Tuesday, April 7, 2020

जीवन पथ ...

जीवन पथ ...


आपने, ही तो अपने बीच प्यार की शुरुआत की थी।
मैं रुआँसी हो बोल रही थी।
हमारे, द्वार गाजे बाजे और बारात ले आप ही आये थे।
मेरा शिकायती कहना जारी था। चेतन, सुन रहा था बोल कुछ न रहा था।
दो जन्मे बच्चे, आपके ही तो हैं, जिनने मुझ में आकर्षण घटाया है।
चेतन अभी भी चुप था।
मैं बोली, चुप क्यूँ हो, कहने को नहीं कुछ आपके पास?
इस बार, समझाने के स्वर में चेतन बोला।
तेरी बात मानता हूँ ना, क्या कहूँ इसमें?       
मेरी रुलाई फूट पड़ी, रोते हुए मैं बोली- तो क्यूँ, आपके पास नई नई लड़कियों के कॉल आने लगे हैं?
देख तू, गलत समझ रही है। ये ऑफिस कुलीग हैं या कॉलेज फ्रेंड हैं, मेरी!
झुँझलाहट सहित मैं बोली- पहले तो नहीं आ रहे थे ऐसे कॉल! माना ये सही है, तो फिर सामने बैठ कर ही क्यूँ नहीं बात करते, आप?
वह चुप हो गया था। शायद और झूठ कहने से बच रहा था।
यह हमारे बीच, चेतन के अवैध प्रेम संबंधों को लेकर, बात करने का पहला मौका था।
उसके, ऐसे कॉल आने के सिलसिले जारी रहे थे। और, हम दोनों में बातें, तकरार में, फिर दैनिक ही, इससे बढ़ती हुई कटुता के साथ होने लगी थीं। 
फिर आया था वह दिन, जब  चेतन ने चिढ कर, कुछ युवतियों से अपने विवाहेत्तर , संबंध होना स्वीकार लिया था।
मैं, स्वयं एक युवती हूँ, यह सुन कर मुझे, सबमें पहले तो इस बात पर रोष आया था कि
"किसी के घर तोड़ने वाले अवैध संबंध रखने पर ऐसी युवतियों को ग्लानि क्यों नहीं होती। "    
फिर, मैंने चेतन से ये अवैध संबंध, अभी ही खत्म करने के लिए, बच्चों की कसम उठाने को कहा था।
इसके जबाब में, उससे बेहद ही घटिया बात कही थी कि-
"तेरे को, मेरे इन संबंध से आपत्ति है, तो तू कर ले, कुछ ऐसे संबंध! मैं नहीं खत्म कर सकता इन्हें, समझी।"             
अब मुझे लग गया था कि चेतन, अभी जितना गुस्से में दिख रहा है, मैंने और कुछ कहा तो, मेरी और बच्चों पर शामत आ सकती है।
मुझे उस समय चुप कर लेना ही उचित लगा था।   
हमारे बीच नाराजी में, हम साथ रह तो रहे थे, मगर पत्नी-पति वाला ज्यादा कुछ नहीं रह गया था। चेतन को परवाह भी नहीं थी, उसने बाहर प्रबंध किये हुए थे।
फिर आया कोरोना संकट, जिसमें लॉक डाउन कर दिया गया। चेतन का ऑफिस जाना बंद हो गया। अवैध संबंध भी, उन युवतियों के तरफ से स्थगित कर दिए गए कि उन्हें संक्रमण न हो जाए।
चेतन घर बैठकर, चार दिनों, पहले जैसे तना रहा था।
पाँचवी रात, फिर उससे रहा नहीं गया था। जब बच्चे सो गए, तब मुझे अपने पास खींचने लगा था। मैंने उसके हाथ अपने ऊपर से हटा दिए थे। मैंने, मुहँ फुलाये रखा था।
वह चिरौरी सी करने लगा। बोला - सुन तो, तू पत्नी है मेरी। मेरे बच्चों की माँ है।
मैंने बोला, नहीं, ऐसे नहीं चलेगा। आपको पहले मेरी सुननी होगी।
बच्चों की नींद में खलल न पड़े, यह सोचकर वह, मेरे हाथ पकड़कर, मुझे ड्राइंग रूम में ले आया और बोला - चल तू बोल आज, मैं सुनुँगा।
हम सोफे पर आमने सामने आ बैठे थे।
क्या कहना है, यह सोचने के लिए, मैंने, कॉफी का बहाना किया था, बोली थी, मैं, कॉफी बना लाती हूँ, फिर कहूँगी। तब तक बैठकर, आप सोचिये।
फिर वह जब कॉफी पीने लगा, दो चुस्की कॉफी की मैंने भी ली, फिर प्रश्न किया, बोलूँ मैं?
चेतन हँसते हुए बोला, आज सब बोल दे, मैं सुनुँगा।
मैंने बोलना शुरू किया -
हममें बँधा दाँपत्य सूत्र, दोनों ही तरफ की कोशिश, से मजबूती पाता है। आपने मालूम नहीं कैसे!, अपने सँस्कार गँवा दिए। और अपनी तरफ से इस बंधन सूत्र को कमजोर करने लगे। 
मगर मुझे भली-भाँति भान रहा कि मेरे पापा ने अपनी हैसियत से बढ़कर, मेरे विवाह पर खर्च किया है, इसलिए नहीं कि मैं, इसे तोड़कर फिर उनके ऊपर अपना उत्तर दायित्व रख दूँ। 
(मैंने, उसके मुख पर दृष्टि डाली फिर थोड़ा रुककर आगे बोली) -
मैंने तय किया अपना विवाह सूत्र, कमजोर, मैं न करुँगी। अपनी बुध्दिमानी से आपको भी और कमजोर न करने दूँगी। 
मेरे बच्चे, आपके भी बच्चे हैं, इनका कोई और पापा नहीं होने दूँगी।         
मुझे, आप, यह वादा करो कि लॉक डाउन अभी और पंद्रह दिनों का है। इसमें आप अपने किये पर आत्म मंथन करोगे।
इस शर्त पर मुझे आपके बाँहों में आने में कोई ऐतराज न होगा।
चेतन बोला - चल वादा करता हूँ।
बाद में उस रात उसने कहा था - तेरा  यूँ हताश, उदास और ठंडी सी रहना, मुझे अखर गया है। 
फिर चेतन पिछले सप्ताह भर, बच्चों को स्नेह से खिलाता, मेरे साथ ज्यादा प्यार से पेश आता और अक्सर अकेले, गहन सोच में डूबा रहता।
आज 06 अप्रैल की रात हम, फिर ड्रॉइंग रूम में कॉफी पी रहे थे। आज, मैं चुप थी वह बोल रहे थे-
तू सुन, धन्य मेरा भाग्य, जो कोरोना हम पर विपदा सा आया है। मुझे यह फुरसत नहीं मिलती तो, मैं कभी यह सब, सोच नहीं पाता। अपनी निकृष्ट करनी को, कोई तर्क देता रहता और, तेरे और बच्चों के जीवन पर अनावश्यक चुनौतियों की परिस्थिति निर्मित कर देता। 
पिछले सात दिनों में, मैं, तेरा व्यवहार देखता रहता, फिर निगाह अपनी तरफ फेरा करता। तुझमें, कोई कमी नहीं दिखाई पड़ती। अपने में ऐसी काम लोलुपता दिखाई पड़ती जिससे हासिल कुछ नहीं होना था। 
मेरी शारीरिक सुख की चाह, मुझे मृगतृष्णा जैसी ही भटकाती रहती। 
एक से नहीं, फिर दूजी से नहीं और फिर अनेकों से भी नहीं, मेरी तृष्णा शाँत नहीं होती। ऐसे भटकने से हासिल कुछ होगा नहीं, मैं यह रियलाइज कर सका हूँ। 
मैं, तेरे और अपने बच्चों के साथ ही कुछ भी हासिल कर सकता हूँ, अन्यथा कुछ मिलना, सिर्फ भ्रम है हासिल होने का। 
मैं वादा करता हूँ अपने अवैध सारे रिश्ते खत्म कर लूँगा। 
अब से आजीवन, अपने जीवन पथ पर, मैं, तुझे साथ लिए चलूँगा  ....   

 -- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
07.04.2020
  

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