Wednesday, April 19, 2017

आफरीन- आदिल (4. जहाँ नहीं समाधान -वहाँ ढूँढना व्यर्थ समय गँवाना है)


आफरीन- आदिल (4. जहाँ नहीं समाधान -वहाँ ढूँढना व्यर्थ समय गँवाना है)
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आज आदिल टूर पर गया था , आफरीन रात्रि अकेली थी। बिस्तर पर आई तो नींद नहीं लगी - पुरानी बातें उसे याद आने लगीं। आफरीन - अपने 3 बहनों और एक भाई में सबसे बड़ी थी। पापा जिनिंग मिल में काम करते थे। अर्निंग , बहुत नहीं थी , उस पर चाचा के परिवार से जायदाद के विवाद जब तब कलह के कारण बनते उसने देखे थे। मम्मी , इन अभावों में कैसे चार , छोटे बच्चों की माँगों की पूर्ति को जूझती रहतीं उसने देखा था। पापा मिल के मालिक और काम पर अक्सर भुनभुनाते आते और भाई के द्वारा खड़ी की जाते कलह से गुस्से में रहते। उन्हें यह देखने की फुर्सत नहीं होती की चार-चार औलादों की बचपन सुलभ माँगों को ,थोड़ी सी आमदनी में कैसे पूरा किया जाये। खाने के बीच अच्छी लगती चीज पर बच्चों की खींचतान बीच , मम्मी को बासी और कम अच्छी चीज से जैसे तैसे पेट भरते और उस पर पानी पी लेते , आफरीन ने महसूस किया था। अपने फट रहे कपड़े को सी -सी कर अंग ढँकने के उपाय में हलाकान मम्मी का चेहरा , उसने देखा था। एक बार पापा को अच्छे मूड में देख नौ वर्ष की अपनी उम्र में ,उनसे एक सवाल मासूमियत में कर दिया था - पापा , हम दो ही बच्चे होते तो मेरी मम्मी भी कुछ अच्छा खा -पहन लेती। पापा यह सुनते ही गुस्से में भर गए , एक चाँटा उसे अपने कोमल गालों पर झेलना पड़ा - उसने सुना छोटी सी उमर में तेरी जुबान बड़ी हो गई है।
आफरीन ,यह शुक्र मानती है कि पापा के गैर मुस्लिम मिल मालिक इस तरह से उदार थे कि उनने ,उसके पापा से कह रखा था , बच्चों को पढ़ाओगे तो किताब - फीस और यूनिफार्म का खर्च वह देंगे. उस मदद से ,उसके मौहल्ले के लड़के तक जबकि ज्यादा नहीं पढ़-लिख रहे थे , आफरीन - इससे डीसीए तक पढ़ सकी। एक बार ओलिम्पिक में देश के जीते मेडल पर चर्चा हो रही थी , तब स्कूल में उसके टीचर ने यह कहा था कि जनसँख्या उपलब्धि नहीं होती , थोड़ी सँख्या का एक ग्रुप अपने कार्य की क्वालिटी से बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकता है। इस बात का कन्फर्मेशन उसे अपने मोहल्ले के परिवारों पर नज़र डालने से हो गया था। जहाँ - परिवार तो बड़े -बड़े थे , लेकिन किसी के कार्य और सोच ज्यादा सही नहीं थे। दकियानूसी और रंजिश की बातों ने उनके मन में डेरा डाल रखा था। वहाँ लोग सृजन की नहीं विनाश की गतिविधियों में उलझे रहते थे।
शुक्र तमाम अभाव और बुरे हालातों का ,जिसने आफरीन को छोटी उम्र से बेहतर और तर्कसंगत सोच की बुनियाद दे दी। उसे बचपने में ही हैरत होती कि 'बड़े बड़े अपने को बड़ा जानकार समझने वाले वहाँ के लोग' - अपने परिवारों की अपढ़ता-अभावों और जनानाओं की विवशताओं से बेखबर किन अजीब बातों में अपना मन और समय ख़राब करते हैं , वे जहाँ नहीं समाधान -वहाँ ढूँढने की कोशिश में समय और जीवन व्यर्थ करते हैं।
आफरीन को जॉब मिल गया , उसने पापा के दबावों के बावजूद अपनी शादी को देर तक टाला . अपनी आमदनी से मम्मी और भाई-बहनों का भला कर सकने में अपने को समर्पित किया। और थोड़े विलंब से जब शादी की तो आदिल जैसा समझदार शौहर मिलने पर आज अपनी किस्मत पर उसे नाज हो रहा है।
अब तक मिले तमाम हालात ने उसे जो सबक सिखाये हैं उस अनुरूप उसे अपनी गृहस्थी को आकार-सँस्कार देना है .उसे आदिल से सहयोग ले अपने कार्यों से वह अंजाम देना है जिससे "जहाँ नहीं समाधान -वहाँ ढूँढना व्यर्थ समय गँवाना है" वाली मूर्खता उससे नहीं हो जाये।
उसे इसी देश और इसी समाज को अपने कार्यों से वह जागृति देना है , जिसमें दिमागों में रंजिशों की जगह खुशहाली के ख्याल भर जायें।
--राजेश जैन
20-04-2017
https://www.facebook.com/narichetnasamman/

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