Thursday, October 25, 2012

दूरदर्शी माँ ------

दूरदर्शी माँ

              आशीष बेटे , चुपचाप यहाँ बैठ ये खा ले , प्लेट में दो बेसन के लड्डू रख अपने कमरे का दरवाजा बंद कर मम्मी कह रही थी . आशीष को लड्डू बहुत पसंद थे , तुरंत खाने लगा था . खाते हुए यह भी सोच रहा था चाचा के लड्डू मांगने पर मम्मी ने उन्हें कहा था . लड्डू अब  . ख़त्म हो गए हैं.

               शाम को मम्मी उसे मंदिर जबरन भेजती , आशीष नहीं जाना चाहता था . वहां पंडित जी समझाते हमेशा सच कहना चाहिए .आशीष चाचा से बोले मम्मी के झूठ और पंडित जी की बातों के बीच मानसिक द्वन्द में रहता .इसलिए मंदिर आना उसे पसंद नहीं आता . मंदिर आने से शाम को स्कूल का गृहकार्य भी पूरा नहीं कर पाता . मम्मी उसे बहुत दुलार से रखती अक्सर गलत बातों में भी उसका पक्ष लेती और दूसरों से लड़ तक पड़ती . अतः उसे अपनी मम्मी दुनिया की सबसे अच्छी मम्मी लगती .वह जिद्दी भी हो गया . स्कूल में गृहकार्य पूरा न होने से डांट और सजा मिलती . मम्मी कम पढ़ी होने से उसे स्कूल गृहकार्य में सहयोग भी न कर पाती .इन सब के बीच आशीष की पढने में रूचि कम हो गयी .
           बड़ी क्लास में वह अपेक्षित प्रदर्शन न कर सका , प्रवेश परीक्षाओं में भी सफल न होने से डोनेशन दे किसी तरह एक कॉलेज में प्रवेश पा सका .आज कॉलेज में नौकरी में चयन हेतु आखिरी कैंपस अवसर उसे मिला था , पर पहले की तरह इसमें भी वह लिखित ही पास न कर सका .घर उदास पहुंचा तो मम्मी को सुन बड़ा दुःख हुआ .मम्मी भी उदास हो बोली , बेटा क्या कोई भी चयन नहीं हुआ . मम्मी और दुखी न हो अतः झूठ बोला हाँ ,मम्मी, पर उसे मालूम था 20 साथी चयनित हो गए थे .

                 मम्मी पर पूरी श्रध्दा होते हुए भी , आज अब वह यह सोच रहा था .काश मम्मी पढ़ी लिखी होती और बचपन से उसकी शिक्षा को ज्यादा गंभीरता से लेती .मम्मी के हितैषी होने पर उसे कोई शंका  भी नहीं थी. पर पछतावा इस बात का था ज्यादा जानकारी के अभाव में उसके भविष्य के लिए निश्चित ही मम्मी दूरदर्शी न रही थी .काश मम्मी ममत्व के साथ सही मार्गदर्शन कर पाती .

             आशीष अब संकल्प ले रहा है , वह पत्नी रूप में समझदार का चयन करेगा . ताकि उसके बच्चे इस कठिनता से बचें जिसमे आज वह आ फंसा है .इस तरह उसके बच्चे को दूरदर्शी माँ मिले .

No comments:

Post a Comment