Saturday, August 3, 2019

मैं जनसँख्या हूँ

मैं जनसँख्या हूँ
-----------------

देश की स्वतंत्रता के समय मैं छरहरी (sylph) एवं आकर्षक (attractive) थी. पिछले सात दशकों में मुझे वह खुराक मिली है, जिससे में वीभत्स स्थूलकाय (obesity) स्वरूप में आ गई हूँ। जब किसी व्यक्ति का शरीर स्थूल होता है तो वह आकर्षक दिखने एवं स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए डाइटिंग, वर्कआउट एवं अन्य दूसरे उपाय करता है।  लेकिन मुझे देख अचरज होता है कि मैं जनसँख्या जो इन्हीं मनुष्य से मिलकर बनीं हूँ, को इस दृष्टि से बिलकुल उपेक्षित छोड़ दिया गया है। मैं आज बेहद भद्दे एवं वीभत्स स्थूल रूप में अत्यंत रोगी हो गई हूँ।
मैं देश में विभिन्न समस्या (रोगों) के लिए जिम्मेदार हूँ। मेरे अत्यंत स्थूल होने से जहाँ-तहाँ कतारें हैं. हर जगह भीड़ एवं उनकी फैलाई गंदगी है। मैं सार्वजनिक यातायात साधनों/स्थानों को इस कदर ठसाठस भर जाने के लिए जिम्मेदार हूँ जिसमें कलह, हिंसा एवं नारी जाति के साथ छेड़छाड़ व्यापक होती है। मैं हर घर में सदस्यों की अधिकता से बढ़ती हूँ। अर्थात मेरे स्थूल रूप से हर घर में प्रति सदस्य को मिलने वाली जगह की कमी हो जाती है। मेरे स्थूल होने के कारण हर घर में आर्थिक समस्या बढ़ती है.
मैं हैरान हूँ यह देखकर कि देश के नागरिकों ने जिन्हें इन समस्याओं का हल मेरी स्थूलता के कम किये जाने में देखना चाहिए था, वे नासमझ समाधान मिलावट/नकली/घटिया सामग्री व्यापार/उत्पादन के तथा भ्रष्टाचार के माध्यम से आय बढ़ाने में देख रहे हैं। इनकी यह अनैतिकता एक दूसरे के स्वास्थ्य एवं जान के दुश्मन बन जाने का कारण बन रही है। 

यद्यपि अपने (या देश के) लिए किया जाने वाला कोई कार्य छोटा या गंदा नहीं होता लेकिन यह देख मुझे शर्मिंदगी होती है, जब देश के नागरिक दुनिया भर को सेवायें देने के लिए सफाई कर्मी, मजदूर, वाहन ड्राइवर एवं अन्य दासिता कर्मी उपलब्ध कराते हैं। मुझे देख दुःख होता है, जब देश में सब तरफ खूनखराबे, अराजकता एवं भीड़ में घुटन अनुभव करने से एवं योग्यता को उचित, आदर और पारिश्रमिक नहीं मिलने से-  देश की उच्च प्रतिभा, अन्य देशों में बेहतर संभावना देख यहाँ से प्रवास को विवश होती है।
मेरी स्थूलता पिछले छह दशकों में 21 फीसदी से ज्यादा ग्रोथ रेट के साथ बढ़ाई गई है, जहाँ 1961 में, मैं छरहरी (43 करोड़) थी, वहाँ आज 2019 में मैं बदसूरत मोटी (135 करोड़) कर दी गई हूँ। आज मैं देश के खनिज संशाधनों का जिस दर से उपभोग कर रही हूँ कि आगामी 50 वर्षों में देश खनिज रूप से कंगाली पर पहुँच जाएगा।
आजादी के उपरान्त कितने ही प्रगति के कार्य हुए हैं लेकिन मेरी स्थूलता ने सब प्रगतियाँ निगल ली हैं. परिणाम यह हुआ है कि किसी भी उपलब्धि की तालिका में मुझ जैसी स्थूलता का विशाल भारत 150 देशों की दुनिया में 125 के आसपास निचले स्थानों पर अपनी बेशर्मी की मौजूदगी दर्ज कराता है। 
इन हालातों से अत्यंत व्यथित मैं जनसँख्या - हाथ जोड़ विनती करती हूँ कि मुझे न तो पुत्र प्राप्ति (बेटियाँ होते हुए) के मोह में ना ही मज़हब के वर्चस्व प्राप्त करने के लक्ष्य से ज्यादा स्थूल किया जाए। इन बेकार के जूनून में औरतों को मात्र बच्चे पैदा कर देने वाली मशीन न बना दिया जाए. मुझे, मात्रा (स्थूलता- Quantity) नहीं प्रदान की जाए अपितु मुझे गुणवत्ता (Quality) प्रदान जाए।  मुझे अपने लोगों का ब्लैक इंडियन या ज़ाहिल हिंदुस्तानी का उपहास पसंद नहीं। मुझमें वह गुणवत्ता सुनिश्चित की जाये कि दुनिया कहने को विवश हो 'वाह भारत' और मेरी हर इकाई गर्व से कहे कि 'वाह हम भारतीय'। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
04.08.2019


No comments:

Post a Comment