Monday, August 12, 2019

प्रेमिका का पत्नी होना

प्रेमिका का पत्नी होना ...

14.09.2009
हिंदी दिवस था, कॉलेज में तात्कालिक भाषण प्रतियोगिता थी. हॉल, छात्र-छात्राओं से ठसाठस भरा हुआ था। कुछ प्रतियोगी चिट से मिले विषयों पर भाषण कर जा चुके थे। बाद में एक शर्माता,सकुचाता हुआ छात्र मंच पर आया था। उसने अपनी चिट निकाली थी, उद्घोषक ने तब कहा था छात्र का नाम सफल, क्लास सेवेंथ सेमिस्टर (सी एस), विषय - 'लड़की'. सफलता ने अपने से मैचिंग नाम और विषय सुनकर, पहलू बदल कर अपनी बैठक ज्यादा सजगता की कर ली।
सफल ने आरंभ धीमे स्वर से फिर लय प्राप्त करते हुए कहा -  क्या होती है एक लड़की जिसे हम 'लड़की' देखते हैं?, लड़की भी मनुष्य होती है। उसके हृदय में भी वही जीवन कामनायें होती हैं, जो एक मानव मन में हो सकती है। जिस समय एक मनुष्य का हम लड़की होना देख रहे होते हैं। वह आसपास के वातावरण और हमारी दृष्टि को अपने पर केंद्रित देख, मन ही मन बेहद डर रही हो सकती है। उसे अपने पापा, मम्मी और भाई की अपने बारे में चिंता का ख़्याल आ रहा हो सकता है. हमारी घूरती दृष्टि से वह, हममें 'सावधान इंडिया' में दिखाए गए नारी जाति पर छल, हिंसा या बलात्कार करने वाला दुष्ट देख रही हो सकती है। फिर एक छोटी सी चुप्पी लेकर सफल ने आगे कहना शुरू किया- बदल रहे हमारे समाज में आज 'लड़की', शिक्षा और व्यवसायिक योग्यता प्राप्त करते हुए आर्थिक आत्म निर्भरता प्राप्त करने के मंतव्य से घर से बाहर निकलती है। वह अपने पेरेंट्स और फिर भविष्य में अपने स्वयं के परिवार में अपने आर्थिक योगदान के माध्यम से संतुष्ट होना चाहती है। वह घर की चौखट से बाहर निकल समाज में अपना भी एक सम्मान का स्थान देखने का सपना रखती है।
इक पल, इधर सफल एक छोटा पॉज लेता है, उधर दीर्घा में बैठी सफलता की भाव भंगिमा मंत्रमुग्ध सी दिखती है। 
सफल आगे कहता है - कोई लड़की भी हम जैसे विभिन्न शैली के परिधानों की ललक रखती है। उसके पहनावे के व्यर्थ अर्थ हमें नहीं निकालने चाहिए। आकर्षक दिखना सिर्फ पुरुष का अधिकार नहीं होता। ना ही किसी लड़की का स्वयं का आकर्षक दिखाने का उद्देश्य, हमसे शारीरिक संबंध का निमंत्रण होता है। एक लड़की में हम, वही क्यूँ नहीं देखते जो हम अपनी बहन और बेटी में देखते हैं। क्या हम अपनी बहन या बेटी के पीछे कामुकता की दृष्टि लिए पुरुषों का जुलूस देखना चाहते हैं? यदि नहीं तो ऐसे किसी जुलूस का हमें अंग नहीं होना चाहिए। अपितु हमसे शक्ति में शारीरिक रूप से कमजोर किसी भी लड़की के लिए सहयोग का भाव हममें होना चाहिए जिसे अनुभव कर कोई 'लड़की' स्वयं को सबके बीच सुरक्षित अनुभव करते हुए उसकी मनोवाँछित उपलब्धियों का राह प्रशस्त होती हुई पाती है।
सफल का इतना कहते ही, उसके समय समाप्ति की बेल बज उठती है। हॉल जिसमें अभी कुछ मिनटों से पिन ड्राप साइलेंस पसरा हुआ था, में तालियों की आवाज गूँजती है. जिससे, सफलता की तंद्रा भंग होती है और उसके हाथ तालियाँ बजाने लगते हैं, वह अन्य श्रोताओं की तालियाँ बंद होने पर भी बजाते रहती है, और इससे जब सबकी दृष्टि अपनी ओर अनुभव करती है तो शर्माकर सिर झुका लेती है।
14.09.2019
 आज सेकन्ड सैटरडे का अवकाश था. फिर भी और दिनों की तरह सफ़लता की नींद प्रातः 5 बजे खुल जाती है. धीमी रोशनी में वह बेड पर अपने बगल में निद्रामग्न अपनी तीन वर्षीया बेटी अश्रुना और सफल के चेहरे को निहारती है। फिर वॉश रूम जाती है, लौटकर मोबाइल उठाते हुए पुनः अलसाई सी बिस्तर में लेटती है। व्हाट्सएप्प के 1 संदेश से आज 'हिंदी दिवस' का होना ज्ञात होता है। जिससे उसके मन में 10 वर्ष पहले के हिंदी दिवस और फिर आज तक विगत समय की याद ताजा होती है।  कि कैसे उस दिन से वह सफल की प्रेमिका हुई, कैसे सफल को उसमें और उसे सफलता में अपनी ज़िंदगी और दुनिया दिखाई दी। कैसी गर्मजोशी होती थी उन दिनों, सफल के प्यार में, हर मुलाकात पर. और कैसे उसे सफल की प्रेमिका से पत्नी हो जाने में यानि उनके प्यार को सफलता मिली। कैसे उसे अश्रुना के गर्भ में आने के दिनों सफल का प्यार और संबल मिला, जिसकी बदौलत उसने प्रसव के कष्ट को, भय से निजात पाते हुए साहस से सह लिया। 
सफल के प्यारे से चेहरे को वह देखती है फिर मन में थोड़ी रुष्ट होते हुए शिकायत करती कि सफल उस गर्मजोशी से अब उससे प्यार प्रगट नहीं करता जैसा वह तब दिखाता था जैसा वह करीब तीन वर्षों तक उसकी प्रेमिका की तरह होने में अनुभव करती थी।
 यह सब सोचते हुए वह निश्चय करती है कि सफल को आज कटघरे में खड़ा कर उससे यह प्रश्न जरूर करेगी कि क्या वे प्रेमिका के पत्नी बन जाने का दर्द को समझते हैं जो प्रेम बचाये रखने हेतु प्रेमिका बनी रहना पत्नी होने से बेहतर अनुभव करती है? वह हलाल होती बकरी नहीं जो बोल नहीं सकती और वह, 'वह लड़की' है जिसके सेंटीमेंट्स को अनुभव कर आप दस वर्ष पूर्व जमकर बोले थे। 
अपने संकल्प अनुरूप दोपहर में जब अश्रुना सो गई तब सफलता ने सफल पर इस प्रश्न के माध्यम से हमला कर दिया। सफल पहले तो हकबकाया फिर संभल कर 10 वर्ष पूर्व के तात्कालिक भाषण वाले प्रतियोगी की तरह कहना प्रारंभ कर दिया - सफ़लता, हमारा समाज पाश्चात्य से भिन्न समाज है। पाश्चात्य में जहाँ लड़की दैहिक आकर्षण से किसी पुरुष की प्रेमिका होती है, और वह आकर्षण समाप्त होने पर किसी अन्य की प्रेमिका हो जाने में गुरेज नहीं करती है। वहाँ, उस समाज में वह ऐसी परिस्थिति भी नहीं देखती जिसमें अकेली भी गुजर करने में उसे मुश्किल हो। 
जबकि हमारा समाज इससे भिन्न सँस्कृति का पैरोकार रहा है जहाँ किशोरवया लड़की, जब दैहिक आकर्षण के वशीभूत किसी लड़के की प्रेमिका होती है तो उसी की वह पत्नी हो जाने की कामना करती है। यहाँ आरंभ में उसे प्रेमिका की तरह ही अपेक्षित प्यार तो मिलता है। लेकिन विवाह बंधन में बँधने से उसके ताल्लुकात लड़के से सिर्फ उतने वक़्त के नहीं होते जितना प्रेमिका के रूप में पार्क में, बाज़ार में या अन्य जगह मिलने के वक़्त जितने होते हैं। उस थोड़े थोड़े वक़्त के स्पेल में दोनों पर कोई और जिम्मेदारी भी नहीं होती कि जिसे वे प्यार की बातें और जीवन सपने सजाने में मग्नता के अतिरक्त अनुभव करते हों।
इससे अलग वैवाहिक जीवन का साथ हर वक़्त का होता है जिसमें प्यार के इतर उन जिम्मेदारियों को लेकर चलने में व्यस्त होना होता है, जो आज के समाज में सम्मान और सफल जीवन की पहचान हासिल करने के लिए किसी भी व्यक्ति(यों) के लिए आवश्यक होता है। समय के साथ दैहिक संबंधों की भूख भी कम होती है। ना भी हो तो अपने हो गए बच्चों के समक्ष हम प्रेमी-प्रेमिका का रूप भी नहीं दिखाना चाहते हैं।  अन्यथा देख ऐसे मजे के जिज्ञासु हमारे बच्चे जीवन जीने के लिए वाँछित योग्यता के अर्जित किये जाने के पहले ही दैहिक संबंध के सुख की खोज में वास्को डी गामा की तरह निकल पड़ेंगें। हमारे समाज में इसे मर्यादायें निरूपित किया गया है। 
सफलता अभी तो हमने दस वर्ष का सफल वैवाहिक जीवन देखा है। आगे मेरी और आपकी व्यस्ततायें और बढ़ेगीं, उन व्यस्तताओं में प्यार तो वही रहेगा किंतु जिसमें आपको प्यार का अभाव और नीरसता का भ्रम तो होगा लेकिन सच्चाई यह नहीं होगी. आप बताओ कि अपने बड़े होती 8-10-15 या आज के समय में अपने मम्मी -डैडी में आपने प्रेमी-प्रेमिका वाला सा प्यार अनुभव किया है? कहते हुए सफल, सफलता के उत्तर को रुका, और जब सफलता ने विचारपूर्वक नहीं में सिर हिलाया, तब कहने का सिलसिला आगे बढ़ाया- सफलता, आपने ही मुझे बताया था कि हमारी शादी के आयोजनों को भव्यता देने के लिए जब मम्मी जी (आपकी) ने , पापा के निवेश के रूप में रखे 1 आवासीय प्लॉट को बेचने को कहा था तो पापा जी ने यह उत्तर देकर नकार दिया था ना, कि मुझे नहीं मालूम मेरी ज़िंदगी के बाद उन्हें (मम्मीजी को) और कितना जीवन जीना है, यह उनके लिए तब की जरूरतों को पूरा करने वाला सिध्द हो सकता है। 
सफल फिर रुका था और फिर सफलता से प्रश्न करते हुए कि 'क्या आप इसे, आपके पापा का मम्मीजी से किसी प्रेमिका वाले प्यार से कम मानती हैं? कहते हुए सफल चुप हुआ था।  
सफलता, इसका कोई उत्तर देती इसके पहले अश्रुना के जाग जाने से वह उसके साथ बिजी हो गई थी। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
12.08.2019





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