Sunday, April 12, 2020

चाहिए रानी लक्ष्मीबाई सी वीराँगना (2) ..

चाहिए रानी लक्ष्मीबाई सी वीराँगना (2) ..

कल रात ही मैंने, प्रिंट आउट्स निकाले हुए थे, जिसमें अपने टीम के सदस्यों को 'क्या करना और क्या नहीं करना' (Do's & Don'ts) का स्पष्ट उल्लेख था।
गंतव्यों के पहुँचने तक ही, सभी टीम सदस्यों ने मेरे द्वारा वितरित प्रिंट आउट्स को पढ़ लेना था, जिनमें सार यह था कि -
"हम, अपने कम पढ़े-लिखे, गरीब नागरिकों की सहायता के प्रयोजन से, काम करने वाले हैं। यह काम स्वस्फूर्त है, हमने ही करना तय किया है, यह हमें स्मरण रखना है। 
हमारे हितग्राहियों के, किसी भी उत्तेजित करने वाले व्यवहार पर, हमें रिएक्ट नहीं करना है। विनम्रता से पेश आते हुए, उन्हें भी विनम्रता की तरफ बढ़ाना है। हमारा दायित्व, उन्हें जागरूक करना भी है, ताकि उनके आसपास कोई संक्रमित हो तो, उससे वे अपना बचाव कर सकें।"
अपने गंतव्यों पर पहुँच कर, हमारी टीमों ने, क्षेत्र के पार्षद द्वारा नियत कीं, कुछ खुली सी दस जगहों में, टेंट लगाये थे।
तब, अपने साथ लायी सामग्रियों से, हर टीम के पाँचों सदस्यों द्वारा दिन भर, पूरी-चटनी बनाई थी।
8 पूरी प्रति पैकेट, मय चटनी के, लिफाफों में रख, ऐसे पैकेट, उन लोगों में वितरित किये गये थे, जिनके खाने की व्यवस्था, उनके घर में, किसी किसी कारण वश नहीं हो पा रही थी।
हमने पैकेट देते हुए सबसे यही अनुरोध किया था, जिसके घर राशन उपलब्ध है, वे यह मदद न लें।
डिस्टैन्सिंग के लिए चूने की मार्किंग की थी। जिससे हर व्यक्ति को ठीक दूरी बनाये रखते हुए, सामग्री प्रदान की जा रही थी।
साथ ही हितग्राहियों को, संक्रमण न फैलने देने के लिए साफ़ सफाई और अन्य सावधानी के बारे में बताया जा रहा था।
अपने साथ लाये रुमाल/गमछे, उन्हें, मुहँ में बाँधे जाने के लिए भी, हमने वितरित किये थे।
रात्रि 8 बजे तक साथ लाई हुई, पूर्ण सामग्री के उपयोग से, हर टीम ने 300 की औसत से, भोजन पैकेट वितरित किये थे।
फिर सब टीमें जहाँ से सुबह निकलीं थीं, वहीं इकठ्ठी हुई थीं। सभी सदस्य पहले दिन के कार्य के, आशा अनुरूप संपन्न होने से खुश थीं। और अगली सुबह फिर, आज जैसे ही कार्य के लिए संकल्पित भी थे। फिर सभी, अपने अपने घर के लिए, रवाना हो लिए थे।
दूसरा दिन भी लगभग पहले जैसा ही बीता था। जिसमें, दो बातें अलग हुईं थीं।
पहली, नेहा की टीम पर, शराब के नशे में एक व्यक्ति, अश्लीलता और दुर्व्यवहार से पेश आया था।
नेहा ने यह स्थिति, विनम्रता और वाकपटुता से यह कहते हुए सुलझा ली थी कि
"भैय्या, आप से करबध्द प्रार्थना है कि आप, अपनी ख़राब करनी से, हमारी सहायता से, लाभांवित हो रहे, अपनी बस्ती वालों को वंचित न कीजिये। अगर आपकी, इस तरह की हरकत से, हमने यह काम बंद किया तो, कुछ मासूम बेचारे, भूखे रहने को विवश होंगे। "  
शराबी तो शायद नहीं समझ सका था लेकिन वहाँ उपस्थित अन्य पर, अपेक्षित प्रभाव हुआ था। उपस्थित लोगों और महिलाओं ने इस बात को समझा था और किसी तरह उसे, वहाँ से हटा लिया था।
दूसरी बात यह हुई थी कि एक टीवी समाचार चैनल के कैमरामैन एवं संवाददाता ने, हमारे कार्य को सभी दस जगह रिकॉर्ड किया था। रात होते होते जिसका प्रसारण पूरे देश ने देखा था।
हम सभी का उत्साह, इससे कई गुणा बढ़ गया था। कम से कम यह, मेरे पूर्व विचारे गए अनुसार हुआ था। साथ ही अपेक्षा से ज्यादा शीघ्रता से, दूसरे दिन ही हो गया था।
तीसरे दिन, इस प्रसारण का लाभ मिला था, हमारे पास और वोलिंटिअर्स ने संपर्क किया था। जिससे आगे के दिनों में, हमारे कुछ सदस्यों को बारी बारी छुट्टी का विकल्प उपलब्ध हो गया था।
एक और फायदा यह मिला था कि दानवीरों ने हमारे लिए आवश्यक सामग्री एवं वाहन आदि के खर्चे उठा लिए जाने का प्रस्ताव किया था। हमने जिसे सहर्ष स्वीकृत किया था।
जिससे आरंभिक तीन दिनों में मेरे द्वारा लगभग 1.5 लाख रूपये के व्यय के बाद, मुझ पर आर्थिक भार और नहीं पड़ा था।
तीसरे दिन तक, हमें मिली इन सफलताओं के समाचार ने, आगे के दिनों में, इस मॉडल पर काम करने के लिए, देश भर की महिलाओं को प्रेरित किया था।
और फिर इससे कोरोना के लॉक डाउन के बीच भी, हमारे देश में हर व्यक्ति की उदर पूर्ति का उपाय निकल गया था। वह भी बिना आपाधापी एवं बैर वैमनस्य के।
बाद के दिनों में अनाज और अन्य आवश्यक वस्तुयें भी हमारे टेंट तक, समाज के दानवीर पहुँचाने लगे थे। जिनके वितरण से घरों के भोजन अभाव खत्म हुए थे। जिससे, हम पर भोजन पैकेट के दबाव भी कम होने लगे थे। 
इस परोपकारी कार्य से देश भर में सरकार, प्रशासन और पुलिस को अत्यंत राहत मिली थी।
फिर वह दिन आया जब  "वह चुनौतियाँ भी आ सकती हैं, जिनकी तुम्हें अभी कल्पना ही नहीं"  पापा जी का ऐसा आगाह किया जाना मुझे स्मरण आया था। दुर्भाग्य से हमारे कार्य के ग्याहरवें दिन मेरी तबियत ख़राब हुई थी।
शौर्य और मेरा टेस्ट कोरोना पॉजिटिव आया था। संतोष वाली बात यह हुई थी कि बच्चे एवं पापाजी का टेस्ट नेगेटिव आया था।
मेरे संपर्क के सदस्यों के टेस्ट भी नेगेटिव रहे थे। और हमारी रखी गई सावधानी से, दूरी रखते हुए, हमारी टीम के भोजन वितरण से, सामग्री ग्रहण करने वालों तक भी, संक्रमण फैला नहीं था।
ऐसा प्रतीत होता है, हम तक, कोरोना संक्रमण बैंक से आया था।
शौर्य और मैं अस्पताल में भर्ती हुये थे। मेरी अनुपस्थिति में टीम कोआर्डिनेशन एवं अन्य प्रबंधन का दायित्व मेरी शिष्या, नेहा ने अथक परिश्रम, अदम्य साहस एवं दृढ इक्छाशक्ति से निभा लिया था।
अंततः कुछ दिनों के उपचार में शौर्य और मैं स्वस्थ हो घर लौटे थे। मगर आगे 14 दिन सावधानी के लिए, हमें आइसोलेशन में रहना पड़ा था।
इस तरह मेरा दिया जा सकने वाला योगदान, मैं कर न सकी थी। ऐसे मेरी व्यक्तिगत उपलब्धियाँ कम रह गईं थीं। 
ऐसे परोपकार के कार्यों में ये सब बातें तब गौड़ हो जातीं हैं, जब हम परम उपलब्धि (Ultimate Achievement) पाने में सफल रहते हैं।
फिर वह शुभ समय आया था। हमारे देश में हर स्तर पर त्याग, समर्पण एवं सहयोग ने, मई 2020 के अंत तक, अत्यंत कम जनहानि रखते हुए देश को कोरोना मुक्त करा लेने में सफलता मिली थी। जो शेष विश्व की जनहानि की तुलना में न्यून रही थी।
देश और परिस्थिति के दृष्टिकोण से यह बहुत सही समय पर (Timely) हुआ था। अन्यथा बरसात के आ जाने पर, इतनी व्यवस्थायें रख पाना कठिन होता और देश में बड़ी मात्रा में जनहानि सहित अराजकता फैलने का पूरा अंदेशा होता।
अंत में मेरी अनुशंसा पर बिना शोध पत्र पूर्ण किये, विश्वविद्यालय द्वारा नेहा का पीएचडी प्रदान की गई।
तब से, हमारी अत्यंत प्रिय नेहा को, हम स्नेह अनुराग से, वीरांगना लक्ष्मी बाई कहते और वह खिलखिला के हँस देती ..       


-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
12.04.2020

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