Wednesday, December 4, 2013

रक्तदान - अपेक्षा और भावना

रक्तदान - अपेक्षा और भावना
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रक्तदान आधुनिक मानवता अंतर्गत आती है . चिकित्सा विज्ञान के उन्नत होने के साथ यह तकनीक आ गई है , जिसमें किसी की रक्त-अल्पता के कारण उत्पन्न प्राणों के संकट से दूसरे किसी स्वस्थ व्यक्ति से रक्त लेकर उसे चढ़ाया जा सकता है और उसके प्राणों की रक्षा की जा सकती है .

थेलेसीमिया पीड़ित को रक्त-आवश्यकता एक नियमित अवधि में होती है . जबकि किसी अन्य को जीवन के किसी समय में दुर्घटना ,प्रसव में या रोग से रक्त-अल्पता आ जाने पर कभी किसी दिन रक्त दिया जाना होता है .

दयालु संगटन ,समाज सुधारक , एन जी ओ , चिकित्सा कर्मी इस हेतु रक्तदान को प्रेरित करते हैं ,जिससे रक्तकोष में रक्त उपलब्धता पर्याप्त रहे . इन की प्रेरणा और अपेक्षा से दयालु और स्वस्थ व्यक्ति रक्तदान में जागरूकता दिखा रहे हैं . इस तरह के समूह की प्रेरणा और अपेक्षा से किसी के द्वारा किया गया रक्तदान प्रशंसनीय है ही . किसी के प्राण रक्षक बनने का पुण्य  या उसके हितैषी होने का सन्देश तो हर रक्तदान से मिलता ही है .

अगर हमारी भावना रक्तदान करते समय सम्मान या प्रचार से भिन्न सिर्फ अपने इस सामाजिक दायित्व से प्रेरित हो तो और भी अधिक प्रशंसनीय हो जाती है .

आज जब छोटे से अपने जीवन में किसी- किसी बैर भाव से हम एक दूसरे के लहू के प्यासे तक हो जाते हैं . जिससे जीवन उल्लास से ना सिर्फ बैरी को वंचित करते हैं बल्कि ऐसे दुष्टता के भाव से हम स्वयं को भी जीवन उल्लास से वंचित करते हैं .ऐसे में रक्तदान वह पध्दति है जो हमें दुष्ट हो जाने से बचाती है . रक्तदान के माध्यम से अपनी धमनियों का जो रक्त हम दूसरे की धमनियों में प्रवाहित कर पाते हैं , वह बोध हमें ऐसे को जानकर लहू लुहान करने से रोकता है क्योंकि दूसरे की सिराओं में हमारा रक्त हमारी दयालुता और मानवता के वशीभूत प्रवाहित होता है . क्या हम स्वयं कभी अपना लहू मिटटी में मिलाते हैं ?

इस प्रकार रक्तदान के प्रति जागरूकता और इसे व्यापक करने पर हम समाज में आपसी विद्वेष की बुराई कम कर सकते हैं . जिसे आज समाज को बहुत आवश्यकता है .

रक्तदान में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर प्रत्यक्ष में तो एक या कुछ प्राण रक्षा करते हैं . किन्तु अप्रत्यक्ष हम अपने सामाजिक दायित्व पूरे करते हुए . मानवता का सन्देश प्रसारित करते हैं . इतिहास हमारी पीढ़ी को  मानवता रक्षक वर्णित करे इस हेतु हम रक्तदान को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनायें ..

--राजेश जैन
04-12-2013

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