Saturday, June 13, 2020

मृगनयनी ..

मृगनयनी ..

25 दिस.19 को, हमारा विवाह नियत करते हुए, पाँच अप्रैल को विवाह तिथि तय की गई थी।
उसके बाद घटनायें अप्रत्याशित रूप से हुई थीं। एक, कोरोना संक्रमण के फैलाव की आशंका में, देश में लॉक डाउन किया गया था।
दो, उसी लॉक डाउन-1 के तीसरे ही दिन, रितु की दादी का देहांत हो गया था।
प्रधानमंत्री जी ने आह्वान किया था कि ज्यादा उम्र के नागरिक, घर से बाहर न निकलें। अतः दादी की अंत्येष्टि में, मैं गया था। सिर्फ 8 लोगों की उपस्थिति में दादी का अंतिम सँस्कार होना, असाधारण दृश्य था। उसमें एक अच्छी बात मैंने नोटिस की थी, वहाँ (झूठे) दुःख प्रकट करने वाले कोई नहीं थे, जितने थे सभी वास्तव में दुःखी लोग थे।
इन घटनाओं से, हमारे विवाह की पूर्व निर्धारित तिथि, स्थगित कर दी गईं थी। अनलॉक किये जाने और विवाह आयोजन की स्वीकृति हो जाने पर, अब रितु और मेरे विवाह के संबंध में फिर बातें होने लगीं थीं।
ऐसे ही बात में रितू के पापा से मोबाइल पर, पापा कह रहे थे- आपने तो सरलता से 25 तय कर लिए, मगर मुझे मुश्किल हो रही है, हमारा सर्किल बड़ा है ना!
मैं सामने बैठा सुन रहा था। मुझे साफ़ लग रहा था कि पापा स्वयं को, अंकल से बेहतर दिखा रहे हैं।
पापा आगे कह रहे थे- मेरी लिस्ट कितनी भी छोटी करूँ, 60 से कम नहीं हो रही है।
अंकल ने (शायद) कहा था - सर, फिर हम, पाँच ही आ जायेंगे। आप 15 कम कर लीजिये, 50 रह जायेंगे। 
प्रत्युत्तर में पापा ने कहा - ठीक है, आप 5 हम 60, 65 ही होंगे, इतना तो कोई जाँच को आया तो कुछ ले दे कर, सेट हो जाएगा। वैसे संभावना नहीं कि कोई आयेगा, मेरा बेटा खुद ही तो आईपीएस है। 
मैं फिर सोचने लगा, पापा ने फिर गलत बात कही है। एक तो उन बेचारों को, सिर्फ घर के सदस्यों पर ही सिमट जाने को मजबूर कर दिया है। ऊपर से रिश्वत और मेरे प्रभाव के बल पर, अपनी नियम अवहेलना को ढँक लेने की गलत संदेश दे रहे हैं।
विडंबना यह है कि पापा अपनी नासमझी को, बड़ी समझदारी जैसे दिखा रहे हैं।
उनकी इस प्रवृत्ति पर मुझे वितृष्णा हुई कि देश में बनाये जाते क़ानून का, पालन करने के स्थान पर,  हम, उसे तोड़ने के उपाय ही क्यों खोजने लगते हैं।
पापा की पीढ़ी देश में रिश्वत के प्रचलन लाई, जिसे हमें भुगतना पड़ रहा है। कोई सामान्य नागरिक जहाँ जाता है, संबंधित कर्मी, रिश्वत की अपेक्षा करते मिलता है। लोग, देते हैं तो लेने भी लगते हैं।
प्रचलन बेकार में, बीमार कर दिए हैं। ले, देकर सब बराबर हो जाता है। जो इसमें नहीं पड़ना चाहता, वह कठिनाई में जीता है। कैसी सभ्यता? कैसा विकास? है यह, जिसमें किसी सज्जन व्यक्ति का जीवन यापन चुनौतीपूर्ण हुआ है।
हममें से सभी यह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि कोरोना की रोकथाम में, हमारे ही तो हित हैं। पचास लोग क्यूँ होने चाहिए, विवाह रस्म-रीति के लिए? जब रितु की दादी की अंत्येष्टि 8 लोगों में कर दी गई।
मैंने लोगों को कहते सुना है, 'सुख में जाओ या न जाओ दुःख में जरूर शामिल होना चाहिए'। यहाँ इसके उल्टा हो रहा था। अंत्येष्टि में 8 एवं विवाह में 65 तय किये जा रहे थे।
मैंने अच्छे साहित्य पढ़े थे। लालबहादुर शास्त्री जी की जीवनी पढ़ कर, उनकी नैतिकता से प्रभावित था। अपने कॉलेज के कार्यक्रम में माननीय एपीजे अब्दुल कलाम जी से, मार्गदर्शन पाने का मुझे सौभाग्य मिला था।
ये सभी हमारे सामने, उत्तम उदाहरण खुद बने थे। साथ ही सबने पेरेंट्स के आदर एवं अनुशासन को प्रेरित किया था। पापा, गलत कह रहे थे तब भी उन्हें, मैंने टोका नहीं था।
अंकल से पापा की बात खत्म हो जाने के बाद, सिर्फ इतना कहा था कि - पापा, क्यों न मेरा विवाह कोरोना थमने तक, और स्थगित रखा जाए?
उन्होंने मेरे कहने का गलत अर्थ निकालते हुए पूछा - क्यों बेटे, इतने कम लोगों में सादगी से शादी होना, तुम्हें अच्छी नहीं लग रही है? 
मैंने कहा - नहीं पापा, मैं यह सोच रहा हूँ कि यदि कुछ लोगों को आमंत्रित करने से जिन्हें आमंत्रित नहीं किया जा सके, वे बुरा मानते हैं तो, क्यों न हम घर के ही पाँच सदस्य रहें। ऐसा करने से, अनामंत्रित रह जाने का कोई बुरा न मानेगा। 
पापा बोले- यह कैसे हो सकता है?
मैंने कहा- पापा, इसलिए तो मैं स्थगित करने कह रहा हूँ। मुझे लग रहा है कहीं रितु के पापा भी, अपने पाँच लोगों की बात, बुरा मानते हुए तो नहीं कर रहे हैं। 
पापा शायद अब समझ रहे थे कि मेरे मन में क्या है, बोले - तुम ठीक कह रहे हो, अगर वे पाँच लोग हो सकते हैं तो, हम भी पाँच ही रहें। शादी और टालना अब ठीक नहीं, अभी की मेरी फुरसत का प्रयोग, इस ख़ुशी के लिए कर लेते हैं।
पापा की इस बात से मुझे ख़ुशी हुई, मैंने कहा- पापा, अधिकतम सँख्या की सीमा तय की गई है, उससे कम पर कोई अपराध और रिस्क नहीं है।  
फिर, तब एक सादे आयोजन में हमारा विवाह संपन्न हुआ। 
अभी सुहाग सेज पर मुझसे, रितु आदरपूर्ण स्वर में कह रही है- आपने, मेरे मन को तमाम सरहदों तक प्रभावित किया है। मेरे सपनों में ऐसा ही नवयुवक मेरे पति  रूप में दिखता था, जो नकल को प्रवृत्त हमारे समाज को, अच्छा उदाहरण देता है। जिसकी यदि नकल भी की जाये तो, उसका परिणाम समाज हित में निकलता है। 
आप आईपीएस होते हुए भी, आडंबर से अप्रभावित दिखते हैं। निश्चित ही आप, नवयुवाओं को सद्मार्ग पर प्रेरित करेंगे। आप मिले हैं मुझे, अपना आगामी जीवन सार्थक साथ में, व्यतीत होता दिख रहा है। 
ऐसा कहते हुए मृगनयनी रितु की आँखों में, अपने लिए श्रध्दा एवं प्रेम का भाव, मुझे अभिभूत कर रहा है।
मै रितु के प्यार भरे सानिध्य में खोकर, उसके ऐसे विश्वास को अनुभव करते हुए, अपने कंधों पर अधिक दायित्व बोध आता देख रहा हूँ ...  
       
  --राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
13-06-2020

     

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