Friday, October 19, 2012

नमन डॉक्टर

नमन डॉक्टर

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                         20 वर्ष पहले इंटर्नशिप के आखिरी का समय स्मरण हो आया था .जब वह नागपुर चिकित्सा महाविद्यालय में हुआ करता था . दो  भाई बहन 10-12 वर्ष के टेबल टेनिस खेलने आने लगे थे ,ज्ञात हुआ था दून स्कूल में पढ़ते हैं ,छुट्टियों  में आये हैं यहाँ . लड़की अत्यंत जहीन , स्वच्छ वस्त्रों और धीमे स्वर में बात करने वाली बहुत सुन्दर तो नहीं पर आकर्षक  थी . वय   में लगभग  15 वर्ष छोटी होगी, पर विपरीत लिंगी थी उसने सहज   एक आकर्षण  अनुभव किया था तब . फिर वह पढाई पूर्ण होने पर चला आया था वापिस . तब से विस्मृत कर चुका था उस एक तरफ़ा प्रेम को ,नाम भी भूल गया था वह उसका  .

 

                          कुछ दिन पूर्व भ्रमण से लौटते ,एक लगभग तीस वर्षीया युवती जो अपनी छोटी बिटिया के साथ खड़ी थी  ,स्कूल बस की प्रतीक्षा में उससे समय पूछा था , सेल फोन नहीं  था , उस समय पास . घडी पर निगाह डाली बंद थी वह , तब भी अंदाज कर समय बता दिया था 7 .40 . फिर देखा था कुछ जाना पहचाना था चेहरा और अंदाज था उस युवती का . 

                       आज क्लिनिक में सपत्निक वह मरीज जांच और उपचार में था . पिछले मरीज के जाने के बाद अगले की प्रस्तुत पर्ची पर नाम अंकित था आधीन ,पुत्री ..राजील सक्सेना . राजील यह निराला सा नाम एक ही सुना था  . उसे याद आया उस लड़की का था शायद जो नागपुर में टेबल टेनिस खेलने आती थी ,अपने भैया के साथ . तब दरवाजे पर वही युवती अपनी  बच्ची के साथ  दिखाई दी  , कुछ दिन पूर्व समय पूछा था  जिसने . बच्ची बीमार थी , जाँच में वाइरल फीवर लगा था . दवा प्रिस्क्रिप्शन लिख समझाते हुए उसने ,युवती को बेटी संबोधित किया था . अन्य मरीज की जाँच करती डॉक्टर पत्नी कुछ चौंकी थी . पति के मुँह से इतनी बड़ी उम्र के लिए पहली बार बेटी का संबोधन अजीब लगा था . शाम घर पर पत्नी ने यह सवाल किया था . जिसे टाला था यह कहते कि , अब मै 45  का होने लगा हूँ , कुछ शब्द नए प्रयोग होने लगेंगे इस उम्र से आगे बढ़ने पर , पत्नी के चेहरे पर असहमति के भाव थे पर कहा कुछ नहीं था उनने .   

                        वह स्वयं विचार तन्द्रा  में चला गया  था . उसे याद आ रही थी , पढ़ी एक कहानी श्री चंद्रधर शर्मा गुलेरी की लिखित "उसने कहा था " जिसके काल्पनिक पात्र लहना सिंह ने एकतरफा प्रेम के खातिर ऐसी मौत सहज गले लगा ली थी, जिससे मौत की ऐसी सुन्दरता सिध्द हुई थी जो अभूतपूर्व तो थी ही आज तक भी मौत ऐसी सुन्दर न देखी और पढ़ी थी . डॉक्टर के पवित्र इस पेशे , और पवित्र सेवा के मिले इस अवसर के लिए अपने   एकतरफा प्रेम जिसे कुछ और रिश्ता देना अनुचित ही होता . अनुचित ऐसे भी कि जो भी अन्य सोचा जा सकता वह रिश्ता सफल हो या असफल , दो  नारियों के कोमल ह्रदय  को पुरुष के छल से और झुलसाने वाला ही सिध्द होता   . वह पतिव्रता  पत्नी के साथ ही एक मासूम युवती के साथ वह धोखा होता जो पुरुष ने समय समय पर नारी को दे कर समाज कि सुख-शांति को अत्यंत हानि पहुचाई है .उसने बेटी का पवित्र यह रिश्ता मान लेने का बड़प्पन दिखा दिया था .डॉक्टर का फर्ज पूरा किया था न केवल वह शारीरिक अस्वस्थता का उपचार कर रहा था , बल्कि   नारी के आहत ह्रदय को  भी अपने तरफ से और  क्षति पहुँचाने  से बचा था . ( लहना सिंह सी ) मौत को नहीं पर आज के स्वार्थपरस्त इस दुनिया में ऐसा सुन्दर जीवन जीवंत किया था ,जो सच ही एक डॉक्टर का परम कर्तव्य होना चाहिए ........


                                        नमन डॉक्टर , हार्दिक नमन आपको       

 

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