Wednesday, April 1, 2020

स्वप्न या दुःस्वप्न? ...

स्वप्न या दुःस्वप्न? ...



मैं, यहूदी मंदिर (सिनेगॉग) में परिचित और आदर से लिए जाना वाला नाम रखता था।
देश-विदेश में, अपने अनुयायी को देख स्वयं को, नबी, होने का अहं रखता था।
हमने पहले ही तय किये कार्यक्रम अनुसार अपने छोटे देश के प्रमुख सिनेगॉग में एक धार्मिक सभा का आयोजन किया था। तब दुनिया के अन्य देशों में, कोविड-19 के संक्रमण का पदार्पण हो चुका था। 
मेरी उच्च शिक्षित, मेरी पत्नी और आधुनिकता से प्रभावित मेरी सोलह वर्ष की बेटी ने, आयोजन करने को लेकर घर में तर्क और आपत्ति की थी। अपने अहं में चूर, मैंने उनकी नहीं मानी थी। आँखे तरेर, उन्हें जो देखा, उनकी बोलती बंद हो गई थी।
वस्तुतः इसके अतिरिक्त भी, समय काल के मद्देनज़र एवं सरकार के आव्हान अनुसार, हमसे, इसे स्थगित किया जाना अपेक्षित था। किंतु अपने अतिविश्वास का परिचय देते हुए हमने यह नहीं किया था।
दो दिनी आयोजन में, छह बाहरी धर्मगुरु सहित, देश के कुछ सैकड़ा धर्म प्रेमी ने इसमें हिस्सा लिया था।
फिर विदेशी विद्वान लौट गए थे। और देश के नागरिक, अपने अपने शहरों को लौट गए थे। 
आयोजन को मिली सफलता से मैं गर्वित था और मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था।
दुर्भाग्य, मगर मेरी ये प्रसन्नता बहुत लंबी नहीं रही थी। आयोजन के तीन दिनों बाद से मेरी पत्नी को स्वास्थ्य संबंधी तकलीफें होने लगीं थीं। 
पहले मैंने उसे अनदेखा किया था। लेकिन तीन और दिन बीते थे कि, पत्नी की स्थिति गंभीर हुई थी। मुझे और मेरी बेटी को भी, कुछ तकलीफें आने लगीं थीं।
मैं उनसे निगाहें नहीं मिला पा रहा था।
तब एक और बड़ी भूल मैंने की थी। मैं, पत्नी को अस्पताल नहीं ले गया था। सातवें दिन, बेहद कष्ट में रहते हुए, मेरी प्रिय पत्नी ने दुनिया से विदा ले ली थी।
अपने अपराध बोध में और अपने कष्टों को भी छुपाते हुए, मैंने, उन्हें कब्रगाह में, दफनाया था।
सरकार की रोक की उपेक्षा करते हुए। मेरे नाम के प्रभाव में, सुपुर्दे खाक के समय, लगभग 40 लोगों ने भाग लिया था। 
दसवें दिन, जब मेरी बेटी और मेरी हालत इतनी बिगड़ी कि हम एक दूसरे की सेवा सुश्रुषा कर सकने की हालत में भी नहीं रहे थे। तब बेटी के सामने शर्मिंदगी से, मैंने, अस्पताल में भर्ती होने का प्रस्ताव किया था।
बेटी ने शहर के स्वास्थ्य विभाग में कॉल कर, लक्षण की वस्तुस्थिति सूचित की थी। उन्होंने अवगत कराया था कि यह लक्षण सारे, कोरोना संक्रमण के हैं।
हमें तत्काल अस्पताल पहुंचाया गया था।
फिर आगे के बीस दिन में, एक बात मेरे संतोष की रही थी। मेरी प्यारी बेटी, कोरोना नेगेटिव हो गई थी।
मुझे अश्रुपूरित आँखों से, देखते और सिसकते हुए, वह अस्पताल से डिस्चार्ज हो घर लौट गई थी। 
मेरी हालत फिर और बिगड़ी थी। आज 2 अप्रैल 2020 को, मैंने अंतिम स्वाँस ली थी।
फिर ग्लानि बोध के कारण, मेरी आत्मा मुक्ति को नहीं पा सकी थी। वह पिशाच बन गई थी।
पिशाच रूप में, मैंने देखा था, उस आयोजन में शिरकत करने वालों के माध्यम से, लगभग डेढ़ महीने में ही, देश में संक्रमण, चौथे चरण में पहुँचा था। 
जनवरी 2021 के आते आते, मेरे छोटे से देश में, जिसकी कुल आबादी 29 लाख थी, में से सिर्फ साढ़े तीन लाख लोग जीवित बचे थे। 
तब विश्व पर से कोरोना संक्रमण खत्म कर लिया गया था। मेरा नाम जो पहले ख्यातिलब्ध था बदनाम हो चुका था। मेरे अनुयायी भी मेरा नाम लेकर थूकने लगे थे।
लेकिन, ईश्वर इतना निष्ठुर नहीं कि, किसी को, सारी ही खुशियों से वंचित से कर दे।
साढ़े तीन लाख सर्वाइव (जीवित रह गए) लोगों में, मेरी बेटी भी बची थी। संक्रमण से लड़ने में जिसने, जी जान लगा दी थी। अंध-विश्वास के विरुद्ध जिसने, जन चेतना फैलाई थी।
17 साल की आयु में ही वह, देश को, आगामी समय में नेतृत्व दे सकने की दिशा में अग्रसर होने लगी थी।
राष्ट्र नायक तो वह, होते ही जा रही थी। साथ ही तभी, कोरोना संक्रमण उन्मूलन में, उसके बलिदान एवं योगदान देखते हुए, उसे, 2021 का नोबल पुरूस्कार मिल रहा था।
तब मेरी नींद खुल गई थी। गला मेरा शुष्क अनुभव हुआ था। साइड टेबल पर गिलास को जग से, भरते हुए मैंने साथ ही सो रही पत्नी  सुंदर शांत मुखड़े को निहारते हुए अपना गला तर किया था।
मेरी पत्नी और सोलह वर्ष की बेटी होना ही, सपने में एकमात्र सत्य था। बाकि मेरा यहूदी एवं ऐसे किसी छोटे देश का नागरिक होना, सब सपने की बात थी।
अपने अध्ययन के अनुसार मुझे, यह भी ज्ञात है कि यहूदी धर्म और उसके अनुयायी बेहद अनुशासित लोग हैं। जिनमें अपने धार्मिक विश्वासों जितना ही आदर अपने राष्ट्र के प्रति होता है। यह विश्व की अनुकरण की जा सकने वाली कौमों में से एक है। जो विज्ञान की प्रमाणित बातों को अपनी मान्यताओं एवं जीवन में अंगीकार करती जाती है।
अब चाय की चुस्कियाँ लेते हुए, अपनी पत्नी और बिटिया को, मैं, अपने इस सपने के बारे में बता रहा हूँ, उन्होंने, इसे बहुत आनंद लेते हुए, सुना है।
फिर, मैंने उनसे पूछा है कि मुझे, इसे क्या मानना चाहिए
स्वप्न या दुःस्वप्न? ...
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
02.04.2020

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