वैभव संग्रहण
वैभव संग्रहण
व्यर्थ करूँ नहीं जीवन यह अपना
करते हुए धन और वैभव संग्रहण
हुआ सिध्द जब यह अनन्त बार
छोड़ यहीं इसे सब चले हैं जाते
यत्न करूँगा अपनी प्रतिभा से
बुनूं ज्ञान से शब्द नित ही ऐसे
लिखूं लेखनी से शब्द ऐसे जो
करूँ प्रचार इन शब्द ऐसों का
प्रतिपादित हो सके शब्द मेरे से
शब्दों में है शक्ति ऐसी जिनसे
मिल सकती है सच्ची सद्प्रेरणा
पाकर मनुष्य इन से सद्प्रेरणा
प्रेरित होगा सुधारने कर्मों को
देख कर अपने सब सुधरते साथी
होगा जन जागृत इस समाज का
समाज आएगा अच्छे मुकाम पर
कहे जाएँ भले शब्द यह मेरे
पर नहीं मानता शब्द ये मेरे
हुआ योग्य लिख सकूँ ये शब्द
ले और पा ऋण इस समाज से
अतः संपत्ति यह समाज की
भ्रम ना पालूं मान इसे अपनी
और करूँ ना कोई अभिमान
देख जला रावण अभिमान
जिस माटी ने जिस समाज ने
दी जब योग्यता मुझे जो ऐसी
होता व्याकुल देख पर ऐसा
अप्रसन्न मनुष्य है समाज में
लेना अनमोल साथ आपका मुझे
हमें मिलकर करने उपाय हैं ऐसे
दूर बुराइयाँ हो हमारे समाज से
प्रसन्न मनुष्य हो इस समाज में
ऋण है मुझ पर जो समाज का
चुके तभी यह मुझ पर से तब
जब हों हम सफल इस ध्येय में
और जब होगा समाज स्वस्थ
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