Friday, December 27, 2013

बेटे, तुम धनवान बनना या नहीं महान अवश्य बनना

बेटे, तुम धनवान बनना या नहीं महान अवश्य बनना
---------------------------------------------------
जीवन पथ पर अग्रसर चाहे -अनचाहे कर्म नित जुड़ते जाते हैं , हम कुछ प्रयोग भी करते जाते हैं. हम यदि समय समय पर इनके हुए परिणाम पर गौर करें और विचार करें तो हमारे कर्म और नए प्रयोगों की मलिनता हमें दृष्टिगोचर होती है , थोड़े यत्नों से आगे के हमारे कर्मों से यह मलिनता कम होती जाती है. क्रम "गौर और विचार" करने का जारी रखा जाए तो ठीक उस भाँति जैसे बहती सरिता का गंदला नीर बहते बहते मलिनता मुक्त होता जाता है वैसी निर्मलता हमारे कर्मों में आ सकती है.

आज लगभग हर घर -परिवार में बड़े हो रहे और शिक्षारत बच्चे के मन में और पालक के आशाओं में यह बैठाया या बैठा होता है कि आगे जीवन में वह अच्छा कमा कर बड़ा या धनवान व्यक्ति बनेगा।

कम ही ऐसे माता-पिता होंगे जो यह सोचते और ऐसे संस्कार और शिक्षा बच्चे को देते हैं , जिसमें बच्चे से अपेक्षा धनवान होने के स्थान पर उनके कर्मों से महान बनने की होती हो।

धनवान तो अनेकों बन गये या सब कुछ सामर्थ्य लगा देने के बाद अनेक धनवान हो ही नहीं सके. लेकिन धनवान होने की जुगत में सब लगे रहने से जो छीना -झपटी /लूट खसोट का वातावरण निर्मित हुआ है उसमे न्याय -नीति ,शांति और सामाजिक सौहाद्र का अस्तित्व ही मिटता जा रहा है.
अगर हम " न्याय -नीति ,शांति और सामाजिक सौहाद्र" को अस्तित्वविहीन होते नहीं देखना चाहते तो हमें अपने घर में लालन-पालन में बढ़ते   बच्चे से आशा और उसके मन में यह विचार संकल्प डालना होगा "बेटे, तुम धनवान बनना या नहीं महान अवश्य बनना" .

धनवानों ने भी (पाश्चात्य देशों में ) जो दुनिया बनाई है वह दूर से सुन्दर -सुहावनी तो लगती है किन्तु वहाँ मनुष्य जीवन यांत्रिक (मैकेनाइज्ड ) हो गया है.
सुख सुविधाओं और भोग-उपभोग में जीवन बिता देने के बाद भी जीवन संध्या पर ठगा सा अनुभव करता है.

मनुष्य और मनुष्य जीवन इसलिए धन से नहीं महान कर्मों से निर्मित होना चाहिए अन्यथा दुनिया ऐसी दिशा में बढ़ रही है जहाँ जाकर भूल सुधार की आवश्यकता अनुभव होगी और अगली किसी पीढ़ी के लिए बाध्यकारी होगा। हम चाहें तो इस चरम सीमा पर पहुँचने से बचा सकते हैं दुनिया और इस समाज को.

हर कोई तो महान बन नहीं सकेगा , और प्रचारित महान तो कई हो सकेंगे पर वास्तविक महान बिरले होंगे। आज दुनिया को ऐसे महान व्यक्तियों की आवश्यकता है जो प्रचारित नहीं सच्चे महान हों। मानवता रक्षक हमारी ही पीढ़ी बनके उभरे इस हेतु हमें बच्चे से कहना होगा
"बेटे तुम धनवान बनना अथवा नहीं कोई महत्व नहीं किन्तु सच्चे महान बनने का प्रयास अवश्य करना "

हमारे अनेकों घर में जब ये विचार -संस्कार अनेकों बच्चों के मन में  डाले जायेंगे तब कुछ महान बन संकेंगे , और बहुत से महान बनने के प्रयास में अच्छे मानव बन सकेंगे.

राजेश जैन
28-12-2013

No comments:

Post a Comment