारा क्या ले जाता है? ऐसे तो फिर हर सुंदर लड़की को, अपने मुख पर भी पर्दा रखना चाहिए, अपनी पहचान ही नहीं रखनी चाहिये, कि उसे कोई घूरता है।  
यशस्वी - जी, जिनके घर, स्कूल, कॉलेज, ऑफिसेस में एवं जाने आने के साधन में सुरक्षा (गॉर्ड आदि) पर्याप्त है, उनका कोई कुछ नहीं ले जाता है।  लेकिन देश में ऐसी बहुत सी लड़कियाँ/युवतियाँ हैं जिन्हें यह सुलभ नहीं है। उन पर खतरा हो जाता है। 
जहाँ तक 'मुख पर पर्दे' की बात है,  मैं मानती हूँ कि, मुखड़े से प्रभावित होने पर, मन में प्रेम जागृत होता है। जबकि अंगों पर आकर्षित होने से, व्यक्ति में कामुकता जागृत होती है।   
महिला (चिढ कर) - तुम, क्या समझती हो! तुम नहीं बनाओगी तो खरीदने वालों को, ऐसे आधुनिक परिधान मिलेंगे नहीं?
यशस्वी - मिलेंगे, लेकिन किसी असुरक्षित स्थान पर ऐसे वस्त्र पहनी किसी लड़की को कोई अपराधी, अपने वासना आवेश में छेड़छाड़ करता है तो मुझे, कम से कम यह विचार राहत देता है कि इन वस्त्रों के निर्माण के पीछे, मैं नहीं हूँ। 
यद्यपि ऐसे वस्त्रों के निर्माता पर, ऐसे किसी अपराध के लिए, संविधान कोई दंड निर्धारित नहीं करता। मगर यदि मैं निर्मित करूँ और, मेरे ऐसे निर्मित परिधान के कारण आवेशित हो कोई दुस्साहसवश, किसी लड़की पर अपराध करे तो अप्रत्यक्ष रूप से मैं, खुद को दोषी मानूँगी। 
तब महिला ने अपने तर्क को वजनी करने के लिए अजीब बात कही - परोक्ष रूप से तुम, तमाम सिने सेलिब्रिटीज पर दोष लगा रही हो जो, ऐसे वस्त्र धारण कर इनका फैशन चलाती हैं। 
यशस्वी को महिला कमाई दे रही थी, उम्र में बड़ी थी अतः उनका मान रखते हुए हँसते हुए सिर्फ यह कहा - जी मेम, शायद !
महिला ने कीमत भुगतान करते हुए पूछा - तुम, कितना पढ़ी हो?
यशस्वी - जी, बारहवीं !
महिला - तभी, तुम्हारी सोच संकीर्ण है ? 
यह कहते हुए महिला तो चली गई, परंतु यशस्वी को मानसिक रूप से आहत कर गई। यशस्वी ने इसी पर, मुझसे परामर्श (कॉउंसलिंग) के लिए कॉल लगाया था।  
मुझसे पूछा था - सर, क्या मैंने गलत कहा है? डिजाइनिंग के ये  आचार विचार (एथिक्स) तो मुझे प्रिया मेम से मिले हैं, वे तो डॉक्टरेट हैं। 
मैं समझ गया कि यशस्वी तो, अपने बारहवीं पढ़े होने को, अपनी हीनता मान रही है। मुझे वह उत्तर देना था जिससे यशस्वी की यह ग्रँथि (हीनता बोध) नष्ट की जा सके। 
मैंने समझाते हुए कहा - पिछले दो वर्षों में, अपने काम एवं व्यवसाय में तुमने जो सफलता अर्जित की है, उससे तुम्हें किसी यूनिवर्सिटी की उपाधि की जरूरत नहीं बचती है। तुम ऐसे उपाधि लिए अनेक बच्चों से श्रेष्ठ हो। तुम्हें, उन महोदया की बातों से अवसाद नहीं मानना है।  
यशस्वी ने तब कहा था - धन्यवाद सर, आपके कहे शब्दों से मुझे आत्मबल मिलता है। 
अब तक सोफे पर मेरे साथ प्रिया आ बैठी थी। मैंने यशस्वी को बता कर कॉल होल्ड किया था एवं प्रिया को सारी बात बताई थी। आगे कॉल प्रिया ने लिया था। 
प्रिया ने फिर यशस्वी से कहा था - यशस्वी, जल प्रवाह की दिशा में अजीव वस्तुयें बहती हैं। जबकि किसी जीव को प्रवाह की दिशा में नहीं जाना होता है तो वे विपरीत दिशा की और तैरते हैं। 
यह जीवन प्रवाह है। जिसमें कोई यहाँ तो कोई वहाँ, बहना और तैरना चाहता है। आधुनिकता के नाम पर आज जो प्रवाह लोगों ने चला रखा है, हम उसकी दिशा में नहीं बहना चाहते हैं, इसके पीछे कारण हैं। 
मैंने जो डिजाइनिंग एथिक्स तुम्हें बताये हैं, उसका कारण यह है कि मैं उच्च पुलिस अधिकारी की पत्नी हूँ। ऐसे मैं जानती हूँ कि देश में युवतियों से छेड़छाड़ एवं बलात्कार के इतने अपराध हो रहें हैं कि इनके सब अपराधी को दंड सुनिश्चित कर पाना, प्रशासन एवं न्यायपालिका के लिए दूभर हो रहा है। अतएव समाज में इन अपराधों से कोई पीड़ित न हो इस हेतु हमें सिर्फ व्यवस्था पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। 
जागरूक नागरिक की तरह हमें, इसके समानांतर प्रयास करने चाहिए कि हम, वह परिवेश बदल दें जिसमें, कोई ऐसे अपराधों के लिए प्रवृत्त होता है। 
मैंने डिजाइनिंग करते हुए वस्त्रों को आधुनिक रूप तो देना चाहा है लेकिन ऐसा रूप दिया है, जिसे पहनना अपराध की संभावना ना बढ़ाये। (फिर पूछा) यशस्वी, तुम बताओ कि तुम्हारी प्राथमिकता अधिक दौलत बटोरना है या समाज स्वस्थ परिवेश, जिसमें तुम और तुम्हारी बहनें सुरक्षित होती हैं?  
यशस्वी - निश्चित ही मेम, स्वस्थ परिवेश। दौलत की यदि बात लें तो अभी, जितनी मुझे मिली है हमारे परिवार की अपेक्षा से अधिक है। मुझे ज्यादा की लालच नहीं है। आप दोनों ही मेरे जीवन निर्माता हैं। मैं ऐसे ही कार्य करना पसंद करुँगी जिसमें मुझे, आपका आर्शीवाद मिलता है। 
अंत में मैंने एक वाक्य कहा - साहित्य यदि नहीं चलता है तो कोई साहित्यकार अश्लील साहित्य लिखने नहीं बैठ जाता है। ऐसे ही, तुम गरिमामय आधुनिक वस्त्र डिज़ाइन करती रहो। 
फिर हँसी के आदान प्रदान के साथ कॉल खत्म किया ...
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
26-06-2020
  

    

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