शुभकामना आपको मन से
राजेश की विजयादशमी पर
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कभी था जीवित एक रावण
उसके मुख थे होते दस
सहस्त्रों गए अब वर्ष बीत
किया गया उसका जब वध
प्रत्यक्ष रावण नहीं अस्तित्व
मनुष्य कर्म में उसका वास
दस मुख उसके दस बुराइयाँ
मनु आचरण में फैली सर्वत्र
सदियों से दिखता बुराई रूप
मै देखूं रावण को निम्न रूप
प्रथम मुख अति काम वासना
फैलाये जो व्यभिचार
दूसरा मुख अश्लील सामग्री
मनुष्य ह्रदय में घोले विष
तृतीय मुख है हिंसा का
अत्याचार में दिखे चहुँ ओर
मुख चौथा आतंकवाद का
जाते मारे मासूम अनेक
पंचम मुख प्रतीक स्वलालच
हर लेता जो अन्य का हक़
मुख छटा है छल कपट का
जिससे देता अन्य को धोखा
झूठा चरित्र है सातवाँ मुख
करे रोज जिससे भ्रष्टाचार
आठवां मुखड़ा है कायरता
दे कन्या भ्रूण हत्या अंजाम
नवम मुख है अन्याय जो
दे लोभ दहेज़ में प्रताड़ना
नौ ये बुराई जी लेने से
दसवां मुख बने अभिमान
करते हर वर्ष दहन पर
होता है अमर इससे रावण
अन्यथा आज जलाया तो
हो क्यों अगले वर्ष उत्पन्न
चाहें यदि मिटाना रावण
करनी होगी सही तजबीज
जलाया क्या वही था रावण?
नहीं जलाने वाले रावण
सिध्द ये होगा तब ही
मिटे जब बुराई समाज से
पहचाने उस रावण मुख को
करता जो हममें वास
कर साहस जलाएं उसे
जो करता है हममें वास
सब कर सकें जब ऐसा
शुभ दशहरा अवसर पर
विश्वास ना दिखेगा रावण
विजयादशमी में अगले वर्ष
अन्यथा रहें जलाते नित वर्ष
समझ सही छद्म रावण को
रखें अमर गर रावण को
सच्चे होंगे ? हम राम भक्त
जलाएं अन्दर स्व-रावण को
होगा सिध्द हम है राम भक्त
शुभकामना आपको मन से
राजेश की विजयादशमी पर
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