Saturday, October 27, 2012

वैभव संग्रहण

वैभव संग्रहण

व्यर्थ करूँ नहीं जीवन यह अपना

करते हुए धन और वैभव संग्रहण

हुआ सिध्द जब यह अनन्त बार

छोड़ यहीं इसे सब चले हैं जाते

 

यत्न करूँगा अपनी  प्रतिभा से

बुनूं ज्ञान से शब्द नित ही ऐसे

लिखूं लेखनी से शब्द ऐसे जो

करूँ प्रचार इन शब्द ऐसों का

 

प्रतिपादित हो सके शब्द मेरे से

शब्दों में है शक्ति ऐसी जिनसे

मिल सकती है सच्ची सद्प्रेरणा

पाकर  मनुष्य इन से सद्प्रेरणा

 

प्रेरित होगा सुधारने कर्मों को

देख कर अपने सब सुधरते साथी  

होगा जन जागृत इस समाज का

समाज आएगा अच्छे मुकाम पर

 

कहे जाएँ  भले शब्द यह  मेरे

पर नहीं मानता शब्द ये मेरे

हुआ योग्य लिख सकूँ ये शब्द

ले और पा ऋण इस समाज से 

 

अतः संपत्ति यह समाज की

भ्रम ना पालूं  मान इसे अपनी

और करूँ ना कोई अभिमान 

देख जला रावण अभिमान 

   

जिस माटी ने जिस समाज ने 

दी जब  योग्यता मुझे जो ऐसी

होता व्याकुल देख पर ऐसा

अप्रसन्न मनुष्य है समाज में

 

लेना अनमोल साथ आपका मुझे

हमें मिलकर करने उपाय हैं ऐसे

दूर बुराइयाँ हो हमारे समाज से

प्रसन्न मनुष्य हो इस समाज में  

 

ऋण है मुझ पर जो समाज का

चुके तभी यह मुझ पर से तब

जब हों हम सफल इस ध्येय में

और जब होगा समाज स्वस्थ



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