Thursday, April 9, 2020

एक घर की जिम्मेदारी ...

एक घर की जिम्मेदारी ....

ऑन्टी एवं दीदीयों, की रोजमर्रा की डाँट-फटकार, शिकायतें भी लगता है, एक तरह का मनोरंजन ही होता था।
विकल्प कई होते थे, जैसे- एक कान से सुनो, दूसरे से निकाल दो।
या       
कोई ज्यादा ही भड़क रहीं हों तो,  बिना दिल पर लिए, ईंट का जबाब पत्थर से दे दो, और सिर झटक के, (नज़र बचा के) हँस लो, इत्यादि।
ऐसी बहस में, ज्यादा ही कोई बुरा मान गई, तो भी क्या होता था!
ज्यादा से ज्यादा, उस घर का काम छूट जाता था।
इसकी भी, फ़िक्र नहीं करनी होती थी, काम खुद करने की फुरसत नहीं आज मालकिनों को, यहाँ छूटता तो कहीं और लग ही जाता था।
ऐसे ही दस घरों में विभिन्न तरह के काम करते हुए, मैं, लगभग पंद्रह हजार कमा लेती थी। किसन (मेरे पति) मजदूरी से 25 हजार कमा लाते थे। बूढी सास सहित दो छोटे बच्चों के परिवार में, इतने से ही खर्चा अच्छी तरह चल जाता था। कुछ बचत भी हो जाती थी। जिसे हम बैंक में जमा करा देते थे।
यह सब बातें, 20 मार्च के पहले की, बीती बातें हुईं थीं। उस दिन के पहले, कुछ दिनों से कोरोना, कोरोना सुनाई पड़ रहा था।
21 मार्च से इसका डर बढ़ गया था। सब काम-धंधे बंद होने लगे थे। गाड़ी, ट्रेनें बंद होने लगीं थीं। टीवी खोलो तो, डरावनी बातें पता चलतीं थीं। आसपास के परिवार, सब गाँव जाने लगे थे।
तब किसन ने कहा था, हम कहीं न जायेंगे।
फिर किसन और मुझे, मालिक, मालकिनों ने काम पर आने को मना किया था। लेकिन विश्वास दिलाया था कि बिना काम किये के, आधे पैसे देंगे। 
हमने संतोष किया था कि 18-20 हजार भी हुए तो, किसी तरह गुजारा चल जाएगा।
दस दिन हुए थे आस पास सूनापन रहने लगा था। कामकाजी हम, बिन काम के घर बैठे तो हाथ-पैर में दर्द लगने लगा था।
अच्छा यह हुआ कि हमारे शहर में कोरोना नियंत्रित हो जाने से, थोड़ी छूट हो गई थी।
मेरे पास में 5 घर ऐसे थे, जहाँ परिवार में जवान तथा दीदी भी सर्विस करती थीं। अब, उन घरों में, दीदी के घर पर रह जाने के कारण, मेरे न होने से भी, काम की विशेष तकलीफ, नहीं रह गई थी।
मुझे चिंता उन 5 घरों की हुई, जहाँ अंकल-ऑन्टी रिटायर्ड थे और घर में दो ही, ऐसे सदस्य थे। मैंने, मोबाइल से इन घरों में काम पर आने को पूछा था तो, वे ख़ुशी से तैयार हुए थे। 3 अप्रैल से, मैंने इन घरों में काम फिर शुरू कर दिया था।
"तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो
तुमको अपने आप ही सहारा मिल जाएगा"
हमें, गाने की इन दो पंक्तियों ने, ऐसा सहयोग करने को प्रेरित किया था।
पहले दिन ही, नूतन ऑन्टी ने, जो शौकिया सिलाई भी करतीं थीं, उन्होंने, मुझे घर में उनके द्वारा सिले हुए मुँह, नाक कवर करने वाले, 100 कपड़े (मॉस्क) दिए थे। अंकल ने, सावधानियाँ बताईं थी। सावधानियों एवं मॉस्क के प्रयोग से मैंने, उस दिन से काम शुरू कर दिया था।
बहुत से मजदूर/माली गाँव चले गए थे। इसलिए मेरे वाले घरों में, गमलों एवं बगिया की देखरेख नहीं हो पा रही थी। किसन के लिए कहे जाने पर, मैंने उसे इन घरों में काम पर लगवा दिया था।
गीता ऑन्टी के घर में, जहाँ वे चिढ़चिढ़ बहुत करती थीं, उनके घर अंकल की पेंशन कम थी। मुझे दिए जाने वाले पैसों को लेकर भी काटा काटी होती थी। सामान्य हालातों में, मैं, उनके, काम नहीं करने की, सोचा करती थी। लेकिन गीता ऑन्टी-अंकल सबमें ज्यादा बूढ़े थे। मैं न करूँ तो, उन्हें कोई दूसरा, मिलने वाला नहीं था।
इतने दिन, मैंने काम नहीं किया तो सारा घर अस्त-व्यस्त हुआ था। अतः इन विशेष परिस्थिति में मैंने इस घर को नहीं छोड़ने का फैसला लिया हुआ था।
हम घर में टीवी भी देखा/सुना करते थे, जिस पर सभी तरफ से आपसी सहयोग की अपील सुनने मिलते थी।
मेरा गीता ऑन्टी के घर 10 तारीख का महीना चलता था।
शायद गीता ऑन्टी ने मेरे काम न करने वाले दिनों में, मेरे काम करने के महत्व को, पहचाना था। पिछले दिनों में वे,मुझसे बहुत प्यार से पेश आ रहीं थीं। आज जब में काम कर वापिस जाने लगी तो, उन्होंने मुझे रोका था।
जो मेरा पैसा कई बार माँगे जाने के बाद, मुश्किल से ही और काटा काटी के उपरांत देतीं थीं, उन्होंने इस बार, बिना कटौती के पूरे 1000 रूपये देने के लिए, मेरे तरफ बढ़ाये थे। मेरे लिए उनका, यह व्यवहार आश्चर्यजनक था। लेकिन मैंने भी, कुछ और तय कर रखा था। मैंने पैसे लेने से मना कर दिया था।
वे चौंक गईं, कहने लगीं, ऐसा क्यों, क्या तुम्हें और ज्यादा चाहिए हैं?
मैंने कहा, नहीं, मैं, आपके घर, बिन तनख्वाह के काम करुँगी।
उन्हें संशय हुआ कि मैं किसी नाराजी में मना कर रहीं हूँ। वे मुझे लेने को मनाने लगीं, और बोलीं, बेटा क्यों नाराज हो? हम बूढ़ों का, तुम्हारे सहारे बिना चल न पायेगा।
मैंने कहा, ऑन्टी, मैं नाराज नहीं हूँ।
उन्होंने पूछा, फिर तनख्वाह क्यों नहीं ले रही हो।
मैंने कहा - ऑन्टी, हमारे प्रधान मंत्री, हम सब से अनुरोध कर रहे हैं कि, मुसीबत के इस समय में,  हम सब, एक घर की जिम्मेदारी लें।
इस पर, मैंने, आपके घर के काम की, जिम्मेदारी लेना तय किया है।
मेरे उत्तर पर ऑन्टी मुझे विस्मय से यूँ देख रही हैं, जैसे किसी बेसुरे ने लता मंगेशकर जैसे सुर ताल में कर्णप्रिय, मधुर गायन, सुना दिया हो ... 
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
10.04.2020
   

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