Saturday, October 13, 2012

श्रृंगार रस की जीवंत मूर्ति

श्रृंगार रस की जीवंत मूर्ति

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श्रृंगार रस की साक्षात् जीवंत तस्वीर हैं ,आज हम

सोने में सुहागा ,कुशाग्रता से भी धनी हैं आज हम

वैभव और प्रतिष्ठा हिस्से आई है ,अहो भाग्य हमारे

सारे युवा नहीं ऐसे मिले भाग्य जैसा आज हमारा

 

स्पष्ट स्वतः ये ,अग्रणी हैं जीवन पथ पर आज हम

भुल्लैया कई जिनसे संकट,अग्रता पर आज हमारी

विकसित ,क्षमताशीलता से उपलब्धियां बनें हमारी

संकल्प ,उच्च आदर्श हममें ,दृष्टि करे साफ आज हमारी

 

हो ना पाए ओझल लक्ष्य , संस्कारों से जो पाया हमने

परोपकार की बुझती जोत ,बचाएं सज्जनता से अपनी 

सब चाहते बचे भलाई समाज में ,अपेक्षा ये निभा लें हम

कर्तव्य अधिक महत्त्व का ,अग्रता से जो मिला आज हमें

 

अन्यथा जीवन शेष ५० वर्ष का ,बीत यों जायेगा हमारा

श्रृंगार नहीं तब ,रौद्र या वीभत्स रस ही सिर्फ रहेगा शेष

बन सकते  दया भाव से  उदाहरण ,वात्सल्य रस का हम

साकार जो हो सकता है , उज्जवल कर्मों  से आज हमारे   

 

अग्रणी थे रहकर अग्रणी ही ,ले सकते हैं मान विदाई हम

गर यापन करें अग्रणी सा मानव जीवन अपना अनमोल

सर्व सामान्य जोह रहे बाट ,आये कोई पथ प्रदर्शक नेक 

मानव समाज की है अपेक्षा , आये असामान्य ऐसा एक

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