Sunday, April 23, 2017

आफरीन-आदिल (8. नारी ही - मासूम नारी के अधिकार और विश्वास को ठेस पहुँचाने की दोषी)

आफरीन-आदिल (8. नारी ही - मासूम नारी के अधिकार और विश्वास को ठेस पहुँचाने की दोषी)
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आदिल के मशवरे अनुसार बेहद संयत-सधे लेखन से तैयार आलेख को आफरीन ने प्रेषित कर दिया। कुछ दिनों उपरांत - उसे अखबार देखकर प्रसन्नता हुई , उसका आलेख ज्यों का त्यों - पब्लिश हुआ था. पर आफरीन की शाम तक प्रसन्नता गायब हो गई। आलेख के इस अंश ने - *
 
"प्रगतिशील आज के समाज में भी नारी की यह कैसी विडंबना है ,वह पति की बहुपत्नियों में से एक हो जीने को लाचार है। उसका प्रेम तो एक पति के प्रति संपूर्ण निष्ठा और समर्पण से होना अपेक्षित है । वहीं दूसरी तरफ पति प्यार को अनेकों में बाँटता है। यह कैसा मानदंड है? जो न्याय की तुला पर खरा नहीं। नारी की विडंबना का यहीं अंत भी नहीं। अपनी शक्ति संख्या से बढ़ाने के नाम पर - इन पत्नियों से कई कई संतानें पैदा की जाती हैं (एक तरह से अत्याचार)। घर में ना संतान को और ना ही पत्नियों को पोषक खिलाने , लालन-पालन और यथोचित शिक्षा दिलाने की सामर्थ्य , लेकिन पुरुष दंभ , कुछ सुनने को तैयार नहीं। क्या अपढ़-गँवार , भूखे बच्चे और अवसादग्रस्त नारी के साथ बहुसंख्यक हो जाना , कोई शक्ति होती है? या शक्ति परिपक्व सोच और मन की प्रसन्नता और जीवन उमंगों से होती है। नारी की विवशता यहीं तक नहीं - अनेक व्यभिचारी तथा बूढ़े धनवान को 70 वर्ष की उम्र में भी बिस्तर पर अल्प-वयस्का पत्नी चाहिए होती है जो परिवार के अभावों वाले परिवार से सौदेबाजी कर उन्हें उपलब्ध हो जाती है।
70-75 की उम्र में वह क्षमता भी नहीं कि यौवन की दहलीज पर आई ऐसी पत्नी की प्रेम अपेक्षा की पूर्ति कर सके . उस व्यभिचारी के जीते जी और मरने के बाद यह अल्प आयु पत्नी ,परिवार के और अन्य पुरुष के बहकावे में शोषित होने को विवश होती है। और चरित्र से भटकी नारी ही इस तरह अन्य पुरुषों को अपनी अतृप्त वासना के घेरे में लेकर , चरित्रहीन पुरुषों के परिवारों की मासूम नारी के अधिकार और विश्वास को ठेस पहुँचाने की दोषी बन जाती हैं। हम नारी एकजुट हों , पुरुष के विरुध्द नहीं अपितु उस पक्ष को समाज के सम्मुख लाने के लिए। ताकि हम न्याय और नारी जीवन अपेक्षा का चित्र समाज के सम्मुख ला सकें . जिससे नारी के प्रति सामाजिक सोच में परिवर्तन आये , और नारी भी अपना जीवन सम्मान से जी सकने में समर्थ हो सके।"
 
* - कुछ पुरुषों के दंभ को आहत किया , और एक उद्वेलित पुरुष का फोन उसे आया - जिसमें उस पर अपशब्दों की वर्षा करते हुए कहा - हम समझ रहे हैं तू किस पर इशारा कर रही है , अपनी औकात में रह नहीं तो पछताएगी। वह आगे भी कुछ कह रहा था लेकिन उसने फोन काट दिया और फिर उसका फोन नहीं उठाया।
शाम को आदिल ने आफरीन को गुमसुम देखा ,पूछने पर आफरीन ने सब बताया। आदिल ने उससे नंबर लेकर उसकी इस बाबत सहायता के फोन नंबर पर रिपोर्ट दर्ज करा दी। आफरीन को विश्वास दिलाया घबराने के जरूरत नहीं , आजकल कानून व्यवस्था इन बातों पर सख्त है , और उस सिरफिरे पर कार्यवाही अवश्य होगी। फिर अखबार में आफरीन के आलेख को शांतचित्त पढ़ा और आफरीन की लेखनी की मुक्तकंठ प्रशंसा की। आफरीन के अशांत मन को चिंता के विचार से छुटकारे की दृष्टि से आदिल ने आफरीन से कहा आज डिनर हम , बाहर लेंगें। फिर दोनों तैयार हुए और सैर को बाहर निकल गए।
--राजेश जैन
24-04-2017
https://www.facebook.com/narichetnasamman/

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