Friday, April 17, 2020

मेरा हीरो ...

मेरा हीरो ...

अंतिम दृश्य में वह मर गया था। मॉल में, मूवी देख रहे सभी दर्शक स्तब्ध रह गए थे। मेरा हाल और ज्यादा बुरा था। इस काल्पनिक दृश्य की वेदना से, मैं स्वयं को उबार नहीं पा रही थी। मुझे प्रतीत हो रहा था, क्या रह गया! इस दुनिया में, जब मेरा हीरो ही नहीं बचा।
मेरा हीरो ज़िंदा है, फिर यह यकीन करने के लिए, बाद के दिनों में लगातार, उसकी एक के बाद एक, कई मूवीज, मैं अपने लैपटॉप में, सबसे छिप कर देखती रही थी।
घर में मम्मी-पापा यह समझ खुश होते थे कि बेटी, बहुत लगन से, पढाई कर रही है।
यह बात उस समय की थी, तब मैं कक्षा 11 की छात्रा थी। वे दो साल मेरे भविष्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण थे। तब की मेहनत और परिणाम के आधार पर, मेरे कॉलेज एवं आगे की संकाय (faculty) तय होनी थी।
मैं, मेरे हीरो के प्रति, मेरी दीवानगी में, मेरा आवश्यक अध्ययन, सुनिश्चित न कर सकी थी।
मैं उसकी मूवीज फिर फिर देखती थी। उसके वॉल पेपर, अन्य फोटोज और उसके गाने देखा करती थी। उसके सारे सोशल प्लेटफॉर्म्स पर फैन क्लब एवं उसकी प्रोफाइल को फॉलो करती रही थी।
ऐसे में जब कक्षा 12 का परिणाम आया, वह मेरी संभावनाओं की दृष्टि से निराशाजनक था।
तब भी मम्मी-पापा ने कोई नाराजी नहीं दिखाई थी। किसी किसी स्टूडेंट्स के आत्मघात करने या अवसाद में होने के हादसों से, मैंने, उन्हें पहले से ही, भयाक्रांत रहते देखा था। उनका नाराज न होना कदाचित इसी भय का परिणाम था। 
मैं अपने दिल से मजबूर थी। मैंने इन सबसे, कोई सबक नहीं लिया था। मैं, मेरे हीरो को, उसी तरह फॉलो करती रही थी।
अब मैं बी ए व्दितीय वर्ष की छात्रा थी। अभी देश और दुनिया पर कोविड-19 महामारी का खतरा छाया हुआ था। पिछले, कई दिनों से मैं लॉक डाउन में घर में सीमित रह गई थी।
इस निर्मित परिस्थिति में, घर में, मम्मी का हाथ बँटाते और दुःखद समाचार सुनते हुए मेरा दिमाग अन्य तरह से प्रभावित हुआ था।
मेरे हीरो से संबंधित, ऐसा कोई समाचार नहीं दिखाई पड़ रहा था, जिसमें उसका कोई त्याग प्रमुख होता।
यह कहीं नज़र नहीं आया कि मानव नस्ल पर आसन्न खतरे में, उसने कोई दान दिया हो। या, नफरत से सुलग रहे, हमारे देशवासियों के मन को, अपने कुछ अच्छे शब्दों से तसल्ली पहुँचाई हो। उसके द्वारा अंधविश्वास दूर करने एवं नागरिकों में जागृति लाने के कोई प्रयास किये जाते नहीं सुनाई पड़े थे।
मैं उसके तरफ से पहली बार निराश हुई थी।
तब गूगल पर उपलब्ध, मैंने उसका विकिपीडिया पढ़ा था।  वह आयु में मेरे पापा से बड़ा था। सिनेमा में आने के पूर्व, वह, हम जैसे ही मध्यम वर्गीय परिवार में पला बड़ा था।
फिर मेरे दिमाग में एक स्टोरी आई जिसे मैंने यूँ लिखी -

"हीरो ने इस देश में बेशुमार ख्याति, बेहिसाब धन वैभव एवं बेहद प्यार, पिछले तीस वर्षों में अर्जित किया था।  ऐसे में, इसी देश पर आई, कोरोना विपदा की घड़ी में वह अत्यंत भावुक हो गया था। उसने अपनी 4000 करोड़ की संपत्ति में से, अपना बँगला-कार एवं 5 करोड़ रूपये बैंक खाते में छोड़, बाकि पूरा धन पीएम केयर्स फण्ड (PM CARES Fund) में दान दे दिया। 
देश वासियों से वह, टीवी समाचार चैनलों पर, कौमीय नफरत और धार्मिक अंधविश्वास छोड़, कोरोना से एकजुट लड़ने की अपील करता दिखाया जाने लगा। उसके भारी भरकम दी गई दान राशि के कारण, देशवासियों ने उसे अत्यंत गंभीरता से सुना। अपील का असर अत्यंत सकारात्मक हुआ। नागरिकों ने नफरत भुला, अंधविश्वास छोड़, सौहार्द्र एवं सहयोग का परिचय दिया। इस सबसे भारत, दुनिया का ऐसा पहला देश बना, जिसमें कोरोना का संपूर्ण उन्मूलन किया जा सका। " 

अपनी लिखी यह कहानी, उस दिन मैं बार बार पढ़ती रही। कुछ दिन मैंने प्रतीक्षा की कि, मेरे हीरो के तरफ से, मेरी कहानी में उल्लेखित जैसी कोई पेशकश की जायेगी।
मगर मैं, निराश हुई।
मुझे, दुःखी हृदय से, यह स्वीकार करना पड़ा, कि यह हीरो, मेरा हीरो नहीं हो सकता। यह मात्र प्रचारित हीरो है। वास्तविक नायक (रियल हीरो) होने के उसमें अंश मात्र भी लक्षण नहीं हैं। 
तब मैंने, उसे जहाँ जहाँ फॉलो किया हुआ था,  हर उस साइट पर अनफॉलो कर दिया। मैंने मैथ्स पढ़ा हुआ था। मुझे मालूम था कि-
10 करोड़ 6 सौ सोलह में एक प्रशंसक, कम होने का असर, नगण्य है। 
मुझे तब भी, ऐसा करते हुए, आत्मिक संतोष अनुभव हुआ। 
मैं समझ पा रही थी कि पिछले 4 सालों में उसे दिल में बसाये रखने के कारण,  अपने जीवन में मैं, अत्यंत पिछड़ गई हूँ।
मैंने संकल्प किया कि अब आगे, भरपूर भरपाई करुँगी। मेरे जीवन का समय, मैं किसी फेक हीरो को प्रमोट करने में नहीं अपितु स्वयं को प्रोन्नत करने में लगाऊँगी ... 


-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
18.04.2020

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