सर्वकालिक सत्य एक कहानी
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चार खरब चवालीस अरब एकहत्तर लाख तीन हजार दो सौ चौसठ वर्ष पाँच दिन पहले सृष्टि सृजनकर्ता को प्राणी नाम की वस्तु की कल्पना हुई . उन्होंने प्राणी बना दिया और पृथ्वी पर बसा दिया . पृथ्वी के जीवनक्रम तब से चलता आया है . इस वर्णित अवधि में तीस बार कोई ना कोई प्राणी प्रजाति विकास करती रही .प्राणी -सभ्यता चरम तक उन्नत हुई . फिर पृथ्वी के सौर मंडल में कुछ किलोमीटर के विचलन से जलप्लावन (प्रलय) हुआ . इस प्रलयंकारी घटनाओं में थल -जीवन लगभग विनष्ट होता रहा . तीस बार अन्य प्राणियों की प्रजाति सभ्य हुई . हर बार यही देखने में आया , जिस प्रजाति के प्राणी ने दो पैरों को हाथ के रूप में प्रयोग किया वही विकसित हुई ,उसका मस्तिष्क ही उन्नत हो सका . आखिरी जलप्लावन जिस में पृथ्वी का थल (प्राणी बसावट वाला हिस्सा ) जलमग्न हो गया . और महासागर के बीच टापू उभर आये . यह घटना चार करोड़ अस्सी लाख तीन हजार सात सौ इक्कीस वर्ष ग्यारह माह और उन्नीस दिन पुराणी है . जिसमें स्थल जीवन लगभग पूरा विनष्ट हुआ और महासागर पर उभर आये नए थल टापुओं पर आज के प्राणियों का आदिम रूप उत्पन्न हुआ.
इस नए प्राणी संस्करण में मनुष्य वह प्राणी रहा जिसने अपने सर के पास वाले दो पैरों को हाथ की भाँति प्रयोग आरम्भ किया . उसका मस्तिष्क सर्वाधिक गतिशील हुआ और शक्तिशाली ढंग से विचार-कल्पनाओं को परिणाम में बदलने योग्य होने लगा . इस तरह निरन्तर विकास और सभ्य होते हुए मनुष्य सभ्यता के आज की मंजिल पर है . आज से सत्ताइस साल चार माह नौ दिन पूर्व उसका जन्म हुआ है . इस भव्य जीव को यह शीघ्र ही मालूम हो गया है कि सर्वकाल की तुलना में उसका आज के मनुष्य रूप का जीवन कितना छोटा है . वह अनंत -अनंत प्राणियों में जो जन्म लेते और मरते रहे हैं उनके बीच एक के रूप में नगण्य जैसा ही है . इस तरह एक मनुष्य रूप में चाहे जो स्वार्थ पूर्ती, भोग-उपभोग को समर्पित अपना जीवन लगा दे , उसे कुछ भी मिल गयी उपलब्धियों के बाद भी सर्वकाल के महा मानचित्र में उसका महत्त्व शून्य से बढ़कर कुछ नहीं होने वाला है.
वह आज निश्चय कर रहा है कि वह अपने मस्तिष्क ,आचरण -विचार और कर्मों को लालसाओं के अधीन नहीं होने देगा . अपने शेष जीवन को अपने निस्वार्थ भाव और नियंत्रण से जीकर ऐसा उदाहरण आगामी मनुष्य समाज के सम्मुख प्रस्तुत करेगा जिससे सद्प्रेरणा लेकर आगामी मनुष्य संतति ऐसा समाज बना सकेगी ,जो आगामी जलप्लावन (प्रलय) से नाश के गर्त में जाने वाले जीवन तक हुए प्राणी के जीवनक्रम का सबसे सुन्दर - सुखी और निर्मल समाज कहा जायेगा. ……
--राजेश जैन
09-02-2014
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चार खरब चवालीस अरब एकहत्तर लाख तीन हजार दो सौ चौसठ वर्ष पाँच दिन पहले सृष्टि सृजनकर्ता को प्राणी नाम की वस्तु की कल्पना हुई . उन्होंने प्राणी बना दिया और पृथ्वी पर बसा दिया . पृथ्वी के जीवनक्रम तब से चलता आया है . इस वर्णित अवधि में तीस बार कोई ना कोई प्राणी प्रजाति विकास करती रही .प्राणी -सभ्यता चरम तक उन्नत हुई . फिर पृथ्वी के सौर मंडल में कुछ किलोमीटर के विचलन से जलप्लावन (प्रलय) हुआ . इस प्रलयंकारी घटनाओं में थल -जीवन लगभग विनष्ट होता रहा . तीस बार अन्य प्राणियों की प्रजाति सभ्य हुई . हर बार यही देखने में आया , जिस प्रजाति के प्राणी ने दो पैरों को हाथ के रूप में प्रयोग किया वही विकसित हुई ,उसका मस्तिष्क ही उन्नत हो सका . आखिरी जलप्लावन जिस में पृथ्वी का थल (प्राणी बसावट वाला हिस्सा ) जलमग्न हो गया . और महासागर के बीच टापू उभर आये . यह घटना चार करोड़ अस्सी लाख तीन हजार सात सौ इक्कीस वर्ष ग्यारह माह और उन्नीस दिन पुराणी है . जिसमें स्थल जीवन लगभग पूरा विनष्ट हुआ और महासागर पर उभर आये नए थल टापुओं पर आज के प्राणियों का आदिम रूप उत्पन्न हुआ.
इस नए प्राणी संस्करण में मनुष्य वह प्राणी रहा जिसने अपने सर के पास वाले दो पैरों को हाथ की भाँति प्रयोग आरम्भ किया . उसका मस्तिष्क सर्वाधिक गतिशील हुआ और शक्तिशाली ढंग से विचार-कल्पनाओं को परिणाम में बदलने योग्य होने लगा . इस तरह निरन्तर विकास और सभ्य होते हुए मनुष्य सभ्यता के आज की मंजिल पर है . आज से सत्ताइस साल चार माह नौ दिन पूर्व उसका जन्म हुआ है . इस भव्य जीव को यह शीघ्र ही मालूम हो गया है कि सर्वकाल की तुलना में उसका आज के मनुष्य रूप का जीवन कितना छोटा है . वह अनंत -अनंत प्राणियों में जो जन्म लेते और मरते रहे हैं उनके बीच एक के रूप में नगण्य जैसा ही है . इस तरह एक मनुष्य रूप में चाहे जो स्वार्थ पूर्ती, भोग-उपभोग को समर्पित अपना जीवन लगा दे , उसे कुछ भी मिल गयी उपलब्धियों के बाद भी सर्वकाल के महा मानचित्र में उसका महत्त्व शून्य से बढ़कर कुछ नहीं होने वाला है.
वह आज निश्चय कर रहा है कि वह अपने मस्तिष्क ,आचरण -विचार और कर्मों को लालसाओं के अधीन नहीं होने देगा . अपने शेष जीवन को अपने निस्वार्थ भाव और नियंत्रण से जीकर ऐसा उदाहरण आगामी मनुष्य समाज के सम्मुख प्रस्तुत करेगा जिससे सद्प्रेरणा लेकर आगामी मनुष्य संतति ऐसा समाज बना सकेगी ,जो आगामी जलप्लावन (प्रलय) से नाश के गर्त में जाने वाले जीवन तक हुए प्राणी के जीवनक्रम का सबसे सुन्दर - सुखी और निर्मल समाज कहा जायेगा. ……
--राजेश जैन
09-02-2014
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