Tuesday, August 13, 2019

चले गए ..

चले गए ..
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उसे लग रहा था, अंत करीब है, कुछ समय में चिरनिद्रा में चला जाएगा। सिर और सीने में असहनीय भीषण दर्द उठा हुआ था। वह सुन, देख रहा है, मोबाइल पर की जा रहीं वे बातें जो अति चिंतित मुद्रा में, अनंत(बेटा) उसे एम्स ले जाये जा सकने के लिए कर रहा है.अनंत को राह नहीं सूझ रही कि कैसे ले जाए पापा को अस्पताल तक? बहू मीता भी उसे और अनंत की हालत को देख परेशान हो रही थी। दरअसल तीन दिनों से भारत का युध्द छिड़ा हुआ था। भारत के रहवासी कई, दुश्मन देश के पक्ष में भड़के हुए थे. इस कारण देश की सीमा बाह्य दुश्मन से और  अंदर सड़कें अंदरूनी दुश्मन के संघर्ष में रक्तरंजित हो रहीं थीं।
जीवन के इस अंतिम काल में अचानक उसे इन हालात के बन जाने के लिए दोष स्वयं में दिखाई दे रहा था। वह देश की अग्रणी समाचार चैनल का मालिक था। उसने अपने लिए धन और प्रतिष्ठा एक राजनैतिक पार्टी के हितों को प्रौन्नत करने में कमाया था। एक विशिष्ट कौम में वह लोकप्रिय था। देश के बाहर की भारत विरोधी ताकतों ने उसके इन कार्यों को सराहनीय बताते हुए, अनेक राष्ट्रीय, अंर्तराष्ट्रीय पुरुस्कारों से अलंकृत कराया था। वह इन सबमें इतना मदहोश रहा था कि देश कभी इस दौर से भी गुजरेगा उसे पहले कभी दिखाई नहीं दे सका था।
आज खुद को हो रही भीषण पीड़ा और बेटे-बहू को अपने को लेकर हो रही चिंता ने उसकी दृष्टि पर पड़ा पर्दा उठा दिया था। देश और सीमा में संघर्ष में मारे जा रहे लाखों लोगों का हत्यारा वह स्वयं में देख रहा था।
वास्तव में हर घटना के कई पक्ष होते हैं. पिछले बीस वर्ष तक अपनी चैनल के उद्घोषकों के द्वारा वह पक्ष प्रधानता से उल्लेखित करवाता था जो एक पार्टी विशेष और एक कौम विशेष को प्रिय लगती थी। जिस दृष्टिकोण में फायदा उसे, उस राजनैतिक पार्टी और देश से बाहर के विरोधियों को (जो देश को एक विकसित,उन्नत और खुशहाल राष्ट्र नहीं देखना चाहते हैं) को मिलता था उस पर उसका चैनल बेहद मुखर होता था तथा  घटनाओं के उस पक्ष पर वे चुप्पी साधते थे , जिसको देखने से किसी दर्शक की तर्कशक्ति में अच्छाई बुराई की सहज पहचान आ सके।
उसे अंतिम कुछ पलों में अपना अपराध दिखाई दे गया था . उसे खुद पर कोफ़्त हो रही थी कि वह अपनी चैनल मालिक (पर होने से) था जिस पर बीस वर्ष तक अपने प्रसारण पर देशवासियों का बहुमूल्य समय व्यय करवाता आया था, उसके माध्यम से वह समाज सौहार्द्र को पुष्ट करने वाले, देश के विकास को ताकत लगाने वाले और नागरिकों की खुशहाली सुनिश्चित करने वाले प्रसारण करवा सकता था। उसकी न हो सकने वाली, उपलब्धियों (कुछ साथ नहीं जाता)  की लोलुपता में मगर हाय वह नीच बुध्दि, हाय वह स्वहित भ्रम, हाय वह आत्ममुग्धता जिसने उसको अँधा कर दिया. वह देखने में असमर्थ रहा कि भारत एक भव्य, अखंड राष्ट्र के गौरव को कितनी क्षति सहनी होगी।
वह इस पल, जीवन में कुछ और दिन चाहता है कि समग्र राष्ट्र से क्षमा याचना कर ले.मिले कुछ दिनों में ऐसे प्रसारण करवा सके कि आपस में ही मारकाट मचाते नागरिकों की तर्कक्षमता जागृत कर दें. जिसमें उन्हें मारकाट के इतिहास रचने में अपनी तारीफ़ न दिखाई दे अपितु परस्पर अनुराग रखने में राष्ट्र भव्यता और जीवन की सार्थकता दिखाई दे जाए। नहीं, लेकिन दुर्भाग्य ऐसे गहन पछतावे में ही उसकी दुखी आत्मा अनंत में विलीन हो गई है।
बाद में एक इतिहासकार ने लिखा कि 'फलाने'  एक विलक्षण प्रतिभा के धनी होते हुए भी - धन, प्रतिष्ठा लोलुपता में लगे रहे, अपने अहंकार में वो जो भलाई की परंपरा दे सकते थे, लेकिन ठीक उसके विपरीत एक नफ़रत की परंपरा रख के चले गए ..

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
14.08.2019

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