Tuesday, August 20, 2019

एक बक़वास

एक बक़वास ...


फ़िजा लिखें, वादियाँ कहें या गुलिस्तां बतायें इस ज़मीं को
जिसमें गुजर कर गईं, करतीं, कर जाती ज़िंदगियाँ अनेकों हैं
हमारी तरफ ग्रामीण क्षेत्र में विशेष कर किसानों द्वारा मनाया जाने वाला एक पर्व होता है। इस दिन किसान अपने उन बैलों को जिनका उपयोग उन्होंने कृषि कार्यों में लिया होता है, के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए सजाया करते हैं। इस पर्व को यहाँ पोला कहा जाता है। इसमें बैल जोड़ियों की दौड़-स्पर्धा भी हँसी-ख़ुशी आयोजित की जाती है। बचपन में हमें यह दौड़ देखने की बेहद उत्सुकता रहती थी। अब सोचते हैं, बेचारे बैल, इस एक दिन कितने भी सजाये जायें रहेंगे बैल ही और जोते जायेंगे, हल कोल्हू और बैलगाड़ियों में ही और फिर बूढ़े होने पर क़त्ल किये जायेंगे कसाई खानों में ही।
कहना यह चाहते हैं कि हर कोई यहाँ भ्रम नाम और भ्रम काया है जो ज़मीन पर कुछ वक़्त दिखाई या सुनाई देता है। जिसकी परिणिति तो बैल सदृश्य ही है। किंतु  इस अनंत तक चलते रहने वाले काल में थोड़े से वक़्त में वह नाम और एक काय से सजाया गया (विभूषित) रहता है। हाँ वह भ्रम ही होता है ना जो कुछ वक़्त तो प्रतीत हो फिर जिसका कोई वज़ूद न हो?
और भी विचित्र बात देखिये स्वयं एक भ्रम अपने को किस तरह भ्रम से सजाये रखने को लालायित रहता है। काया को रूपवान, बलवान और युवा दिखाये रखने की और नाम को प्रतिष्ठित करने के उपाय आजीवन चलते हैं। इसे मजबूती देने की कोशिशों में धन-वैभव, ज्ञान और प्रभाव अर्जित करने के क्रम और पुरजोर कर्म चलते हैं। खुद एक भ्रम, और खुद सजाये रखने के भ्रम प्रयास तो एक बार उचित भी हों। लेकिन बैलों की तरह ही सजाने वाले कुछ और मिल जाते हैं। जबकि हर काया अस्थिकाय रूप से समान हैं और समान आकार को प्राप्त होती हैं, उन्हें धर्म, जाति और देश विशेष की नागरिकता से भी सजाया रखा जाता है।  उन्हें ज़मीन पर, उनके   जेहन में भ्रामक रेखायें खींच कर सजा दिया जाता है। इस कर दी गई सजावट को बनाये रखने के लिए वे बेचारे (एक भ्रम) दूसरे (वह भी एक भ्रम) को मिटाने की या पीड़ा देने की कोशिशों में लगे रहते हैं।
जीवन है जिसमें हर किसी के पुरुषार्थ चलें तो किसी को आपत्ति या परेशानी नहीं होती। बुराई मगर तब है, जब औरों को अड़ंगे लगा गिराते हुए जीवन स्पर्धा में कोई स्वयं अग्रणी हो जाना चाहता है। 
आखिर में, पुष्प की कोई अभिलाषा नहीं होती. तब भी उन्हें मंदिर-मस्जिद,गिरजाघरों, सुहाग सेज, समाधियों, गुलदानों  या किसी पथ आदि पर सजाया जाता है। पुष्प, जिस पौधे में खिलता है उसी पर शोभायमान सबसे अधिक आकर्षक और सुगंधित रहता है। यह भ्रम काय, भ्रम नाम से अलंकृत हम भी अपनी आत्मा से जुड़े रहें और मिली कर्म की शक्ति से उन कर्मों की खुशबू बिखेरें जिसकी ताजगी में, जिनको जब यह ज़मीन/ दुनिया मिले उन्हें ख़ुशग़वार और आकर्षक अपनी ज़िंदगी लगे. 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
21-08-2019


  

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