Friday, August 9, 2019

काश्मीर की कली

काश्मीर की कली ..

किसी भी इंसान के दिल के अंदर वह 1 काला कोना हो सकता है जो उसे किसी काले कारनामे को अंजाम देने को दुष्प्रेरित कर सकता है। इंसानियत तब होती है जब इंसान किसी शिक्षा, सँस्कार या प्रेरणा से इस काले कोने की कालिख साफ़ करने की कोशिश करता है। या अपने इस काले कोने के आकार को बहुत छोटा कर देता है। आज वक़्त ऐसी इंसानियत का है। आज हम उस संधिकाल पर है जहाँ देश, लोगों के काले कारनामों से पैदा हुई, पुरानी ख़राबियों से मुक्त होकर अपने समग्र समाज का वर्तमान दुरुस्त कर आगामी पीढ़ियों के लिए सुनहरे भविष्य को सुनिश्चित करने को उत्सुक है। इस भूमिका को पढ़कर आपका मन लेखक क्या लिखना चाहता है, इसे जानने को जरूर उत्सुक हुआ होगा। तो लीजिये पढ़िए आगे लेखक की दरख्वास्त -
अभी हाल में हमारी सरकार द्वारा देश की रीति नीति ठीक करने के कई फैसले लिए जा रहे हैं जो देश के सभी नागरिकों के  खुशहाल वर्तमान और आगामी पीढ़ियों के उज्जवल भविष्य को सुनिश्चित करने के दृष्टिगत जरूरी हैं। उनमें से एक-
हमारे देश के सर्वाधिक अशाँत प्रदेश कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद #370 को हटा कर, प्रदेश का पुर्नगठन का है। इसका प्रथम उद्देश्य-

"हमारे से पृथक हुआ पाकिस्तान जो रंजिश के नकारात्मक नज़रिये से ख़ुद अशाँत है और अपनी बदनीयत घुसपैठ से इस भूभाग में आतंक के कारनामे अंजाम देता है और मज़हबी कट्टरता के बहाने यहाँ के लोगों का ब्रेन वॉश करते हुए भारत को भी अपने जैसा अशाँत और पिछड़ा देखना चाहता है, के मंसूबों को विफल करना है." 
तथा दूसरा -
कश्मीर वासियों को देश की मुख्यधारा में शामिल करते हुए, वहाँ के नागरिकों को बेहतर मौके देना , वहाँ अधोसंरचना विकसित करते हुए वहाँ के युवाओं को विकास के कार्य में योगदान को उत्सुक कर/लगा कर, उन्हीं के हाथों उनके सुंदर प्रदेश में जो धरती का स्वर्ग कहलाता है, खुशहाली बहाल करवाना है। 
यह इस सरकार का साहसिक फैसला है जो पिछले तीन दशक से लगातार व्याप्त चिंतनीय हालातों के बावजूद किसी किसी भय से पूर्व सरकारें नहीं ले सकीं थीं। ज़ाहिर है लक्ष्य बेहद पाक है, जिसे हासिल करने के लिए, न सिर्फ कश्मीर वासियों का अपितु शेष भारतीयों का सहयोग दरकार है। 
ऐसे में विषयवस्तु पर लौटते हुए लेखक का आग्रह है कि हम सब इसे कोई ख़ुशी या बड़ी जीत के जश्न मौका नहीं माने. बल्कि इसे एक जिम्मेदारी के बतौर देखें। और अपनी जिम्मेदारी को सही तरह निभाते हुए कश्मीर में अपेक्षित खुशहाली लाना सुनिश्चित करें। स्मरण रहे, हम सबका जिम्मेदारी पूर्वक किया योगदान वह आइना साबित होगा जिसमें निहारते हुए, बहकावों में आये लोगों का खुद पर खेद होगा। वे देख और महसूस कर सकेंगे कि वहाँ निर्मित किये गए हालातों से उन्होंने अपनी ही कुछ पीढ़ियों के ज़िंदगी के मजे को तबाह किया है। वे यह भूल भी अनुभव कर सकेंगे कि  खुद उन्होंने अपनी नई पुश्तों का भविष्य ख़राब किया है.  
तथाकथित इस संधिकाल में हमें वह भूल नहीं दोहरानी है जो 1947 के विभाजन के समय हमारी पूर्व पीढ़ी ने एक दूसरे पर लूट, हिंसा, हत्या और बलात्कार करते हुए, ख़राब परिणाम रूप दोनों कौमों के दिलों में लंबे समय तक  न मिटने वाली नफ़रत उत्पन्न कर, की थी। 
अति उत्साह में अपने बड़े बोलों से और हल्की हसरतों को ज़ाहिर करने से हमें बचना है। हमें कश्मीर की लड़कियों को सिर्फ गोरी और सुंदर नहीं देखना है। बल्कि उनमें अपने जैसा ही दिल जान लेना है और उनकी, अपनी सरीखी ही धड़कनों का अनुभव करना है जो ज़िंदगी में सुविधा, सम्मान, मौके और उपलब्धियों के हासिल कर लेने को उत्सुक रहती हैं। आज हमें यह भी मान लेना चाहिए कि अपने मज़हब के संदेशों के आधीन, अपने मिले सँस्कार के आधीन, अपने बड़ों के दबावों के आधीन वे एकाएक कश्मीर और अपने दायरों से बाहर नहीं आ सकेंगी।  हम उनके रूप पर आसक्त या मुग्ध हो उनसे शादी का प्रस्ताव करेंगे तो उसे वह हममें हवस की अतिरेकता जान कर हमसे दूर क्षरकने में अपनी बेहतरी मानेंगीं. ऐसी सब हमारी हल्की बातों का दुष्प्रभाव  सिर्फ उन्हीं पर ही नहीं उनके परिवारजनों पर भी पड़ेगा. तब वे हमसे जुड़ने का नहीं दूर होने का विकल्प अपनायेंगे। यह हमारी सरकार के नए फैसले की निहित भावनाओं के विपरीत परिणाम का कारण होगा। और इतिहास, हमारी पीढ़ी को भी 1947 की चूक करने वाली पीढ़ी ही जैसा निरूपित कर देगा। यही नहीं हम अपनी करतूतों से अपनी संतानों पर वही ख़ौफ़ का साया दे देने के भी अपराधी होंगे, जिस ख़ौफ़ में हम स्वयं जीते हैं. हम हर पल आशंकित रहते हैं कि जाने कहाँ हम आतंक के हादसे का शिकार हो जायें और न जाने कब, कहाँ हमारे बच्चे, बहन-बेटियाँ नफरत जनित लूट,हिंसा और बलात्कार की चपेट में आ जायें। हमें अपने कटु अनुभवों से, सीख नहीं लेने की मूर्खता कदापि नहीं करना चाहिए।  इस संधिकाल में हमसे जिस जिम्मेदारी की अपेक्षा है उस अनुरूप हमारे आचरण और कर्म हमें रखने ही चाहिए. 
रहा सवाल, कश्मीरी लड़कियों से हमारी मोहब्बत के अनुभव करने का तो यह समझना उचित है कि उन्हें जबरन उनके दायरे से बाहर खींचने की हमारी कोई भी कोशिश या ऐसी ही कोई व्यर्थ बकवास हमारी उनसे मोहब्बत साबित न कर सकेगी। हम उनके हितैषी तभी हो सकेंगे जब हम उन्हें (इसी तरह अपनी बहन बेटियों को भी) उनके दायरों में ही जी लेने के अवसर  सुलभ करा  सकेंगे। हमारी, उनके प्रति हितैषी भावना यदि ज्यादा जोर मार रही हो तो हमने उनके उच्च शिक्षा, उनके आधुनिक परिवेश देने वाले साधन और वहाँ के विकास में सहयोग और श्रम देना चाहिए। इनसे उन्हें, पुरातन मानसिक संकीर्णताओं, अंधविश्वासों और उनकी अहितकारी आस्थाओं से बाहर निकलने की राह खुद सूझ सकेगी। अतएव बहन बेटियों को जबरन उनके दायरों से जबरन बाहर खींचने की जरूरत नहीं है, अपितु आज उनके दायरों को बड़ा कर देने की जरूरत है. जिसमें वे  अपनी खुशहाल ज़िंदगी के लिए अपने प्रगतिशील फैसले खुद लेने का साहस कर सकें। 
हमें स्मरण रहे #कश्मीर_की_कली का मुरझा जाना कदापि वह खूबसूरती नहीं दे सकेगी जो उसके खिले होने से दर्शित होती है। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
10-08-2019


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