Tuesday, April 18, 2017

आफरीन आदिल (3. मजहब का सर्वोच्च मशवरा - उचित करना होता है)


आफरीन आदिल   (3. मजहब का सर्वोच्च मशवरा - उचित करना होता है)
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उस रात्रि आदिल ने एक न्यूज़ चैनल खोला तो , उसकी दीर्घा में आफरीन को देख उसे आश्चर्य हुआ। तभी एंकर माइक ले आफरीन के पास आई .उसने आफरीन को माइक देकर , उससे नाम पूछा और फिर आफरीन से प्रश्न किया - आफरीन ,मर्द के एक से अधिक विवाह पर आपकी क्या राय है? आफरीन ने जबाब दिया यह अनुचित है। एंकर ने सवाल किया -क्यों - आफरीन ने जबाब दिया , स्त्री और पुरुष में अनुपात 50:50 का है , ऐसे में एक मर्द एक से ज्यादा बीबी करता है तो कुछ औरतों को एक से ज्यादा मर्द करने होंगें , जो अनुचित होगा इसलिए। आफरीन के इस उत्तर पर दीर्घा में बैठी नारियों की तालियां बजती दिखाई दीं। एंकर ने पॉज लेकर पुनः हँसते हुये कटाक्ष किया - लेकिन इस्लाम के मानने वाले तो चार शादियों को उचित कहते हैं। आफरीन के मुख पर तनिक विचार के भाव दिखे फिर उसने जबाब दिया - मजहब का सर्वोच्च मशवरा - उचित करना होता है। मेरा मानना है कि सर्वोच्च मशवरे पर हमारी दृष्टि होना चाहिए। अगर आप इजाजत दें तो मैं आपको एक सलाह देना चाहती हूँ। एंकर को इस बात पर हैरत हुई लेकिन जिस इंट्रेस्ट से दीर्घा में आफरीन को सुना जा रहा था - उसे ध्यान में रख एंकर को कहना पड़ा - बेशक दीजिये। तब आफरीन ने गंभीर मुखमुद्रा में कहा - हम भारत में रहते हैं , जिन शब्दों से हमारे देश -समाज में सौहाद्र के स्थान पर बैर फैलता है , उसे तूल देकर कहने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। मजहब - हमारे आचरण में होना चाहिये , अपनी ताकत के प्रदर्शन के लिए इसकी - दुहाई अनुचित है। आप अपने कार्यक्रम में इस्लाम शब्द पर तूल न दिया कीजिये। तब तालियाँ की गड़गड़ाहट गूँजी और एंकर अन्य लोगों के तरफ बढ़ गई . बाद के प्रसारण में एंकर बार बार आफरीन के कहे शब्द "मजहब का सर्वोच्च मशवरा - उचित करना होता है" को दोहराते हुए दीर्घा में बैठे अन्य लोगों से सवाल करती रही ।
आफरीन उस समय किचन में थी। आदिल - वहाँ गया उसने आफरीन से पूछा आपने टीवी के कार्यक्रम में अपने शिरकत की बात मुझे बताई नहीं? आफरीन ने वापिस प्रश्न किया -क्या टीवी पर दिखाया गया है ? मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरा वाला हिस्सा वे टेलीकास्ट करेंगें। आदिल ने प्रशंसा में कहा आपने बहुत प्रभावशाली तरीके से अपने विचार कहे , मुझे आप पर गर्व है। आफरीन ने रिप्लाई में प्यार भरी मुस्कान दी।
आदिल बाद में उस रात बिस्तर पर लेटा सोच रहा था कि उसकी जिंदगी में उसे कोहिनूर मिला है , उसके ऊपर उसे बेहद सतर्कता से प्रयोग का दायित्व आया है। आदिल के चेहरे पर उस समय एक दृढ़ता परिलक्षित हो रही है , जब वह मन ही मन संकल्प कर रहा है कि वह आफरीन के इन पाक विचारों और व्यक्तित्व को विकसित करने में अपना पूरा साथ देगा , उसे पूरे ईमान से प्रोमोट करेगा।
मज़हब-
शारीरिक या सांगठनिक ताकत नहीं
यह आचारिक-वैचारिक ताकत की बात है
--राजेश जैन
19-04-2017
https://www.facebook.com/narichetnasamman/

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