Saturday, December 14, 2013

धन महत्व की वीभत्सता

धन महत्व की वीभत्सता
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अगर ये सच है तो  "धन महत्व की वीभत्सता" पर क्षोभ है , ग्लानि होती है कि मनुष्य समाज के उस दौर के जीवन के अंग हम हैं ,जिसमें धन ने ऐसा वीभत्स सा महत्व बना लिया है.  धिक्कार है अपने सीमित सामर्थ्य पर जिसमें हम इस तरह के राक्षसी कृत्य की रोकथाम नहीं कर पाते हैं. ऐसा लिखने का कारण आज का समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार है जिसका संक्षिप्त विवरण निम्न है   .

उस कॉलेज के इंजीनियरिंग के एक असिस्टेंट प्रोफेसर (जिसका मै कभी विद्यार्थी रहा था) ने अपनी चार साल पूर्व की ब्याहता का गला दबाकर मारने का प्रयास किया  . विडंबना ये है कि इस पत्नी से तीन वर्ष की एक बेटी भी इस असिस्टेंट प्रोफेसर की है  . समाचार में कारण इस हैवानियत का दहेज़ लालसा बताया गया है।  यह असिस्टेंट प्रोफेसर युवा है इस बात की कल्पना उसे आज नहीं है कि , किसी दिन तीन वर्ष की उसकी बेटी बड़ी होकर विवाहित होगी  . उसके साथ उसका दामाद यह क्रूर कृत्य करे तो क्या होगी उसकी (असिस्टेंट प्रोफेसर) दशा एक ऐसी पीड़िता के पिता होने के नाते  .

भाग्य, क्रूरता के प्रयास के बाद भी मासूम युवती की जान बच गई है ( समाचार के साथ उनका जो फ़ोटो लगा है उसमें मासूमियत ही दृष्टव्य है ) .

मानव सभ्यता का यही प्रतीक होगा कि इस अप्रिय हादसे के बाद ये असिस्टेंट प्रोफेसर भूल सुधार कर अपने इस व्यवहार की क्षमा पत्नी , ससुराल पक्ष से तो मांगे ही  . समस्त इंजीनियर , अपने कॉलेज और विद्यार्थी से भी माँगे , जिन सब पर उसने एक कलंक का टीका लगा दिया है  . प्रोफेसर होने यह कर्तव्य भी होता है अपने विद्यार्थी को वह शिक्षा दी जाए , जो पढ़ने के बाद के विद्यार्थी के जीवन के लिए सहायक हो जिससे उनके सद्कर्म सुनिश्चित होते हैं  .

वह बेटी (मासूम तीन वर्षीया ) और अपनी विवाहिता के प्रति अपने दायित्व को समझे उन्हें निभाये  .... बिना प्रतिशोध के ( जो समाचार पत्र में प्रकाशन , और ससुराल पक्ष द्वारा पुलिस रिपोर्ट से उसकी बदनामी का कारण बनी है ) अपने परिवार को भविष्य में प्रसन्नता पूर्वक जीवन यापन में सहारा बने. और नारी के सम्मान करते हुए मानवता और पढ़े लिखे सभ्य (इंजीनियर ) के माथे पर लगाया उसके द्वारा कलंक के टीके को स्वयं अपने सद्कर्मों से मिटाये ऐसी आशा के साथ ....

--राजेश जैन
15-12-2013

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