Saturday, April 22, 2017

आफरीन-आदिल (7. जरूरत से ज्यादा तीव्र प्रहार - समाधान का कारण नहीं बनता , अपितु समस्या को जटिल बना देता है। )


आफरीन-आदिल (7. जरूरत से ज्यादा तीव्र प्रहार - समाधान का कारण नहीं बनता , अपितु समस्या को जटिल बना देता है। )
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आफरीन का टीवी पर दिखना फिर एक मौका ले आया। एक दिन उसे भास्कर , न्यूज़ पेपर की तरफ से फोन आया जिसमें , 'नारी चेतना' विषय पर आर्टिकल भेजने को कहा गया। जिसने आफरीन को खुद के खास होने का अहसास कराया।
रविवार अवकाश होने से , आज इसका उपयोग इस कार्य के लिए करने के इरादे से आफरीन लिखने बैठ गई -
 
"दुनिया की आधी आबादी हमेशा जनाना होती है। जनाना को ईश्वर ने मर्द के मुकाबिले ढेरों खासियत दीं हैं किंतु शारीरिक तौर पर उसे बलिष्ठ नहीं बनाया है. पुरुष अपनी शारीरिक शक्ति के जोर पर ,नारी पर आरंभ से ही डॉमिनेशन रखता आया है। उसने कभी सामाजिक मर्यादाओं के नाम पर , कभी धर्म के नाम पर और कभी परिवार की इज्जत के नाम पर , नारी पर पाबंदियाँ लगाई हुईं हैं। उसे चाहरदीवारियों और पर्दों में कैद रखता है। खुद अपनी मनमानी करता है। जब इंसानी समाज में धन-दौलत ईजाद की गई , बाहर के कार्य में पुरुष ने ही खुद को आगे किया। हमेशा उसने जनाना को अपना निर्भर बताया है। पेट को दो रोटी देकर , अहसान यह जताया है जैसे नारी , पुरुष की बनाई कोई कृति है जिस पर किसी अजीव वस्तु पर होता ,उस जैसा मालिकाना हक़ पुरुष का है। यहाँ तक कि पुरुष ,हरम में कई कई बीबियाँ रखता रहा है। उससे धर्म मनवाने के ऐसे तरीके भी निर्धारित किये कि नारी पर धर्मालयों में अनेकों बंदिशें लागू हैं। जबसे -पढ़ना लिखना चलन हुआ है ,नारी को उसके भी अवसर नहीं या कम दिये गए हैं। सारांश यह कि नारी , पुरुष की पिछलग्गू बनी रहे ,यह विचार ही हर जगह पुरुष मुख्य करता रहा है।
खुद पुरुष ने जिस दृष्टि से देखना चाहा ,धूर्तता से वही दृष्टि नारी की भी बना दी है। किचन के कार्य में, बच्चों को जनने में , बच्चों की परवरिश में , और गृहस्थी के ढेरों कार्य में पूर्णतः नारी का आश्रित है पुरुष। लेकिन वह नारी को ,नारी की ही दृष्टि में पुरुष आश्रिता दिखाने में सफल होता रहा है। "
 
आफरीन इतना ही लिख पाई थी कि आदिल आ गये . उन्होंने पूछा क्या कर रही हो। तब आफरीन ने सब बताया और अब तक लिखे पर उनकी राय चाही। आदिल ने पढ़ने के बाद पहले प्यार की नज़र से आफरीन को देखा , फिर गंभीर हो आलोचक से स्वर में बोला -
 
"मेरी प्यारी आफरीन , भास्कर हिंदी दैनिक है - आपके लिखे में , इंग्लिश -उर्दू शब्दों का प्रयोग अजीब लग रहा है। आप नारी पर सच तो लिख रहीं हैं , किंतु आपको समझना होगा कि पाठक - अलग अलग आयु वर्ग के होने के साथ ही समझ में भी कम -ज्यादा होंगे. आप यह तो मानती हैं ना ? कि पुरुष -नारी साथ अनंत है , फिर आप कम पढ़ी-लिखी , कम वय की अति उत्साही लड़की के तरह प्रस्तुति न बनाओ कि पुरुष और नारी दो दुश्मन से हो जायें।
आप अपने प्रहार की तीव्रता बहुत ही सधी हुई रखें , जरूरत से ज्यादा तीव्र प्रहार - समाधान का कारण नहीं बनता , अपितु समस्या को जटिल बना देता है। आप इस दृष्टि से सुधार करते हुए लिखें। आपका लिखा मार्गदर्शक बन जाएगा - इस पीढ़ी के लिए। "
 
आफरीन ये सब मंत्र मुग्ध सी सुन भी रही थी और अचरज भरी दृष्टि से आदिल को एकटक देखे भी जा रही थी। उसे आदिल का समझदार होना तो ज्ञात था किंतु उनका इतना स्पष्ट विज़न उसे हैरत में डाल रहा था।
आफरीन ने अपनी बाँहों का हार आदिल के गले में डाल - उनकी आँखों में प्यार से झाँकते हुए शुक्रिया कहा। और फिर आदिल की सलाह अनुसार अपने आर्टिकल को एडिट करने और पूरा करने पुनः टेबल पर आ बैठी .
--राजेश जैन
23-04-2017
https://www.facebook.com/narichetnasamman/

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