Wednesday, June 3, 2020

लेखक जी ..

लेखक जी ..
मैं उदयपुर की रहने वाली हूँ। मैं लगभग नौ-दस वर्ष पूर्व फेसबुक पर नई आयी थी। तब मेरी उम्र 25-26 की ही थी। जीवन के ज्यादा अनुभव नहीं थे। ऐसे में अपरिचित लोग मुझे मित्रता निवेदन भेजते, उन्हें, मैं बिन सोचे विचारे ही स्वीकार कर लेती।
उन्हीं दिनों, 57 वर्षीय लख़नऊ के रहने वाले, एक प्रौढ़ व्यक्ति का मित्रता निवेदन आया था। वह, मैंने स्वीकार कर लिया था।
फिर उनकी पोस्ट, मेरे पढ़ने में आतीं, जिनसे पता चलता कि वह कोई लेखक हैं।
शुरू में, मैंने उनकी लंबी पोस्ट पढ़ने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। एक दिन फुरसत में, उनकी एक पोस्ट ध्यानपूर्वक पढ़ी तो लगा, उनकी शैली, थोड़ी हट कर है। फिर अक्सर मैं उनकी पोस्ट पढ़ने लगी, जिनमें उनके तर्क, लगभग हर मनुष्य में अच्छाई, निहित होना दर्शाते थे। 
उनकी अनूठी शैली से, संदेश बहुत सरलता से समझ आते थे। फिर मैं, उनकी बड़ी प्रशंसिका हो गई। मुझे, उनकी पोस्ट से, प्रेरणायें मिलतीं थीं।
समय के साथ, कुछ अच्छे अनुभव नहीं होने से, मैंने अपने फेसबुक मित्र में से अपरिचितों को विदा कर दिया। लेकिन अपवाद स्वरूप, उन्हें, मैंने फ्रेंड लिस्ट में, रहने दिया।
अब मैं 35 वर्ष की हो गईं हूँ। मेरी बड़ी बेटी 15 एवं छोटी 11 वर्ष की हो चुकी है। पिछले दिनों मैंने, उनका एक स्टेटस पढ़ा कि वे देशाटन पर होने से, फेसबुक पर ज्यादा सक्रिय नहीं रहेंगे। तब मुझे, अच्छा नहीं लगा कि उनकी पोस्ट नहीं आयेंगी। पोस्ट में एक बात से मुझे ख़ुशी भी हुई कि उनके भ्रमण कार्यक्रम में, उन्होंने, उदयपुर भी लिखा था।
मेरे पिता जैसे, इन लेखक जी से, मिलने की इक्छा मुझमें, बलवती हुई।मैंने उनकी कुछ पोस्ट फिर पढ़ीं, जिनमें उनके कहानी किरदार, अच्छी-अच्छी बातें बड़ी सरल एवं सहजता से कहते दिखाई पड़ते हैं, यथा :
आज व्याप्त नफरत के चलन पर, एक कहानी में, कहानी किरदार में, यूँ निराशा दिखती -
भले हम, एक दूसरे को मार काटते हुए, अपने को खत्म कर लें। अपने अहं नहीं बचा सके, तो क्या मुहँ दिखाएंगे अपनी आगामी पीढ़ी को? 
एक कहानी में किरदार पति, अपनी पत्नी की सुंदरता की तुलना भारत से यूँ करता-
तुम बुरा नहीं मानना, अगर मैं कहूँ कि तुमसे भी ज्यादा, प्यारा, मेरा भारत देश है, मेरी खूबसूरत नज़मा।
एक कहानी में ईर्ष्यालु देवरानी किरदार, अहसास करती-
जिस को वह मानती वही भगवान तो जिठानी का भी था। और भगवान यदि देवरानी के हिस्से में ख़ुशी लिख सकता था, तो जिठानी को भी तो ख़ुशी दे सकता था।
उनकी कहानी में, घरेलू झाड़ू-पोंछा करने वाली नौकरानी किरदार भी, जागरूक एवं अत्यंत समझदार होती, जो अपनी बूढी मालकिन से कहती कि- 
ऑन्टी, हमारे प्रधान मंत्री, हम सब से अनुरोध कर रहे हैं कि, मुसीबत के इस समय में,  हम सब, एक घर की जिम्मेदारी लें। इस पर, मैंने, आपके घर के काम की, जिम्मेदारी लेना तय किया है।
किसी कहानी में, भ्रष्टाचार चपेट में आई, अर्निंग बेटी के, किरदार पापा, यूँ समझाते बताये जाते- 
तुम स्वच्छता से कार्य में भी इतना अर्जित कर सकोगी कि जीवन यापन हो जाएगा। तुम अपना वह अस्तित्व बनाये रखो जिससे नारी पुरुष से श्रेष्ठ मनुष्य होती है। 
एक अन्य कहानी में, शहीद किरदार की विधवा हुई पत्नी के प्रति एक युवती में, यूँ सहानुभूति दिखती कि वह सोच रही होती-
काश में नारी नहीं, एक युवक होती, जो शहीद हो गए मेजर की, उस मासूम पत्नी का हाथ माँगने उसके घर जाता। फिर उससे विवाह करके, उसके जीवन से, मेजर पति की कमी, को दूर करने का भरसक प्रयत्न करता। 
एक कहानी में, अपनी अलग रह रही पत्नी को वापिस घर ले जाने के लिए किरदार पति यह कहते मिलता-
अब विश्वास दिलाता हूँ कि पिछले वर्षों के साथ में जिन पलों की खुशियों को हमने खोया किया है उसकी भरपाई हेतु अपनी किसी मूर्खता में एक भी पल ख़राब नहीं होने दूँगा।
एक हृदय विदारक रेप-मर्डर वाली कहानी में, रेप के बाद जलाई जाती पीड़िता की वेदना, उसके इन शब्दों के जरिये दिखाते-
ये न समझना कि अस्मिता यूँ नोचे जाने और जिंदा जलाये जाने से मुझे पीड़ा नहीं हुई थी। 
ओ, प्रिय मेरे देशवासियों - मेरी अधजली लाश पूरी न जलाना, इसे नुमाइश के लिए रखना, ताकि देख सकें लोग - "कोई सुंदर बेटी, अपनी लाज लुट जाने और जिन्दा जला दिये जाने के बाद कैसी वीभत्स रूप को प्राप्त हो जाती है" 
ओह्ह जिंदा जलने की वेदना कल्पना से बहुत अधिक दर्दनाक असहनीय है। 
एक अन्य पोस्ट में, फाँसी की सजा पाए, अपराधी किरदार, का पश्चाताप बोध ऐसे दिखाते-
मुझ अपराधी बेटे की मौत की आशंका ही जब मेरे माँ-पिता को भीषण दुःखदाई है, तब उनकी क्या हालत है जिनकी निर्दोष मासूम बेटी पर पहले मैंने दुराचार किया था और फिर अत्यंत वेदनादाई मौत को विवश किया था। 
ऐसी और भी अनेक पोस्ट के अद्भुत एवं सहज वाक्य रचना, मुझे स्मरण आये। तब मैं उनसे, मिलने की उत्कंठा रोक नहीं सकी।
मैंने अपने पतिदेव से उनसे, मिलने की अनुमति चाही। वे खुद भी मेरे कारण, फेसबुक में उनसे जुड़े थे। उन्होंने, उन लेखक की उम्र 65 से अधिक है, देख कर मुझे पर कोई खतरा नहीं देखते हुए, अनुमति दे दी।
तब मैसेंजर पर, मैंने लेखक जी के संबोधन सहित, उनके उदयपुर में होने वाली दिनाँक की जानकारी पूछी, साथ ही उनसे मिलने की जिज्ञासा प्रकट की।
इसके रिप्लाई में उन्होंने लिखा कि वे तीन दिन बाद, दो दिन, उदयपुर में रहेंगे। तब मिलने के समय बताएंगे। इसी में, उन्होंने अपना मोबाइल नं. भी लिखा।
तीन दिन बाद सुबह ही, पहली बार मैंने, उनसे मोबाइल पर बात की। उन्होंने एक फाइव स्टार होटल में, अगले दिन लंच पर आने का निमंत्रण दिया। कहा संभव हो तो, अपने पति को भी साथ लेकर आइये।

मेरे पति अगले दिन व्यस्त रहने वाले थे, अतः मैंने उनसे कहा कि मैं अकेली ही आ सकूँगी।       
यह तय होने के बाद, मैं उनसे मिलने के लिए अत्यंत रोमाँचित हुई। मैंने याद किया कि मेरे स्टेटस में लगी, मेरी कैसी फोटो पर वे प्रशंसा लिखते थे। फिर अगले दिन मैंने, हमारा परंपरागत घाघरा कुर्ते वाला परिधान एवं हाथी दाँत के आभूषण पहने और उनसे भेंट करने, निर्धारित समय पर होटल जा पहुँची।
उन्होंने बेहद स्नेह से मेरा स्वागत भी किया। लेकिन उन्हें पहचानने में, मुझे कठिनाई हुई। वे फेसबुक में अस्त व्यस्त सी दाढ़ी एवं बेपरवाह कपड़ों में, डीपी में होते हैं। यहाँ जींस एवं सफेद शर्ट में, क्लीनशेव्ड, तथा काले रंगे हुए बालों में थे। 
यही बात मुझे खटक गई कि फाइव स्टार होटल एवं इस गेट अप में वे, किसी अन्य तरह से, मुझे प्रभावित करना तो नहीं चाहते।
वे अत्यंत आग्रहपूर्वक मुझे खिलाते रहे। लंच के अंत में मिष्ठान ग्रहण करते हुए, राजपूताना गरिमा में जीने वाली मैं, अपने को रोक नहीं सकी।
मैंने बेबाक कहा कि लेखक जी, आज आप फेसबुक से बिलकुल भिन्न एवं अत्यंत बदले हुए रूप में हैं। आपका उद्देश्य अकेले में, मुझे अन्य तरह से प्रभावित करने का तो नहीं है ?   
यह उन पर अप्रत्याशित शाब्दिक हमला था। एक पल को उनका मुखड़ा बुझा हुआ सा दिखाई पड़ा। फिर उन्होंने सप्रयास, स्वयं को संयत किया।
मुस्कुराते हुए उत्तर दिया-  बेटी, फेसबुक पर आप मेरी पोस्ट के माध्यम से मेरे मन एवं विचार से परिचित रही हैं। यहाँ जब आप पहली बार साक्षात भेंट करने आ रहीं हैं। शायद यह हममें पहली एवं आखिरी भी भेंट होगी यह सोचते हुए, मैं 67 की उम्र में, मानसिक के साथ, शारीरिक रूप से भी चुस्त दुरुस्त हूँ ऐसा प्रभाव आप पर बनाना चाहता था। इसलिए मैं इस रूप में तुम्हारे सामने हूँ। मेरा अभिप्राय कोई गलत होता तो मैं आपके पति को साथ लाने नहीं कहता। 
उनके इस सहज उत्तर से मुझे अनुभव हुआ कि मैंने बड़ी गलती की है।
मैंने कहा- लेखक जी, मुझे क्षमा कीजिये, मैंने गलत सोच लिया और बोल दिया है।
तब उनने उत्तर दिया - जी बेटी, यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि मेरी वय के कुछ व्यक्ति छिछोरी हरकत करते पाए जाते हैं। इसी कारण तुम्हारे मन में यह शंका हुई है। तुम इसलिए दुःख नहीं करो। मुझे ख़ुशी है कि आपने, सूक्ष्मता से मुझमें परिवर्तन को नोटिस किया है। 
मैं, हर भारतीय नारी को यूँ ही जागृत और चौकन्ना देखना चाहता हूँ। मुझे अत्यंत ख़ुशी है कि अपनी कहानी जैसे, एक काल्पनिक एवं प्रिय किरदार से आज मैं जीवंत साक्षात्कार कर रहा हूँ।     
यूँ मेरी, उनसे अजीबो गरीब पहली और अंतिम भेंट खत्म हुई।इसमें अनुभवी लेखक जी के लिए मेरे ह्रदय में सम्मान, श्रध्दा में बदल गया था।
लेखक जी मुझे, अपने तर्क पूर्ण उत्तर से ग्लानि बोध से उबार रहे थे। मुझे मालूम नहीं मगर कि, मेरे संदेह करने से वे खुद, कितने आहत हुए थे ... 
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
03-06-2020

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